Wednesday, December 13, 2023

Fish Farming: 1 एकड़ से लगभग 4 लाख की कमाई कर UP के किसानों ने बनाई नई राह, 40% की सब्सिडी भी मिल रही है

खेती कर हो चुके थे परेशान आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए अपनाया दूसरा रास्ता

जैसे की हम सब वाकिफ हैं, भारत देश को एक कृषि प्रधान देश भी कहा जाता है क्यूंकि भारत में रहने वाले लोगों में 70% लोग किसान है जो खेतों के ज़रिए अनाज उगाते हैं और वे लोग कृषि पर ही निर्भर रहते हैं। इस समय हमारे देश भारत में किसान कि जो हालत है वह किसी से छुपी हुई नहीं है, आये दिन किसानों के आत्महत्या कि खबरे हमें सुनने को मिलती रहती है। पर वो कहते हैं न जब जीवन में कुछ करने का जज़्बा हो तो सब मुमकिन है इसी सोच पर क़दम बढ़ाते हुए सुनीता देवी ने आत्महत्या की राह न चुनकर दूसरे काम पर अपना समय देना जरूरी समझा।

कौन हैं सुनीता देवी (Sunita Devi farmer)

सुनीता देवी 42 वर्षीय बहराइच जिले के ऐंचुवा गाँव की एक किसान हैं। जिन्होंने परंपरागत अनुसार अपनी डेढ़ एकड़ की जमीन पर सरसों और गेहूं की खेती की है। पर लगातार नुकसान के चलते सुनीता ने अब खेती न करने का फैसला किया। अब सुनीता ने मछली पालन और मुर्गी पालन को अपनी कमाई का ज़रिया बना लिया है।

सुनीता राजधानी लखनऊ से लगभग 175 किलोमीटर दूर स्थित गाँव में मछली पालन पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हुईं। उस प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए लगभग 40 किसान इकट्ठा हुए थे। सुनीता ने बताया की उनके पास डेढ़ एकड़ की जमीन है जिसमें से वह एक बीघा में मछली पालन (Fish Farming) में इस्तेमाल कर लेंगी ।

सुनीता ने उस दौरान ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (टीआरआईएफ) के ट्रेनर से कई सवाल किए
जैसे कि हमें मछली के अच्छी क्वालिटी के बीज कहां से मिल सकते हैं? एक मछली तालाब में पानी का तापमान क्या होना चाहिए?

आपको बता दे कि ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (टीआरआईएफ) एक जमीनी संगठन है, जो गैर-लाभकारी जल जीविका के सहयोग से बहराइच जिले में मछली उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए मछली पालकों के साथ काम कर रहा है। इसी के साथ किसानों को सही जानकारी मिल सके इसके लिए पिछले दिसंबर में ऐंचुवा गांव में किसानों के लिए एक्वा स्कूल भी स्थापित किया गया।

सुनीता की तरह बहराइच जिले के मिहिपुरवा ब्लॉक में 196 किसान मछली पालन में वैकल्पिक आजीविका की उम्मीद कर रहे हैं। किसान बाढ़ और राज्य में बढ़ते छुट्टा पशुओं की समस्या के कारण होने वाले नुकसान से तंग आ चुके हैं।

बहराइच के टीआरआईएफ के परियोजना प्रबंधक मुरारी झा ने बताया की वे ज्यादा से ज्यादा किसानों को मछली पालन में प्रशिक्षित करना चाहते हैं जिससे वो इंडिपेंडेंट बनेंगे। इसी के साथ सिर्फ एक एकड़ के तालाब में किसान एक लाख के निवेश से साल में चार लाख रुपये तक कमा सकते हैं।

मुरारी झा का कहना हैं की गांव में मछली की मांग अधिक है। अभी तक सिर्फ व्यापारी लखीमपुर खीरी और पीलीभीत जैसे पड़ोसी जिलों से मछली खरीदते और यहां बेचते थे। हम मछली पालन को बढ़ाना देना चाहते हैं ताकि स्थानीय किसानों को लाभ मिले। हमारा लक्ष्य हैं तीन साल में पंद्रह हजार किसानों से जुड़ना और उनकी आय बढ़ाने में मदद करना।

उत्तर प्रदेश मत्स्य पालन के प्रमुख हब की राह पर चल पड़ा हैं । मत्स्य विभाग द्वारा एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के पूर्वी जिलों ने 2020-21 में अंतर्देशीय मछलियों के कुल उत्पादन का 47 प्रतिशत दर्ज किया है।

Uttarpradesh farmers earning lakh by fish farming

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तालाब से बाजार तक का सफर

जल जीविका और टीआरआईएफ के साथ से स्थानीय किसानों को जलीय आजीविका अपनाने के लिए एक रोडमैप विकसित कर रहा है। जिसमें उनका लक्ष्य केवल इतना हैं की “आजीविका है जहां जल है”।

मछली पालन पिछले कई सालों से अपनाया जा रहा है लेकिन लोगों को इससे कोई खास फायदा नहीं हो रहा था और बहुत ही कम खर्चे वाली तकनीकों के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षण कर रहे हैं किसानों का जीवन बदल सके।

किसानों को प्रशिक्षण करने में उन्हें तालाब निर्माण का प्रशिक्षण देना, प्लवक को नियंत्रण में रखना, सरसों की खली, गाय के गोबर और गुड़ का उपयोग करके घर का कम लागत वाला चारा तैयार करना शामिल होता है। इसी के साथ ही इन विधियों के प्रयोग से आधे समय में मछली की वृद्धि सुनिश्चित हो जाती है।

मछली पालन की ओर जो भी किसान अपने क़दम बढ़ा रहे हैं उनका सबसे पहला काम तालाबों का निर्माण करना है। प्रधानमंत्री द्वारा लाई गई मत्स्य संपदा योजना के तहत, सरकार गरीब किसानों को अंतर्देशीय मत्स्य इकाई स्थापित करने की लागत का 40 प्रतिशत प्रदान करती है। यानी की एक एकड़ तालाब के निर्माण के लिए, लगभग तीन लाख रुपये की लागत लगती है तो लगभग आधा खर्च सरकार वहन करेगी।

एक एकड़ के तालाब में 5,000 मछलियों को ही रखा जा सकता है। प्रत्येक फिंगरलिंग की कीमत 3 रुपये है। मछलियां जैसे की रोहू, कतला, मृगल का आमतौर पर इस्तेमाल मछली पालन में किया जाता है।

बीजों को जुलाई और अक्टूबर के बीच छोड़ा जाता है। बीज, चारा, जाल (मछली को पक्षियों से बचाने के लिए) और मजदूर लागत की देखभाल के लिए 100,000 रुपये तक की आवश्यकता होती है और इसके साथ, छह महीने में पांच टन मछली उत्पादन की जा सकती हैं।

अगर कमाई की बात करे तो ये मछलियां सौ रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से भी बिकती हैं, तो भी शुद्ध मुनाफा चार लाख होगा। रोहू और कतला मछली ढाई सौ रुपये प्रति किलो बिकती है जिससे किसानों को बारह-पंद्रह लाख तक की कमाई होगी। हालांकि, कोई भी मरी मछली को बिना बर्फ के आठ घंटे से अधिक समय तक स्टोर नहीं कर सकता है। किसानों के पास बक्से हैं जहां चौबीस घंटे के लिए साठ किलोग्राम मछली स्टोर की जा सकती है।

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इंटीग्रेडेट फार्मिंग

मछली पालन में किसानों को प्रशिक्षण देने के अलावा, टीआरआईएफ स्थानीय लोगों को इंटीग्रेडेट फार्मिंग के लिए भी प्रशिक्षित कर रही है। जिसके माध्यम से किसान एक ही तालाब में मखाना, सिंघाड़ा या कमल के साथ-साथ मुर्गी और बत्तख पाल सकते हैं। इसी के साथ तालाब की सीमा का उपयोग मौसमी सब्जियां और फूल उगाने के लिए किया जा सकता है। जिन्हें रोजमर्रा के खर्चों को पूरा करने के लिए बेचा जा सकता है।

इसी प्रशिक्षक के चलते अब ऐंचुवा गांव की सुनीता देवी मुर्गी पालन करने की योजना बना रही हैं। सुनीता का कहना है की वह मुर्गियों को खिलाएंगी और उनकी बीट का उपयोग मछलियों को खिलाने के लिए करेंगी । हमने काफी साल चुल्हा-चौका में गुजारे दिए हैं और अब हम कमाना चाहते हैं, सुनीता ने यह बोला।

खेती को छोड़ मछली पालन को चुना

छुट्टा पशु फसलों को बर्बाद कर देते हैं जिसकी वजह से आज उत्तर प्रदेश में, हजारों किसान संघर्ष कर रहे है। इसीलिए एक्सपर्ट का मानना हैं कि खेती से ज्यादा जिले में मछली पालन एक बेहतर विकल्प है।

आवारा मवेशियों की समस्या इतनी अधिक है कि यदि किसान एक दिन में एक गाय को आश्रय में ले जाते हैं, तो दो और मवेशी कुछ दिनों के बाद फिर से खेतों में प्रवेश कर जाते हैं। किसान परेशान हो चुके है छुट्टा पशुओं से।

किसानों के अनुसार उन्होंने ने पिछले साल धान और गेहूं की एक एकड़ फसल से बारह से पंद्रह हजार रुपये कमाए। पर उनकी अधिकांश फसलें भारी बारिश में खराब हो गईं पर इसी जगह हम मछली पालन करते हैं, तो हमें इतना बड़ा नुकसान नहीं होगा। हम लाखों तक बड़ी आसानी से कमा सकते हैं और यह निश्चित रूप से धान और गेहूं की खेती का एक बेहतर विकल्प हैं।

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