वक्त हीं एक ऐसा सच्चा हथियार है जिस पर कभी भी किसी का कोई वश नहीं चलता। वक्त इंसान को जमीन से आसमान तक पहुंचा सकता है और वक्त हीं इसे उतार सकता है। वक्त बदलते देर नहीं लगती, एक पल में जिंदगी पलट जाती है। ये जिंदगी किस तरह पलट जाती है वही आज मैं आपको एक कहानी के माध्यम से बताने जा रहा हूं। दरअसल, ये कहानी उर्वशी यादव की है जिन्होंने कभी गुरुग्राम में करोड़ों के घर में रहने वाली उर्वशी को सड़क किनारे ‘छोले कुलचे’ बेचने पड़े थे। और आज वे सम्पन्न और समृद्ध हैं। आखिर ये काम इन्हे क्यों करना पड़ रहा था। आईए जानते हैं…
उर्वशी(Urvashi) के जीवन के रास्ते में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन वे कभी रुके नहीं। उन्होंने अपनी मेहनत को कभी कम नहीं होने दिया। साथ हीं खुद पर विश्वास बनाए रखा जिसकी आवश्यकता सभी के जीवन में होती है। दरअसल, उर्वशी का सफर छोले कुलचे की रेड़ी से शुरू हुआ था, जिसके बाद आज वो एक रेस्तरां पर जाकर खत्म हुआ। हकीकत में उर्वशी की कहानी साहस और हौसले की जोरदार मिसाल है।
दरअसल, उर्वशी की शादी गुरुग्राम के एक अमीर घर में हुई थी उनके पति अमित यादव एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में अच्छी नौकरी करते थे। घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी। उर्वशी अपने परिवार के साथ गुरुग्राम में एक आलिशान जिंदगी जी रही थी। उन्हें कभी एहसास भी नहीं हुआ था कि इस आलिशान जिंदगी में ऐसा बदलाव आएगा कि उनके परिवार को पाई-पाई का मोहताज होना पड़ेगा। जो को उर्वशी के लिए सोच पाना भी मुश्किल सा था।
दरअसल, 31 मई 2016 के दिन गुरुग्राम में उर्वशी के पति अमित का एक एक्सीडेंट हो गया। यह एक्सीडेंट इतना भयावह था कि अमित को कई सर्जरी से गुज़रना पड़ा। जिसके बाद डॉक्टरों ने अमित की सर्जरी तो कर दी थी, पर उनकी चोट काफी गहरी थी। अमित को अपनी इस चोट के कारण काम करना भी संभव नहीं था। जिसके कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी। अमित के नौकरी छोड़ने के बाद से ही परिवार में धीरे-धीरे सब कुछ बदलना शुरू हो गया।
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उर्वशी(Urvashi) के लिए सबसे दुख की बात ये थी कि इनके परिवार में अमित की नौकरी के सिवा कोई और कमाई का जरिया नहीं था। जिसकी वजह से बैंक में जमा सारा पैसा धीरे-धीरे खत्म हो रहा था। बैंक में बचे पैसों से अमित की दवाईयां, बच्चों की स्कूल फीस और घर के राशन में ही खत्म हो गया। फिर आगे के दिन गुजारने के लिए उनके पास कुछ बचा हीं नहीं था। जिससे वो ज्यादा कुछ सोच भी पाते। जिसके बाद अचानक हुई पैसों की तंगी ने पूरे परिवार का जीवन बदलकर रख दिया था। उर्वशी के लिए ये समय किसी बड़े इम्तेहान से कम नहीं था।
ये तो स्वाभाविक है कि बिना पैसों का एक पल भी बीतना मुश्किल सा होने लगा था। अभी भी अमित के ठीक होने में बहुत वक्त था। इस विकट परिस्थिति में अपने परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी उठाते हुए उर्वशी ने काम करने की इच्छा जाहिर की। हालांकि इससे पहले उन्हें नौकरी करने का कोई अनुभव भी नहीं था। जिसके वजह से उन्हें कोई ऐसा काम ढूंढना था, जिससे वो आसानी से कर सकें। क्योंकि उनके लिए सब कुछ नया सा था।
दरअसल, उर्वशी अंग्रेजी जानती थीं। जिसके चलते उन्हें एक नर्सरी स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई। पैसे कम थे पर उस समय एक-एक पाई भी उनके लिए जरूरी बन गया था। कुछ समय तक उर्वशी ने टीचर की नौकरी की पर उससे कमाया पैसा पर्याप्त नहीं था। परिवार में खर्चे बहुत ज्यादा थे, लेकिन पैसे बहुत कम मिलते थे। इसलिए उन्हें कुछ ऐसा करना था जिससे अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सकें
अंग्रेजी के बाद खाना बनाने की कला ही एक ऐसा विकल्प था, जो उर्वशी के लिए कोई मार्ग प्रशस्त कर सकता था। हालांकि, उनके पास इतना भी पैसा नहीं था कि अपनी एक छोटी सी दुकान खोल सकें। इसके चलते उन्होंने आखिरी में फैसला किया कि दुकान ना सही पर वो एक छोटा सा ठेला जरूर लगा सकती हैं।
इसके बाद उर्वशी ने परिवार में बताया तो सबने उनका विरोध किया। उनसे सभी कहने लगे कि वे पढ़ी-लिखी हैं और अच्छे घर से हैं, उनका यूं ठेला लगाना परिवार की प्रतिष्ठा के लिए ठीक नहीं है। इस वजह से हर कोई उनके खिलाफ था, पर उर्वशी जानती थीं कि परिवार की प्रतिष्ठा से उनके बच्चों का पेट नहीं भरेगा। उसके लिए पैसों की जरूरत होगी। इसलिए उन्होंने किसी की एक नहीं सुनी और छोले-कुलचे का ठेला खोलने का फैसला कर लिया।
उर्वशी(Urvashi) के लिए ये सफर मुश्किल जरूर था लेकिन इनका हौसला भी जोरदार था। जो महिला कभी AC के बिना नहीं रही है, जो महिला गाड़ियों में सफर किया करती थी। जो महिला बड़े रेस्तरां में खाया करती थी। आज वो गुरुग्राम के सेक्टर 14 की कड़ी धूप में खड़ी थी। चूल्हे की आग और तेल से निकलते धुएं के बीच उन्हें खाना बनाना था। छोले-कुलचे का ये ठेला चलाना उनके लिए आसान नहीं था। निश्चित तौर पर उर्वशी के लिए ये निर्णय बहुत हीं चुनौतीपूर्ण था।
हालांकि उर्वशी जानती थीं कि परेशानियां कई आएंगी, लेकिन अपने परिवार के लिए उन्हें हर परेशानी का सामना करना था। उर्वशी के परिवार का मानना था कि वह कुछ ही दिनों में ये सब बंद कर देंगी, लेकिन कुछ ही महीनों में उर्वशी का यह ठेला पूरे इलाके में प्रसिद्ध हो गया।
लोग ना सिर्फ उर्वशी के स्वादिष्ट छोले-कुलचे से, बल्कि उनके लहजे से भी प्रभावित थे। क्योंकि लोगों ने भी कभी किसी इंग्लिश बोलने वाली महिला को इस तरह ठेला लगाते नहीं देखा था। उर्वशी इतनी प्रसिद्ध हो गई थी कि अब गुरुग्राम के दूसरे इलाकों से भी लोग उनके पास आने लगे थे। शुरुआती दिनों में ही उन्होंने दिन में 2500 से 3000 रूपए कमाने शुरू कर दिए थे। जिसके बाद उर्वशी के हौसले को और बल मिला।
अब उर्वशी की मेहनत रंग लाने लगी थी। कुछ वक्त बाद उनके परिवार ने भी उनका पूर्ण सहयोग दिया लेकिन अकेले अपने दम पर उर्वशी ने घर का खर्च उठा लिया था, जो गर्व का विषय था। धीरे-धीरे लोगों की कतारें लगना शुरू हो गया। जिसके बाद उनका यह ठेला अब एक सफल बिजनेस का रूप ले चुका था। वह प्रति माह इतना पैसा कमा रही थीं कि अपने पति के ठीक होने तक घर की सारी जिम्मेदारी उन्होंने अपने कंधों पर उठाए रखी। एक बार जैसे ही उनके पति ठीक हुए तो घर के आर्थिक हालात फिर स्थिर होने लगे। जैसे ही सब ठीक हुआ तो उर्वशी ने इस छोटे से ठेले को एक रेस्तरां का रूप दे दिया। जिसके बाद आज उनके रेस्तरां में छोले कुल्चे के साथ-साथ कई और भी पकवान हैं पर उनके छोले-कुलचे आज भी लोगों के दिल और जुबां पर छाया हुआ है।
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उर्वशी(Urvashi) ने अपनी इस बहादुरी कृत्य से दुनिया को बता दिया कि वक्त कितनी भी खराब क्यों न हो अपनी काबिलियत पर भरोसा रखो और अगर आप इसका धैर्यपूर्वक सामना करते हैं तो उस विपरीत परिस्थिति का अंत भी सुनिश्चित है।