अपनी मेहनत से तकदीर बदलना हमारे देश के लोग बख़ूबी जानते हैं। अपने मन के अनुसार काम करने के लिए कोई अपनी अमेरिका की नौकरी छोड़ देता है तो वहीं कोई सरकारी नौकरी या अपना करोबार। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसी नौकरियां छोड़ कर ये लोग खेती कर रहे हैं। ऐसे कई व्यक्तियों के बारे में हमनें आपको पहले की कहानियों में अवगत कराया है। लेकिन आज की हमारी कहानी ऐसे स्टूडेंट्स की है, जिन्होंने बंजर भूमि को अपनी मेहनत से इस तरह बदल दिया है जो आश्चर्यजनक है। छत्तीसगढ़ की बंजर भूमि पर खेती करना असम्भव है लेकिन कृषि महाविद्यालय ( Agriculture collage) के स्टूडेंट्स ने इस असम्भव कार्य को संभव कर दिखाया है।
एग्रीकल्चर कॉलेज के विद्यार्थियों का कमाल
लोगों का मानना था कि बंजर भूमि पर फलों की खेती नहीं हो सकती। लेकिन जो कार्य सुरगी राजनंदगांव कृषि महाविद्यालय ( Agriculture collage) के स्टूडेंट्स ने किया है। इससे ये सबके लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं। सभी स्टूडेंट्स ने वैज्ञनिकों के साथ रिसर्च कर पथरीली एवं बंजर जमीन पर फलों की खेती की शुरुआत की है। लोग कह रहें हैं कि जिस पथरीली बंजर जमीन पर एक घास भी नहीं उगा था, वहां विद्यार्थियों ने फल कैसे उगाएं?
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12 एकड़ पत्थरीली भूमि को बनाया हरा-भरा
यह खेती रायपुर (Raipur) से कुछ दूरी पर स्थित एक गांव में हुआ है। 2015 में पण्डित Shivkumar Shastri ने एग्रीकल्चर कॉलेज को 12 एकड़ पत्थरीली भूमि उनके कार्यों के लिए उपलब्ध कराई। लेकिन यहां के विद्यार्थियों ने अपने जज़्बे से सबको चौका देने वाला कार्य कर दिखाया है। यहां का दृश्य काफी मनोरम है। यहां की हरियाली देखने पर कोई नही बता सकता कि यह जमीन पथरीली थी।
फलों के साथ सब्जियों को भी उगाया
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों और विद्यार्थियों ने यहां फलों में आम, कटहल, सेब और अमरुद जैसे पेड़ लगाए हैं। साथ ही सब्जियों में बरबट्टी, लौकी, भिन्डी और तरोई जैसे फसल भी उगा रहें हैं। सब्जियों की खेती से इन्हें बहुत मात्रा में मुनाफा हो रहा है। इन्होंने नर्सरी में बेर, अमरुद और अनार जैसे अन्य पौधें भी लगाएं हैं। जिसे यह अपने आस-पास के किसानों को देंगें। इनके फलों की मिठास पूरे इलाके में बिखरी हुई है।
बेर के पेड़ से हुआ मुनाफा
अमरूद के पेड़ से कुछ फल तोड़े गये जो बाजारों में बिकने शुरू हो गए हैं और आनर के पौधों में अभी फल लगने शुरू हुए हैं। हर एक सेब और बेर के पौधे से लगभग 10-15 किलो फल तोड़ा जा रहा है। बेहद मीठा होने के कारण बाजारों में इस फल की अधिक मात्रा में बिक्री हो रही है। 40 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से अबतक लगभग 15 क्विंटल बेर बिक चुके हैं।
कैसे बनाया विद्यार्थियों और वैज्ञानिकों ने पथरीली जमीन को उपजाऊ
कॉलेज के डीन डॉ. एएल राठौर (AL Rathaur) ने एक रिपोर्ट में बताया कि यहां की जमीन बंजर थी। सिंचाई का कोई व्यवस्था नही थी। इसलिए बोरवेल खुदवाया गया। लेकिन इससे भी कोई ज़्यादा मदद नहीं हो पाई। तब टीम मेम्बर ने ड्रिप इरिगेशन की मदद से खेती करनी शुरू की। कुछ ही वर्षों में यह बंजर जमीन हरी-भरी हो गईं औऱ सबके लिये फल और सब्जियां देनी शुरू कर दी। एक बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर जिस तरह विद्यार्थियों ने यहां फल और सब्जियां उगाई है यह सभी युवा और किसानों के लिए प्रेरणा है। इसके The Logically इन्हें सलाम करता है।