पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जा रहे हैं, जिसमें सबसे जरूरी है प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करना क्योंकि प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है, जिसका विघटन बहुत मुश्किल होता है जिसके कारण यह पर्यावरण को दूषित करता है।
यदि हम नियमित रुप से हर घर में प्रयोग होने वाला एक सेनेटरी पैड की बात करें तो उसमें 90 फीसदी से ज्यादा प्लास्टिक होता हैं, जो चार प्लास्टिक बैग के बराबर है। जानकारों के अनुसार एक सेनेटरी पैड को डिस्पोज होने में 500 से 800 साल का समय लगते हैं। पिछले कुछ समय से भारत सरकार इस मुहिम में जुटी हैं कि हर लड़कियों और महिलाओं तक सेनेटरी पैड पहुंच सके। हालांकि इसके निस्तारण का अब तक कोई सुरक्षित इंतजाम नहीं किया गया है।
लक्ष्मी देवी का अनुभव
सेनेटरी पैड का उपयोग कर रहे ज्यादातर लड़कियों और महिलाओं को यह नहीं पता है कि पैड के इस्तमाल के बाद उसका सुरक्षित निस्तारण कहां करें। झारखंड के रांची जिले के सिल्ली प्रखंड की रहने वाली 24 वर्ष लक्ष्मी देवी (Lakshmi Devi) बताती हैं कि पहले मैं कागज में या प्लास्टिक में लपेटकर सेनेटरी पैड जंगल में फेक देती थी, लेकिन अक्सर कुत्ते उसे टांगकर वापस गाँव के अन्दर ले आ जाते थे जो अच्छा नहीं लगता था इसलिए लक्ष्मी अब पैड फेकने के बजाए गड्ढे खोदकर उसमें डाल देती हैं और ऊपर से मिट्टी डाल देती हैं।
इस तरह के उपाय से लक्ष्मी पैड को वापस गांव में आने से तो रोक लेती है परंतु इसका असर पर्यावरण पर पड़ता है, जिसमें लक्ष्मी की कोई गलती नहीं है क्योंकि पिछले कुछ समय में सेनेटरी पैड को लेकर बहुत ज्यादा विज्ञापन हुआ और हर किसी को इसका इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया गया लेकिन अब तक इसके निस्तारण का कोई भी तरीका नहीं बताया गया। यहीं वजह है कि पैड का इस्तमाल कर रही हजारों महिलाएं लक्ष्मी की तरह पैड निस्तारण कर रही हैं। हालांकि रिर्पोट के अनुसार यह तरीका एक गम्भीर चिंता का विषय बना हुआ है।
57 फीसदी महिलाएं और किशोरियां सेनेटरी पैड का उपयोग करती हैं
लक्ष्मी की ही तरह देश में 57 फीसदी महिलाएं और किशोरियां सेनेटरी पैड का उपयोग करती हैं, लेकिन अब तक इसके निस्तारण का कोई सुरक्षित इंतजाम नहीं है। यहीं वजह हैं कि आपको राह चलते कूड़े के ढेर में, तालाबों में, खेतों में, स्कूल के पीछे तथा सड़कों पर इस्तेमाल किए सेनेटरी पैड दिख जाता है। आपको बता दें कि यह पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों को ही नुकसान पहुंचाता हैं। सेनेटरी पैड के बजाय अगर महिलाएं तथा लड़कियां मेंस्ट्रूअल कप का प्रयोग करें तो यह हमारे पर्यावरण के लिए बेहद लाभदायक होगा।
एक मेंस्ट्रुअल कप (Menstrual Cup) का उपयोग दस साल तक के लिए किया जा सकता है
बता दें कि मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग दस साल तक के लिए किया जा सकता है और जब यह डिस्पोज किया जाएगा तब भी यह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इको फेम्मे के रिपोर्ट के अनुसार एक सेनेटरी पैड में 90 फीसदी से ज्यादा प्लास्टिक उपयोग किया जाता है, जो चार प्लास्टिक बैग के बराबर होती है, जिसे डिस्पोजल होने में अभी तक इसके सूक्ष्म कण बनने में 500-800 साल लगते हैं। यही सब कारणों से प्लास्टिक के सूक्ष्म कण किसी ना किसी माध्यम से हमारे अन्दर जाते हैं। यूके के एक शोध के अनुसार एक बार के भोजन में 1,000 प्लास्टिक के सूक्ष्म कण हमारे अन्दर जाते हैं।
हर साल करीब 12 अरब सेनेटरी पैड कचरे के रूप में जमीन के अन्दर जाता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2015–16 के एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 48.5 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल होता हैं जबकि शहरों में 77.5 प्रतिशत महिलाएं उपयोग करती हैं। जिसके अनुसार से करीब 57.6 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती है। अब आप इन आंकड़ों के हिसाब से उपयोग किय हुए सेनेटरी पैड के ढेर का अंदाजा लगा सकते हैं।
एक शोध से पता चला है कि हर साल करीब 12 अरब सेनेटरी पैड कचरे के रूप में जमीन के अन्दर जाता है। आपको बता दें कि एक महिला द्वारा पूरे माहवारी चक्र के दौरान इस्तेमाल किए गए सेनेटरी पैड से करीब 125 किलो कचरा बनता है, जो हर महीने जमीनों के अंदर जा रहा है। यह पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंच रहा है।
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पर्यावरण के लिए बहुत नुकसानदायक
विशेषज्ञों के अनुसार आगे चल कर सेनेटरी पैड हमारे पर्यावरण के लिए बहुत गम्भीर खतरा बन कर सामने आएगा। ऐसे में अगर मेंस्ट्रुअल कप (Menstrual Cup) का प्रयोग हो तो पर्यावरण के हित में एक बेहद महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। फिरोजाबाद जिले के वीरपुरा गाँव की रहने वाली एएनएम प्रीती सिंह जनवरी महीने से मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग कर रही है।
वह बताती हैं जब पैड यूज करते थे तो दिनभर बदलने की झंझट रहती थी, जिस वजह से कई बार काम पर नहीं जा पाते थे। इसके अलावा दिन में पैड बार-बार कहाँ बदलेंगे और कहाँ फेकेंगे? इस बात की हमेशा चिंता रहती थी। हालांकि जब से वह मेंस्ट्रुअल कप का इस्तमाल शुरू की हैं, उसे ऐसी कोइ परेशानी नहीं हैं। एक बार सुबह लगा लेते हैं तो दिनभर बदलना नहीं पड़ता तथा इसे बार-बार फेंकने के लिए जगह भी नहीं खोजना। वह पिछले चार-पांच महीने से इसका उपयोग कर रहे हैं, जिसमें उन्हें कोई दिक्कत नहीं हो रही है।
मेंस्ट्रुअल कप के प्रयोग से मिल रहा है लाभ
प्रीति के जैसे ही मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग करने वाली फिरोजाबाद की 50 महिलाओ का सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। फिरोजाबाद की मुख्य विकास अधिकारी नेहा जैन द्वारा इसे जिले में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर जनवरी में 50 महिलाओं के साथ शुरू किया गया है जिसमें आशा, आशा संगनी, एएनएम भी शामिल हैं।मेंस्ट्रुअल कप को बढ़ावा देने के लिए नेहा ने इसे गिफ्ट के तौर पर देना शुरू किया। नेहा अपना अनुभव शेयर करते हुए बताती हैं कि चुनाव के समय जब मेरी ड्यूटी लगती थी तो दिन में कई बार पैड बदलना एक चुनौती का काम होता था। पहली बार जब उन्होंने मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग किया तो काफी आरामदायक रहा। – Use of menstrual cups instead of sanitary pads will benefit the environment.
मेंस्ट्रुअल कप की कीमत 500-700 रूपये है (Menstrual cup price)
खुद अनुभव करने के बाद नेहा को यह आइडिया आया क्यों न इसे बढ़ावा दिया जाए। वात्सल्य संस्था की मदद से उन्होंने 50 आशा, एएनएम के साथ एक मीटिंग शुरू की, जिसमें सभी को एक मेंस्ट्रुअल कप दिया गाया ताकि वह खुद पहले इसका उपयोग करें और जब उन्हें भी इससे लाभ मिले तब यही लोग इसका ग्रामीण स्तर पर प्रचार कर सकेंगे। मेंस्ट्रुअल कप में सिलिकॉन यूज होता है जो बॉडी के लिए सेफ है। इसे लगातर 12 घंटे तक उपयोग कर सकते हैं। एक बार इसे खरीदने के बाद 10 साल तक की आपकी छुट्टी। एक मेंस्ट्रुअल कप की कीमत 500-700 रूपये है। महंगा तो हैं लेकिन यह सिर्फ एक बार लगता है। दस साल बाद जब आप इसे डिस्पोज करेंगी तो यह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
गिफ्ट के बदले दे सकते हैं मेंस्ट्रुअल कप
नेहा का कहना हैं कि हम आमतौर पर किसी को भी 400-500 रूपये का गिफ्ट देते ही हैं तो क्यों न मेंस्ट्रुअल कप दें, जो हर लड़की और महिला के लिए जरूरी है। उन्होंने हमने अपने घर में काम करने वाली मेड को भी मेंस्ट्रुअल कप गिफ्ट किया है और वह इसका उपयोग करके काफी खुश हैं। हालांकि लॉकडाउन के दौरान यह काम थोड़ा रुक गया है। नेहा जैन बताती हैं कि आज भी मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग बहुत ही कम संख्या में हो रहा हैं। उसके उपयोग को लेकर कई तरह गलत धारणाएं भी बनी हुई हैं। एक मेंस्ट्रुअल कप सेनेटरी पैड से ज्यादा सस्ता है। हालंकि इसका पहली बार उपयोग करने के लिए ट्रेनिंग जब बहुत जरूरी है, बाद में इसका उपयोग भी आसान हो जाएगा।
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सेनेटरी पैड में डायोक्सिन और फ्यूरान नाम के तत्व पाए जाते है
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ नीलम सिंह बताती हैं कि सेनेटरी पैड का उपयोग पर्यावरण के अलावा महिलाओं के लिए भी हानिकारक है क्यूंकि सेनेटरी पैड में डायोक्सिन और फ्यूरान नाम के जो तत्व शामिल हैं वह कैंसर जैसी बीमारी को बढ़ावा देते हैं। अब जरुरी हैं कि मेंस्ट्रुअल कप को आम चर्चा का विषय बनाकर पब्लिक डोमेन में शामिल किया जाए जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसका उपयोग कर सकते हैं। डॉ नीलम सिंह के अनुसार 28 फीसदी लोग सेनेटरी नैपकीन को उपयोग कर क्रूज की तालाबों में फेक देते हैं। सेनेटरी पैड का टनों मलबा इकट्ठा हो जाता है। साथ ही यह कूड़े में ले जा सफाईकर्मियों के स्वास्थ्य के लिए यह हानिकारक है।
सरकार को उठाना चाहिए कोई ठोस कदम
गाँव में लोग कूड़ेदान का इस्तेमाल नहीं करते और लोग यहां वहां कचरा फेंक देते हैं जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक है। बता दें कि मेंस्ट्रुअल कप के उपयोग से कचरा इकट्ठा नहीं होगा। यह एक सस्ता और लम्बे समय तक चलने वाला प्रोडक्ट है। अभी जो लोग भी इसका उपयोग कर रहे हैं वो लोग इसके तमाम फायदे बताते हैं। उसके उपयोग को लेकर समाज में एक भ्रांति भी है कि इसे योनि में डालकर उपयोग किया जाता है, जिससे बच्चेदानी को नुकसान होने सकता, लेकिन यह धारणा गलत हैं। डॉ नीलम बताती हैं कि बड़े पैमाने पर इसके प्रचार की जरूरत है। इसके लिए सरकार को कोई ठोस कदम उठाने चाहिए।