Wednesday, December 13, 2023

बिना जमीन के उगा सकते हैं चारा, कनार्टक के इस किसान ने अनोखी खेती से किसानों को दिखाई राह

भारत गांवों का देश है और यहां पशु पालन आजीविकोपार्जन का एक मुख्य साधन है। यहां लोग कई तरह के पशुओं को पालते है, जैसे- भेड़, बकरियां, गाय अथवा भैंस आदि। परंतु आज के समय में पशुओं के चारे को लेकर लोगों को अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे कई लोग तो पशुओं को पालना ही छोड़ दिए हैं। चारे को लेकर गर्मियों में और अधिक सोचना पड़ता हैं क्योंकि गर्मियों में चारे का रेट और भी अधिक बढ़ जाता हैं। इस वक्त चारे के बजाए इन्हें कोई फूड सप्लीमेंट खिलाना पड़ता है। इसी से निजात दिलाने के लिए कर्नाटक के रहने वाले वसंत कामथ ने एक पहल की शुरुआत की है।

वसंत कामथ हाइड्रोपोनिक सिस्टम के सहारे बिना जमीन के चारा उगा रहे हैं। इस तरीके से चारा उगाने में नाम मात्र का पानी की आवश्यकता होती है और सबसे अच्छी बात है कि हफ्ते भर में ही चारा तैयार हो जाती है। आईए जानते हैं, इसके बारे में कुछ विशेष –

कर्नाटक के रहने वाले वसंत कामथ (Vasant Kamath) ने इसे राजस्थान, मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh), गुजरात (Gujarat) के साथ ही साथ अन्य कई राज्यों में किसानों को प्रोवाइड करा रहे हैं। इतना ही नहीं वे करीब 300 से अधिक जगहों पर इस तरह का हाइड्रोपोनिक सिस्टम डेवलप कर चुके हैं और सलाना करीब एक करोड़ रुपए उनका टर्नओवर है।

वसंत की आयु 38 साल है। उन्होंने इंजीनियरिंग किया है। उन्होंने करीब 12-13 साल तक उन्होंने कई अलग अलग कंपनियों में काम किया। उन्हें डेटा एनालिटिक्स के फील्ड में उनकी अच्छी पकड़ है। साथ ही इससे जुड़े कई प्रोजेक्ट को उन्होंने लीड भी किया है।

Vasant quited his job and started to grow fodder without land

रिसर्च की शुरुआत पर पानी बचाने का आइडिया

वसंत का कहना है कि वर्ष 2017 में उन्हें एक प्रोजेक्ट के दौरान यह मालूम हुआ कि कॉटन उगाने में सैकड़ों लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसके बाद फिर कपड़ा तैयार करने में बड़े लेवल पर पानी की जरूरत पड़ती है। इसे कम करने के लिए उन्होंने रिसर्च करना आरंभ किया। इन्होंने कहीं-कहीं से जानकारी जुटाने का प्रयास किया और स्टडी किया। इसके 2 साल बाद इन्होंने हाइड्रोपोनिक सिस्टम का एक मॉडल डेवलप किया, जिससे कम पानी में कॉटन उगाया जा सकता था। उनका यह प्रयोग भी सफल रहा इसके बाद इस तरह के जुड़े कई प्रोजेक्ट्स पर उन्होंने काम करना आरंभ किया।

वसंत बताते हैं कि जब वे मैसूर में एक प्रोजेक्ट कर रहे थे, उस वक्त उन्हें एक महिला मिली थी। उस महिला ने उन्हें बताया कि उसे चारे के लिए बहुत सारे मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं पानी की कमी की वजह से वे अपने पशुओं को हरा चारा नहीं खिला पाती थी। उन्होंने बताया कि दूसरे सप्लीमेंट्री प्रोडक्ट लाने के उन्हें बहुत दूर जाना पड़ता था और उसमें उनके पैसे भी अधिक खर्च होते थे।

Vasant quited his job and started to grow fodder without land

नौकरी छोड़ शुरू किया स्टार्टअप

वसंत ने बताया कि उन्हें यह महसूस हुआ कि चारे की यह समस्या केवल इसी महिला के साथ नहीं है बल्कि भारत के अधिकतर किसानों को भी इस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यही सोच कर उनके दिमाग में एक आईडिया आया कि वे ‘हाइड्रोपोनिक सिस्टम’ से चारा उगा सकते हैं, क्योंकि वे कॉटन का सफल प्रयोग कर चुके थे और कई लोग इससे सब्जियां भी उड़ा रहे थे। इसके बाद इसको लेकर उन्होंने रिसर्च और ट्रायल करना आरंभ कर दिया।

इसकेे बाद इन्होंने एक मॉडल तैयार किया जिसमें न के बराबर पानी की मदद से मात्र सप्ताह दिनों में ही पशुओं को खिलाने के लिए चारा तैयार होने लगा। तब वसंत को यह रियलाइज हुआ कि इसे कमर्शियल लेवल पर भी ले जाया जा सकता है। वसंत ने वर्ष 2019 के अंत में हाइड्रोग्रीन नाम से अपना स्टार्टअप शुरू किया इसके बाद वे कई अलग-अलग जगहों पर जाकर किसानों से मिले उनकी मजबूरियां समझी और हाइड्रोपोनिक सिस्टम इंस्टॉल करना आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे उनके काम को पहचान मिलती गई और एक के बाद एक दायरा भी बढ़ता गया। आपको बता दें कि कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात सहित कई अन्य राज्यों में उनका नेटवर्क फैल गया। अब तक उन्होंने 300 से अधिक किसानों के यहां चारा उगाने के लिए हाइड्रोपोनिक सिस्टम इनस्टॉल कर चुके हैं। इसके साथ ही कई एनजीओ (NGO) के लिए भी उनकी टीम काम कर रही है। फिलहाल इनके साथ 10 लोग कार्य करते हैं।

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क्यों खास है यह मॉडल और कैसे करते हैं काम?

वसंत अपने मॉडल की खासियत को लेकर बताते हैं कि यह 1 तरह के देशी फ्रिज की तरह है। इसकी चौड़ाई 3 से 4 फीट की होती है और लंबाई 8 से 10 फीट की होती है। इसे आवश्यकता के हिसाब से हटाया अथवा बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इसमें कई लेयर में प्लेट्स लगी होती है, जिन पर गेहूं, धान, जौ जैसी फसलें चारों के रूप में उगाई जा सकती हैं। उनका कहना है कि हफ्ते भर में ही इनकी हाइट 1 फीट से अधिक हो जाती है यानी कि इन्हें बाहर निकालकर पशुओं को खिलाया जा सकता है। एक नॉर्मल सिस्टम से हर दिन 2 पशुओं के खाने के लिए इंतजाम किया जा सकता हैं।

Vasant quited his job and started to grow fodder without land

मिट्टी की भी नही पड़ती जरूरत

इसके लिए मिट्टी की भी आवश्यकता नहीं होती है। इसे खास तरह के कोकोपीट पर इन्हें रख दिया जाता है, जहां ये बिना किसी परेशानी से कम वक्त में ग्रो कर सकते हैं। सिंचाई के रूप में कुछ घंटों के लिए अंतराल पर पानी स्प्रे करना होता है। आपको बता दें कि यह सोलर और इलेक्ट्रिक दोनों पर चलता है और सेल्फ ऑपरेटेड होता है। अगर सब कुछ सेट करने के बाद इसकी देखभाल की जरूरत ही नहीं पड़ती है, यह खुद ही अपनी जरूरत पूरी करता है। अगर बात इसकी कीमत की तो ₹25000 से इसकी शुरुआत होती है।

फिलहाल वसंत ऑनलाइन और ऑफलाइन लेवल पर इसकी मार्केटिंग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इसे इंस्टॉल करने की कोशिश आसान है। कोई भी किसान वीडियो देखकर और इंस्टॉलेशन गाइड के सहारे इसका सेटअप लगा सकता है। अगर फिर भी किसी को दिक्कत होती है तो उनकी टीम के लोग जाकर भी इंस्टॉल कर देते हैं।

100 से अधिक चारा केंद्र की भी शुरुआत

वसंत ने यह भी बताया कि जो किसान अपने यहां यह मॉडल नहीं लगा सकते हैं, उनके लिए सेकंड वेव के बाद उन्होंने चारा केंद्र की शुरुआत भी की है। देश के अन्य कई जगहों पर यहां मिल्क कलेक्शन सेंटर है, वहां उन्होंने चारा केंद्र खोल कर रखा है। हाइड्रोपोनिक सिस्टम के सहारे चारा तैयार करते हैं और किसानों को सप्लाई करते हैं। इसकी कीमत भी काफी कम होती है, जिससे किसान किसी भी मौसम में यहां से चारा खरीद सकते है।

अभी के समय में गुजरात (Gujarat), राजस्थान (Rajasthan), हिमांचल (Himanchal) सहित कई अन्य राज्यों में 100 से अधिक चारा केंद्र खुल चुके हैं। कहना है कि यह चारा नार्मल चारे के मुकाबले काफी हेल्थी भी होता है। जिससे मिल्क प्रोडक्शन भी बढ़ता है। लिहाजा किसानों की आमदनी भी अधिक हो जाती है। वसंत ने बताया कि स्टार्टअप सीईईडब्ल्यू-विलग्रो और पावरिंग लाइवलीहुड्स’ प्रोग्राम का हिस्सा है।

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हाइड्रोपोनिक फार्मिंग क्या है?

हाइड्रोपोनिक फार्मिंग (hydroponic farming) यानी सॉयललेस फार्मिंग (soilless farming)। इसके लिए जमीन की जरूरत नहीं होती है। जमीन की जगह पाइप या स्टैंड में प्लांटिंग की जाती है। इसकी पूरी प्रोसेस को देखें तो इसकी तकनीक ऐसी होती है कि प्लांट के डेवलपमेंट के लिए जरूरी चीजें जैसे वाटर मीडियम के जरिए मुहैया कराई जा सके। आमतौर पर कोकोपीट यानी नारियल के वेस्ट से तैयार नेचुरल फाइबर का इस्तेमाल मिट्टी की जगह किया जाता है। उन्होंने बताया कि कई बार कंकर और पत्थर का भी इस्तेमाल करना पड़ता है। उसके बाद पानी के जरिए जरूरी मिनरल्स प्लांट तक पहुंचाया जाता है। इसे कम समय में ज्यादा प्रोडक्शन होता है।

Vasant quited his job and started to grow fodder without land

ऑफिस में बैठकर भी किया जा सकता हैं कंट्रोल

उन्होंने बताया कि इस तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह भी है कि इसके लिए पानी की बहुत कम आवश्यकता पड़ती है। इसमें सामान्य खेती के मुकाबले इसमें 30% ही पानी की आवश्यकता होती है। ऐसे में खेती में चाहे गर्मी हो या ठंडा सिंचाई के टेंशन से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही उन्होंने इसे ऑटोमेटिक कंट्रोल सिस्टम के जरिए ऑफिस में बैठकर भी पौधों की देखभाल करते हैं। एक स्विच के सहारे पौधों में पानी और जरूरी मिनरल्स पहुंचाया जा सकता है। इससे लेबर कॉस्ट भी बचता है और सिंचाई का खर्च भी। साथ ही साथ उन्होंने बताया कि अधिक स्पेस भी अनिवार्यता भी खत्म हो जाती है। यही वजह है कि इस तरह के फार्मिंग की अब काफी डिमांड बढ़ रही है।

आप हाइड्रोपोनिक सिस्टम से खेती

देश में कई स्थानों पर हाइड्रोपोनिक फार्मिंग (hydroponic farming) की ट्रेनिंग दी जा रही है। आप नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से इस संबंध में और भी जानकारी ले सकते हैं इसके साथ ही कई प्रोफेशनल्स भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं। 2 से 5 दिन का इसका कोर्स होता है।

हाइड्रोपोनिक फार्मिंग (hydroponic farming) पर्सनल और कमर्शियल दोनों ही लेवल की तरह की जा सकती है और यदि आप अपने घर की जरूरत कि सब्जियों के लिए हाइड्रोपोनिक सिस्टम इनस्टॉल करना चाहते हैं तो लागत भी काफी कम आएगी अथवा आपको फायदा भी होगा। आप अपनी छत पर 10 से ₹15 हजार में यह सिस्टम इनस्टॉल करा सकते हैं। इसके साथ ही मार्केट में सेटअप भी मिल जाता है आप चाहे तो एक्सपोर्ट के जरिए इसे अपने घर में भी इंस्टॉल करवा सकते हैं या फिर खुद भी लर्निंग वीडियो देखकर कर सकते हैं।

आपको बता दें कि अगर आप कमर्शियल लेवल पर खेती करना चाहते हैं तो आप की लागत बढ़ जाएगी और 10 से 20 लाख तक का खर्चा आ सकता है। इसको लेकर 30% से 50% तक सरकार की ओर से सब्सिडी भी मिलती है। आपको बता दें कि इसके लिए आपको अलग वैरायटी के प्लांट लगाने होंगे साथ ही टेंपरेचर मेंटेन करने के लिए पॉलीहाउस लगवा लगाना होगा। इतना ही नहीं आप बैंक से लोन भी लेकर भी पॉलीहाउस बनवा सकते हैं।

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