देश में प्रत्येक साल होने वाली यूपीएससी के एग्जाम में वैसे तो लाखों कैंडिडेट्स शामिल होते हैं लेकिन सफलता उन्ही को मिलती है जो इसे पूरे करने के लिए दिन रात एक करके कड़ी मेहनत करता है। आज हम आपको एक ऐसे हीं युवा की कहानी से रूबरू कराने वाले हैं, जिन्होने पहले हीं प्रयास में यूपीएससी के एग्जाम को क्रैक कर कामयाबी हासिल की है।
कौन हैं युवा?
हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र (Maharashtra) के एक आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रशांत सुरेश डगले की, जिन्होंने UPSC CSE 2021 में 583वीं रैंक हासिल कर अपने परिवार के साथ साथ पूरे आदिवासी समाज को गौरवान्वित महसूस करवाया।
बता दें कि, प्रशांत सुरेश डगले का जन्म 2 अगस्त 1997 को महाराष्ट्र के आदिवासी गांव चिंचवणे, अकोले, अहमदनगर ने हुआ था। इनके पिता का नाम सुरेश महादू डगले है, जो नासिक में एग्रीकल्चर विभाग में काम करते है। चूकि पिता नासिक में काम करते थे इसलिए इनका पूरा परिवार नासिक में ही रहता है।
बचपन से हीं सिविल सर्विस में जाने के सपना संजोया
प्रशांत सुरेश डगले ने जवाहर नवोदय विद्यालय, खेड़गांव नासिक से अपनी 6 से 12वीं तक की पढ़ाई पूरा किया।
उनका बचपन से हीं सिविल सर्विसेज में जाने का सपना था, जिसे उन्होंने कड़ी मेहनत कर पूरा भी किया। उन्होंने बताया कि, 12 में अच्छे मार्क्स मिलने के बाद मुझे आगे बढ़ने का बहुत हौसला मिला।
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सफलता पाने में मां का था अहम योगदान
प्रशांत सुरेश डगले ने बताया कि, मुझे यूपीएससी में सफलता प्राप्त करने में सबसे बड़ा योगदान मां का रहा है।
बता दें कि, उनकी मां भी अफसर बनने की चाहता रखती थी। वे अपने गांव की पहली ग्रेजुएट महिला थीं। वो आगे पढ़ाई कर सकती थी लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण वो आगे नहीं पढ़ सकीं। यही कारण था कि वो अपने बेटे को हमेशा यूपीएससी के लिए प्रेरित करती थीं।
नौकरी पर ध्यान न देकर किया यूपीएससी की तैयारी
उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि, 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हे डुअल डिग्री प्रोग्राम के तहत IISER पुणे में दाखिला लिया और कड़ी मेहनत कर एक अच्छा परिणाम हासिल किया। उसके बाद उनके पास नौकरी के अच्छे अवसर थे लेकिन उन्होंने यूपीएससी की तैयारी के लिए कोई नौकरी ज्वाइन नही की। और इसी कड़ी मेहनत का परिणाम उन्हे यूपीएससी में देखने को मिली, पहले हीं प्रयास में सफलता पाकर।
ग्रामीण क्षेत्र के बच्चो के समस्या का करेगे निवारण
अपने इंटरव्यू में प्रशांत कहते हैं कि अब नवोदय विद्यालय के संदेश ‘शिक्षार्थ आइए, सेवार्थ जाइए’ को पूरा करने का वक्त आ गया है। चूकि वे नवोदय विद्यालय के छात्र रह चुके हैं, इसलिए वहां पढ़ाई करने आने वाले ग्रामीण अंचल के बच्चों के समस्याओं को अच्छे से जानते है। अगर उन्हे विशेष काम के लिए मौका मिलेगा तो वे ग्रामीण भारत के लिए काम करना चाहेंगे।