वैसे तो आजकल खेती का प्रचलन अधिक बढ़ चुका है लेकिन जो इस पारम्परिक खेती से अलग हटकर खेती करतें हैं वह सभी के लिए मिसाल कायम कर रहे हैं। सभी व्यक्तियों को उनसे बहुत कुछ सीखने का अवसर मिल रहा है। आज हम आपको ऐसे 2 दोस्तों के बारे में बताएंगे जो विदेशों में रहकर पढ़ाई किए लेकिन उन्होंने अपने स्वदेश आकर खेती करनी शुरू की। इन दोनों ने मिलकर फूलों की खेती से अधिक लाभ कमाकर सभी के लिए प्रेरणा कायम किया है।आइए जानते हैं इन दोनों दोस्तों के विषय में…
मनिंदर पल सिह रियार (Maninadar Pal Singh Riyar) और मनजीत सिंह तुर (Manjit Singh Tur) दोनों दोस्त पंजाब (Punjab) से ताल्लुक रखते हैं। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि जब उन्होंने विदेशों में पढ़ाई की तो यहां आकर खेती क्यों की??? इन दोनों ने कनाडा में अपनी पढ़ाई पूरी की। अब हमारे देश के ये दोनों मॉर्डन किसान हैं जिन्होंने अपने गुलाब के सुंगध से पूरे देश को खुशबूदार बनाया है।
पारम्परिक खेती को छोड़ा
इन्होंने पारंपरिक खेती को ना अपनाकर अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए गुलाब की खेती शुरू की। इनके फार्म में जो भी गुलाब के फूल उगते हैं उनका गुलाब और तेल बनाया जाता है तब उसका उत्पादन किया जाता है। इतना ही नहीं इनके गुलाब के फूल हिमाचल प्रदेश के चिंतपूर्णी और ज्वालामुखी के मंदिर में जाकर लोग वहां फूल को चढ़ाते भी है। यह सिर्फ गुलाब की खेती ही नहीं बल्कि इन्होंने ऐसा प्लांट भी बनाया है जहां से गुलाब का रस निकाला जाता है।
पथरीली जमीन पर की खेती
एक आश्चर्यजनक बात यह भी है कि इन दोनों ने कोई ऊपजाऊ भूमि पर खेती नहीं की बल्कि इन दोनों ने शिवालिक में बंजर जमीन को खरीदा और फिर उसे अपनी मेहनत से उपजाऊ बनाया। अगर आप इनकी खेती को देखेंगे तो यह नहीं कह सकते कि यह बंजर जमीन थी। उसे देख अत्यंत मनोरम और जन्नत के समान दिखता है।
शुरुआत किसी और कार्य से हुई थी
ऐसा नहीं कि शुरुआती दौर में इन्होंने गुलाब की खेती को हीं अपनाया। पहले इन्होंने सॉस और और अचार बनाने का कार्य शुरू किया था। यह आंवले के अचार और सॉस बनाने लगे लेकिन वे इस कार्य में असफल रहे इसलिए इन्होंने गुलाब की खेती करने का निश्चय किया और इस तरफ अग्रसित हुए। गुलाब की खेती का आरंभ करने से पहले इन्होंने सारी जानकारी इकट्ठा की और इसका प्रशिक्षण लिया फिर इसमें अपना लक आजमाया।
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पहले हुआ हानि
मनिंदर ने अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री कनाडा से हासिल की है। इन दोनों दोस्तों को अपनी खेती को बढ़ाने और विकसित करने में लम्बा अरसा 4 साल लगा। लेकिन इन्होंने इसका निर्यात पहले सी शुरू कर दिया। वे फ्रेंच कम्पनी जो न्यूयॉर्क में है वहां अपने गुलाब जल और तेल निर्यात के लिए भेजने लगे। लेकिन इन्हें इसमे मुनाफा नहीं हुआ क्योंकि यह उत्पादन निश्चित मात्रा में नहीं कर पा रहें थे। तब इन्होंने अपने उत्पाद को हमारे देश के बाजारों में कम लाभ पर निर्यात किया।
40-60 किलो गुलाब का मिलने लगा ऑर्डर
आगे चलकर ही इन्होंने सोंचा कि क्यों हम अलग-अलग गुलाब को उगायें। तब एक फ्रेंड ने पिंक बोरबोनियाना और दूसरे ने रेड रोजा दमासेन गुलाब अपने खेतों में लगाया। अब इन्हें सफलता मिली और 80 किलोग्राम फूलों की प्रतिदिन बिक्री होने लगी। अगर फूलों की मांग कभी कम हुई तो वह 40 किलो तो जरूर हुआ करती थी। वे खेतों की उर्वरा का भी ध्यान बहुत अच्छी तरह से रखते हैं। अब इनकी मेहनत रंग लाई है और इन्होंने खेती में अधिक सफलता हासिल कर ली है।
35 मजदूर करतें हैं प्रतिदिन काम
इनके खेतों में 35 मजदूर कार्य करते हैं जिनकी एक दिन की आमदनी 250 रुपये प्रतिदिन की है। साथ हीं इन दोनों की आमदनी गुलाब के तेल से 6 लाख तक है।
बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर उसमें गुलाब की खेती करने जैसे बेहतरीन कृषि के लिए The Logically दोनों दोस्तों को सलाम करता है।