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जानिए कैसे मिर्ज़ापुर के दो युवाओं ने गाय के गोबर को बनाया आमदनी का जरिया?

क्या आप सोच सकते हैं कि गोबर भी आमदनी का जरिया बन सकता है? आपको जानकर हैरानी होगी मगर अब गोबर भी आमदनी का जरिया बन सकता है। पहले हमें लगता था कि गोबर का कोई इस्तमाल नहीं होता परंतु अब उसी गोबर से दो युवाओं ने कमाई का अच्छा जरिया बना दिया है। उनके इस पहल से अब गांव भी साफ रहने लगा है।

कर रहे वर्मी कम्पोस्ट बनाने का काम

मिर्जापुर ज़िले के सीखड़ गांव के रहने वाले दो दोस्त चंद्रमौली पांडेय (Chandramouli Pandey) और मुकेश पांडेय (Mukesh Pandey) गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बना रहे हैं। मुकेश पांडेय रुरल डेवलपमेंट से पोस्ट ग्रेजुएट हैं और ईडीआई बिजनेस स्कूल, अहमदाबाद (Ahmedabad) से एमबीए। साथ ही सात सालों तक उन्होंने नौकरी भी की है। मुकेश बताते हैं कि जब कभी हम गांव आते थे, तब देखते कि यहां सड़क किनारे पशुओं के गोबर का ढेर लगा रहता था।

Two friends from mirzapur earning through cow dung

आया वर्मी कम्पोस्ट बनाने का आइडिया

गांव मे जिनके पास गैस चूल्हा नहीं होता था, वही लोग गोबर के उपले बनाकर मिट्टी के चूल्हे पर अपना खाना पकाते थे। गोबर का केवल एक यही उपयोग था। वही कुछ लोग गोबर को पानी में डालकर खेत में बहा देते थे। कुछ लोग अपने खेतों में ऐसे ही फेंक देते थे। वहीं कुछ लोग सड़कों के किनारे बड़े-बड़े ढेर बना देते थे मगर उस गोबर का कोई उपयोग नहीं होता था। यही देख उन्हें वर्मी कम्पोस्ट बनाने का आइडिया आया।

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1500 रुपए प्रति ट्राली खरीदते हैं गोबर

वर्मी कम्पोस्ट के काम से दोनों दोस्त ना सिर्फ़ अच्छी कमाई कर रहे हैं, बल्कि इसके जरिए ग्रामीणों की भी आमदनी हो‌ रही है। चन्द्रमौली बताते हैं कि हमने गोबर का रेट तय कर दिया है। वह 1500 रुपए प्रति ट्राली गोबर खरीदते हैं, अच्छी कीमत मिलने के कारण पूरे गांव के लोग उनसे गोबर बेचने लगे हैं। उनके इस प्रयास से गांव भी साफ रहने लगा है। गोबर बेचने के लिए पशुपालक भी अब गोबर इकट्ठा करने लगे हैं। इसके जरिए पशुपालकों को बिना मेहनत अच्छी कमाई हो रही है।

देश के कई राज्यों से हो रही मांग

चंद्रमौली और मुकेश मिर्ज़ापुर से उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों के साथ-साथ देश के अन्य राज्य जैसे- दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में वर्मी कम्पोस्ट भेज रहे हैं। चन्द्रमौली कहते हैं कि नाबार्ड और कृषि विभाग की मदद से ही वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाने का काम शुरू हुआ था। अब उनके द्वारा बनाए गए खाद की मांग दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में हो रही है।

केंचुआ द्वारा सालाना हो रही पांच लाख रुपए की कमाई

दो दोस्तों द्वारा बनाई गई वर्मी कम्पोस्ट खाद की मांग देश के साथ-साथ अब विदेशों से भी हो रही है। अब वर्मी कम्पोस्ट खाद को विदेशों में भेजने की तैयारी की जा रही है। चंद्रमौली और मुकेश अब वर्मी कम्पोस्ट के साथ-साथ केंचुआ पालन का काम भी शुरू कर चुके हैं। वह अब लोगों को केंचुए भी बेचते हैं। चन्द्रमौली बताते हैं कि हम लोग अब केंचुआ पालन का काम भी कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने केवल 40 हज़ार रुपए का ऑस्ट्रेलियन प्रजाति का केंचुआ खरीदकर केंचुआ पालन का काम शुरू किया था, जिससे सालाना उन्हें पांच लाख रुपए की कमाई हो रही है।

सालाना 28 लाख का टर्न ओवर

चंद्रमौली और मुकेश बताते हैं कि एक किलो वर्मी कम्पोस्ट बनाने में करीब तीन रुपए खर्च होते हैं। और उसी वर्मी कम्पोस्ट को वह दस रुपए प्रति किलो बेचते हैं। चंद्रमौली बताते हैं कि हम एक, दो,पांच, दस, बीस और पचास किलो का पैक तैयार करते हैं। उनके अनुसार अभी वर्मी कम्पोस्ट का सालाना टर्न ओवर 28 लाख है। नर्सरियों में खाद की मांग ज़्यादा होती है। साथ ही किसान भी अपने खेत के लिए वर्मी कम्पोस्ट यहां से ले जाते हैं। मिर्ज़ापुर के उप कृषि निदेशक अशोक उपाध्याय (Ashok Upadhyay) का कहना है कि किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए सरकारी स्तर पर मिलने वाली सुविधाओं का लाभ लेकर किसानों की टीम बनाकर इस योजना को शुरू किया गया।

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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