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गांव की व्यवस्था से हुए परेशान, MBBS के बाद ठुकराई लाखों की नौकरी और पहले ही प्रयास में बने IAS अधिकारी

अक्सर हम देखते है, सरकारी कार्यालयों में कोई भी कार्य करवाने के लिये घंटो लाईन में खड़े होकर इंतजार करना पड़ता है, फिर भी काम हो जायेगा इसकी गारंटी नहीं होती है। कई बार तो आम नागरिक को फटकार लगाकर वापस जाने के लिये बोल दिया जाता है। ना जाने कई दफा दफ्तरों में आना-जाना जैसे भाग-दौड़ सी जिंदगी हो जाती है। हम कह सकते हैं कि सराकारी दफ्तरों में कार्य करवाना पहाड़ चढ़ने जैसा लगता है। आज हम आपकों एक ऐसे ही डॉक्टर के बारें में बताने जा रहें हैं, जिसने सरकारी कार्यालयों में काम नहीं होने और ऑफिसरों द्वारा अपने साथ बदसलूकी करने की वजह से डॉक्टर से IAS बनकर एक बहुत ही सुन्दर मिसाल कायम किये हैं।

IAS अधिकारी बनना पैसे कमाने या फिर किसी अन्य नौकरी की तरह करियर को चमकाना ही नहीं होता है। इस पद की अपनी एक अलग भुमिका होती है, अलग गरिमा और मान-सम्मान है। सारे सिस्टम का कर्ता-धर्ता IAS अधिकारी को ही माना जाता है। इसका उदहारण हैं, धीरज कुमार सिंह। इन्होनें आईएएस ऑफिसर बनने के लिये MBBS और MD की पढाई करने के बाद 5 लाख की तनख्वाह वाली नौकरी को ठुकरा दिया।

ias dheeraj Kumar Singh

धीरज कुमार सिंह (Dheeraj Kumar Singh) गोरखपुर (Gorakhpur) के रहनेवाले हैं। यह मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में ही पले-बढ़े हैं। धीरज की 12वीं तक की शिक्षा-दीक्षा गांव के पास के एक हिंदी माध्यम स्कूल से हुईं। 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद धीरज ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से MBBS और MD किया। वे बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे। धीरज ने अच्छे नम्बरों से MBBS और MD का इंटरेन्स परीक्षा पास करने के साथ-साथ अच्छे नम्बरों से डिग्री भी हासिल किया। पढ़ाई में अधिक समय लगाने के बाद वह मेडिकल ट्रीटमेंट के लायक हो गये थे।

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धीरज की मां की तबियत अक्सर खराब ही रहती थी। उनके पिताजी दूसरे शहर में नौकरी करते थे। इसलिए धीरज को अक्सर बनारस से गांव तक के सफर को तय करना पड़ता था। उन्हें कई बार सप्ताह में घर आना पडता था, जिसकी वजह से उनकी पढाई बहुत अधिक बाधित होती थी। धीरज ने इस समस्या का हल सोचा कि यदि वे बड़े अफसरों से विनती कर के अपने पिता का ट्रांसफर अपने शहर में ही करा ले तो बहुत अच्छा होगा। धीरज ने जब बड़े अधिकारियों से इस बारे में बात की तो अधिकारियों ने उनका कार्य नहीं किया और उनके साथ बहुत ही खराब तरीके से बात की। तब धीरज ने विचार किया कि यदि मैं इतना पढ़-लिख कर डॉक्टर होने के बाद भी अपने एक छोटे से कार्य को नहीं करा पाया तो यहां आम नागरिक की क्या स्थिति होती होगी। धीरज के मन में यह बात बैठ गईं। उसके बाद धीरज ने अपनी मेडिकल की पढ़ाई को वहीं छोड़कर सिविल सर्विस परिक्षा में बैठने और एक IAS अधिकारी बनने का दृढ संकल्प किया।

धीरज के मेडिकल छोड़ आईएएस बनने के इस फैसले को सुनकर उनके दोस्त और घरवाले काफी हैरान थे। उनके माता-पिता के साथ कई अन्य दोस्तों ने समझाने की बहुत कोशिश की कि एक बना बनाया करियर छोड़कर दूसरे रास्ते पर जाना ठीक नहीं होगा। यह मानकर धीरज ने निर्णय लिया कि यदि वे पहले प्रयास में सिविल सर्विस की परीक्षा में उतीर्ण नहीं हुयें तो वे वापस मेडिकल क्षेत्र में आ जायेंगे।

धीरज के लिये IAS बनना उनके करियर से अधिक महत्त्वपूर्ण व्यव्स्था में सुधार लाना था। अपने साथ हुये घटना के बाद उन्होंने सिस्टम का हिस्सा बनकर उसे बदलने का निश्चय कर लिया था। धीरज ने अपनी पूरी लगन और मेहनत के साथ परीक्षा की तैयारी की। उन्होने हर विषय को महत्वपूर्ण समझकर सभी का बहुत ही गहराई से अध्ययन किया। परीक्षा की तैयारी करने के लिये उन्होंनें कोचिंग की सहायता भी ली। कहा जाता है न, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। धीरज की मेहनत भी रंग लाई। वे यूपीएससी (UPSC) में पहले ही प्रयास में सफल रहे और उन्होंने वर्ष 2018 की यूपीएससी की परीक्षा में ऑल ओवर 64वीं रैंक हासिल हुईं। आज उनके पिता और उनके मित्र सभी उनपर गर्व की अनुभूति करते हैं।

The Logically धीरज कुमार सिंह के निर्णय और साहस को सलाम करता है। अपने बने बनाए डॉक्टर का करियर और 5 लाख महीने वाली नौकरी छोड़ IAS बनने तक धीरज का सफर बेहद प्रेरणादायक है।

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