किसान को अन्नदाता कहा जाता है। किसान वह व्यक्ति है जो खुद भूखा रह सकता है परंतु किसी दूसरे को भूखा नहीं रहने देता है। एक किसान हीं है जो अपनी मेहनत के अन्न उगा कर पूरे देश का पेट भरता है। पूरे देश का पेट भरने के लिए एक किसान दिन-रात मेहनत करता है। चाहे ठंड का मौसम हो या वर्षा ऋतु का चाहे तेज ग्रीष्म ऋतु हो, किसान हमेशा अपनी खेतों में कार्य करता है।
सभी जानते हैं कि अभी किसान आंदोलन चल रहा है। परंतु अभी तक किसानों के पक्ष में कोई भी नतीजा सामने नहीं आया है। जो किसान अपने हक के लिए आंदोलन कर रहे हैं, वहीं किसान गरीबों के लिए सहारा भी बन रहे हैं। आपको बता दें कि दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान वहां के गरीबों और बेसहारा लोगों का पेट भी भर रहे है।
केंद्र सरकार की तरफ से आए तीन कृषि कानूनों (Farm Laws) को वापस लेने की मांग को लेकर किसान दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन (Agitation) कर रहे हैं। किसानों की सरकार से बातचीत शनिवार को हुई थी लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला। किसान अपने साथ हफ्ता भर के लिए राशन लेकर भी आए हैं। वह बॉर्डर पर डटे हुए हैं। अपने आंदोलन के दौरान भी किसान दूसरों का पेट पालन कर रहे हैं। वह वहां के गरीब और बेसहारा लोगों के लिए जैसे भगवान साबित हो रहे हैं। वे क्षेत्रों के बेसहारा और बेघर लोगों को भरपेट भोजन खिला रहे हैं।
किसान के लंगर की वजह से कई बच्चे बीते कुछ दिनों से स्कूल भी नहीं जा रहे हैं। ऐसे हीं 2 बच्चे जो अपनी मां-बाप के साथ दिल्ली-हरियाणा के सिंधू बॉर्डर (Sindhu Border) के पास एक झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं। उन दोनों बच्चों का नाम रुबियाल और मासूम है। रूबीयाल की उम्र 10 वर्ष है तथा उसकी बहन मासूम की उम्र 8 वर्ष है। उन दोनों बच्चों के माता-पिता कूड़ा-करकट बीन कर उसे बेचते हैं तथा उसी से अपना भरण-पोषण करते हैं। वह दोनों बच्चे रूबीयाल और मासूम बुधवार से ही स्कूल नहीं जा रहे हैं। उनका कहना है कि यदि वे विद्यालय चले गए तो वे किसानों के लंगर सेवा का भोजन नहीं खा पायेंगे।
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कृषि कानूनों (Farm Laws) को वापस लेने की मांग को लेकर हरियाणा (Hariyana) और पंजाब (Punjab) से दिल्ली आए किसान सीमा पर आंदोलन कर रहे हैं। वे सभी किसान अपने साथ राशन लेकर भी आए हैं। वह अपना पेट पालने के साथ-साथ दूसरे असहायों और गरीबों का भी भरण पोषण कर रहे हैं। शायद इसीलिए हमारे किसान को कहा जाता है कि वह स्वयं भूखा रह सकता है परंतु दूसरे किसी को भूखा नहीं रख सकता है। किसानों के लंगर में वैसे सभी लोग भोजन खा रहे हैं जिन्हें बहुत ही मुश्किल से एक वक्त का भोजन मिलता था। अब उन्हीं लोगों को किसानों के लंगर में तीन वक्त का भोजन तथा कई बार चाय पीने को मिल रही है।
किसानों के लंगर में गरीबों और असहायों के लिए खीर, फल, मीठा चावल तथा स्नेक्स आदि भी मिलते हैं। आपको बता दें कि वह किसान कबाड़ और कचरा बीनने वाले लोगों के लिए भी सहायक बन रहे हैं। लंगर में उपयोग होने वाली प्लेट प्लास्टिक के गिलास तथा चम्मच आदि को एकत्रित करके उन्हें बेच देते हैं। पहले उन लोगों को कचरे और कबाड़ के लिए काफी दूर जाना पड़ता था। ऐसे में उन्हें भोजन के साथ-साथ अच्छी आमदनी भी हो रही है।
10 वर्षीय रूबियाल ने बताया कि वह अपनी बहन और छोटे भाई के साथ सुबह 9:00 बजे सिंधु बॉर्डर पर मौजूद किसानों के लंगर में आया। वहां उसे नाश्ते में चाय, मठरी बिस्कुट तथा संतरे आदि मिले। उसके बाद उन्हें दोपहर में खाने के लिए चावल और रोटी के साथ पूरा खाना भी मिला। उसके बाद शाम के वक्त आंदोलन कर रहे किसानों ने उन्हें गन्ने और केले दिए। आपको बता दें कि रूबियाल पास के सरकारी स्कूल में तीसरी कक्षा का विद्यार्थी है परंतु किसानों के लंगर के भोजन खाने के लिए वह बुधवार से स्कूल नहीं गया है।