हम अपने जीवन में कभी कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसके बारे में कभी सोच भी नहीं सकते। कई बार तो हम करने कुछ जाते हैं और हो कुछ और ही जाता है। कभी-कभी इन सब कामों से नुकसान भी होता है और कभी कभी हमें फायदा भी हो जाता है। आज ऐसे ही 3 दोस्त की कहानी है जिन्होंने कभी चप्पल के व्यवसाय के बारे में नहीं सोचा था परंतु इन तीनों दोस्तों की जिंदगी में कुछ ऐसा बदलाव आया की इन तीनों दोस्तों ने चप्पल के व्यवसाय करके आज चलाना ढाई करोड़ रुपए की कमाई कर रहे हैं।
लक्ष्य अरोरा (Lakshya Arora) और हितेश केंजले (Hitesh Kenjale) दोनों एक इजिप्ट AIESEC नाम के एक इंटरनेशनल एनजीओ में इंटरशिप प्रोग्राम (Internship Program) में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे। इस इंटरनेशनल एनजीओ इंटर्नशिप प्रोग्राम में हिस्सा लेने के लिए दुनिया के अलग-अलग देशों से युवा लोग आए हुए थे। परंतु वहां जितने भी लोग प्रोग्राम में थे उन सबकी नजर हितेश के कोल्हापुरी चप्पल (Kolhapuri Chappal) पर थी। हितेश (Hitesh) ने एक साधारण चप्पल पहनी थी। परंतु हितेश के कोल्हापुरी चप्पल वहां के मौजूद लोगों को काफी आकर्षित कर रही थी। वह चप्पल (piece of art) से कम नहीं थी। जब वहां दोनों दोस्त लक्ष्य और हितेश ने इन लोगों को कोल्हापुरी चप्पल (Kolhapuri Chappal) की तरफ आकर्षित होते हुए देखा। तो इन दोनों ने कोल्हापुरी चप्पल (Kolhapuri Chappal) बनाने के बारे में एक दूसरे से विचार विमर्श करने लगे।
दोनों दोस्त जब अपने स्वदेश को लौटे तब उन्हें कोल्हापुर चप्पल (Kolhapuri Chappal) वाली बात याद आई थी। इन दोनों ने कोल्हापुर चप्पल बनाने वाले कारीगर से मिलने चले गए। यह दोनों दोस्त एक ऐसे कारीगर से मिलना चाहते थे जो ट्रेडिशनल तरीके से जूते चप्पल बनाता हो। इसके लिए इन्होंने कई जगह जाकर कारीगर पता किए। अंततः इन दोनों को महाराष्ट्र (Maharashtra) के बेलगांव (Belgaon) डिस्ट्रिक्ट के मिराज गांव में पहुंचे। उस गांव में एक ऐसा कारीगर था। जो कोल्हापुरी चप्पल (Kolhapuri Chappal) बनाने का काम करता था। जब ये कोल्हापुर चप्पल के कारीगर से मिले। तो इन्हें यह काम काफी पसंद आया। और ये दोनों इस काम को इंटरनेशनल मार्केट तक ले जाने के बारे में सोचने लगे। ये दोनों दोस्तों के अलावे इन्हें एक और दोस्त आभा अग्रवाल (Abha Agrawal) से मुलाकात हो गई। और तीनों ने मिलकर यह काम करना शुरू कर दिया।
देशी हैंगओवर (Desi Hangover) की शुरुआत
लक्ष्य अरोरा (Lakshya Arora) आर्ट (Art) सब्जेक्ट में ग्रेजुएशन किए हुए हैं। हितेश केंजले इंजीनियरिंग की पढ़ाई किए हुए हैं। इन तीनों दोस्तों ने मिलकर “देसी हैंगओवर” (Desi Hangover) के नाम से फुटवियर (Footwear) का स्टार्टअप शुरू किया। शुरुआत में इन तीनों के पास इस कोल्हापुरी चप्पल के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। तो इन तीनों ने शुरुआत में मात्र ₹5 हजार रुपए से यह अपना व्यवसाय की शुरुआत किए।
कोल्हापुरी चप्पल (Kolhapuri Chappal) बनाने का विचार
लक्ष्य अरोरा (Lakshya Arora) बताते हैं कि जब मै उस कारीगर से मिला तो उनके काम को देख कर मैं काफी प्रभावित हो गया। इस कारीगर का प्रोडक्ट बिचौलियों से होते हुए बाजार तक पहुंचते थे। जिसकी वजह से इन्हें अपनी मेहनत की मजदूरी नहीं मिल पाती थी। इतने मेहनत करने के बावजूद भी इन कारीगर को अच्छे पैसे नहीं मिलते थे। और इसी वजह से इनके आने वाली पीढ़ी इस काम को करने के बजाय शहरों में जाकर मेहनत मजदूरी करने लगते हैं। मैंने इस कोल्हापुरी चप्पल (Kolhapuri Chappal) का कुछ सैंपल अपने दोस्तों को भेजा। फिर हम लोगों ने मन बना लिया। कि हम खुद कोल्हापुरी चप्पल का व्यवसाय की शुरुआत करेंगे। फिर मैंने अपने दोस्त आभा को यह बात बताई। और हम तीनों दोस्त मिलकर देसी हैंगओवर के शुरुआत की।
कोल्हापुरी चप्पल (Kolhapuri Chappal) बनाने की शुरुआत
जब लक्ष्य अरोरा कोल्हापुरी चप्पल (Kolhapuri Chappal) बनाने वाले कारीगरों से मिले तो उन्होंने देखा कि इन कारीगरों के चप्पल बनाने का तरीका काफी नीचे स्तर से था। जिसकी वजह से लक्ष्य अरोरा अपने व्यवसाय को इंटरनेशनल मार्केट तक ले जाया जा सकता था। फिर इन्होंने अपने इस व्यवसाय मैं काफी बदलाव करके डिजाइन तैयार किए और यह डिजाइन लोगों को बहुत सुंदर और आरामदायक लगी। लक्ष्य अरोरा बताते हैं कि हम लोगों ने शुरुआती दौर में सिर्फ एक ही प्रोडक्ट पर ध्यान दिया और उसी प्रोडक्ट में काफी बदलाव किए, फुटवियर में पेटेंट फूट लगाए जिससे लोगों को जूते पहनने से उन्हें पैर ना कटे और इसमें एंटी स्लिपर सोल और आर्च सपोर्ट का भी इस्तेमाल किया जिससे लोग फिसलें ना और ज्यादा देर जूते पहनने से पैरों में दर्द ना हो। इसके अलावा हमने जूतों की क्वालिटी को भी काफी बेहतर बनाया।
कई तरह के जूते-चप्पल बनाए
यह बताते हैं कि हमने साइज का स्टैंडर्डाइजेशन किया जिसे लोग अपने साइज के जूते-चप्पल खरीद सकें। जब हमने इस व्यवसाय की शुरुआत की थी। तब हमारा जूते का पहला पीस लोगों को काफी पसंद आया। जिसकी वजह से हमने इस व्यवसाय में और मेहनत करने लगे। और आज हमारे पास एथनिक कैजुअल शूज के लगभग 60 आर्टिकल हैं। लक्ष्य अरोरा ज्यादातर देसी डिजाइन और मॉडल लुक में शूज बनाते हैं। लड़कों और लड़कियों के लिए एथेनिक और कैजुअल शूज भी बनाए जाते हैं।
चप्पल के कारोबार में बढ़ोत्तरी
लक्ष्य अरोरा बताते हैं कि हमने इस व्यवसाय को करने के बारे में कभी सोचा नहीं था और नहीं हम इस व्यवसाय के बारे में कुछ जानते थे परंतु जब हम तीनों दोस्त ने कोल्हापुरी चप्पल (Kolhapuri Chappal) बनाने वाले कारीगर से मिले तो हमें इनका काम काफी पसंद आने लगा और हम तीनों दोस्त इन काम में जुड़ गए जब हमने इस व्यवसाय को स्टार्ट किया था तब हम 2 कारीगर और सिर्फ 5 हजार रुपए से स्टार्ट किया था। शुरुआती दौर में हम लोग को यह काम कॉफी कठिन लगता था। और उससे भी ज्यादा यह काम कठिन था की हम कारीगरों का विश्वास कैसे जीते हैं। उन कारीगरों को लगता था कि यह बच्चे इस काम को कैसे करेंगे और इनकी आमदनी कैसी होगी। परंतु जब हमारा व्यवसाय धीरे-धीरे बढ़ने लगा। और कारीगरों की कमाई होने लगी। इसे देखकर और भी कई कारीगर हमसे जुड़ने लगे। और हम लोगों ने भी अपने बढ़ते व्यवसाय को देख कर अपना व्यवसाय और बढ़ाने लगा।
ये बताते हैं कि जो कारीगर अपना काम छोड़कर किसी और शहर में जाकर मेहनत मजदूरी करते थे। वह आज हमारे इस काम को देख कर हमारे यहां काम करने लगे। आज हमारे पास लगभग 90 कारीगर हैं। हम हर कारीगर को 12 हजार रुपए प्रति महीना देते हैं। हमारे इस कंपनी में 50% महिलाएं भी काम करती है और पहले के मुकाबले इन लोगों की कमाई 4 गुना ज्यादा बड़ी है। हम आगे और प्रयास कर रहे हैं कि हम अपनी इस व्यवसाय में और कारीगरों को जोड़ें।
करोड़ों की आमदनी
लक्ष्य बताते हैं कि हमने देसी हैंगओवर (Desi Hangover) का नाम इसलिए दिया कि यहां के लोग विदेश से आई हुई चीजों का काफी वैल्यू करते हैं। लेकिन वे लोग अपने देसी चीजों का वैल्यू काफी कम देते हैं। इसीलिए हम तीनों दोस्तों ने यह तय किया कि अपने देश में इस प्रोडक्ट को बनाकर अपने देश की चीजों को अपने देश के बजाय विदेशों में भी बेचा जा सके। जिससे हमारे देश के भी चीजों का वैल्यू विदेशों में हो। ये बताते हैं कि आज इन कारीगरों की वजह से हमारा व्यवसाय काफी बड़ा है। और इन कारीगरों को मान सम्मान देना हमारा कर्तव्य बनता है। वर्तमान में हमने लगभग देश के 100 आउटलेट के साथ जुड़े हुए हैं। जहां पर हमारे ब्रांड के शूज बिकते हैं इनमें Fabindia, Jade blue, Nimantran Ethnic wear, Ajay Arvindbhai Khatri और Options शामिल हैं। इसके साथ-साथ विदेशी कंपनियों अलावा सिंगापुर, अमेरिका और मलेशिया जैसे बड़ी कंपनियां भी हमारा साथ दे रही है। इस व्यवसाय से हम सलाना लगभग ढाई करोड़ रुपए की कमाई करते हैं।
आभा बताते हैं कि हम अपने इस व्यवसाय में पर्यावरण का काफी ध्यान रखते हैं। और हम जानवरों को मार कर के इनके चमड़े से जूते नहीं बनाते हैं। जो जानवर प्राकृतिक रूप से मर जाते हैं। उन्हीं के चमड़े से हम जूते बनाते हैं। इन जूतों में हल्दी और हरड़ का उपयोग करते हैं। इसे बनाने में पानी का इस्तेमाल नहीं होता है। हम इसकी रॉ मटेरियल चेन्नई और महाराष्ट्र के अलग-अलग जगहों से मंगाते हैं। और जूते बनाने का काम हमारी यूनिट में ही होता है। जो यह मिराजगांव में स्थित है।