अब हमारे किसान भी आधुनिक तकनीक की मदद लेकर अनाज का उत्पादन कर रहें हैं। लेकिन बढ़ती तकनीक ने प्रदूषण की समस्या बढ़ा दी है। आधुनिक तकनीकों के माध्यम से फसलों की कटाई होती है लेकिन उसका जड़ और तना रह जाता हैं जो बेहद हानिकारक होता है। इसे जलाने से वायु प्रदूषण होता है। इसी प्रदूषण के निवारण के लिए हमारे देश के कई पराली का उपयोग उर्वरक निर्माण के रूप में कर रहे हैं। ताकि प्रदूषण ना हो और पैदावार भी अच्छी हो। इसी पराली प्रबंधन को व्यपार का रूप दे रहें हैं हरियाणा के एक किसान। ये किसान 1 वर्ष में करोड़ो का मुनाफा कमाएं हैं। इतना ही नहीं यह युवाओं को रोजगार भी दे रहें हैं।
32 वर्षीय वीरेंद्र यादव
वीरेंद्र यादव (Virendra Yadav) आस्ट्रेलिया (Australia) निवासी मूल रूप से बन गयें थे। इन्हें वहां की स्थाई नागरिकता (Citizenship) मिल चुकी थी। लेकिन कहतें हैं ना कि जब अपने देश की याद आती है तो कहीं मन नहीं लगता। इनका भी मन वहां नहीं लगा तो यह अपने देश अपनी बीबी और बेटियों को लेकर आ गये। इन्होंने अपने देश आकर खेती शुरू की लेकिन अनाज उत्पादन के बाद फसल अवशेष की दिक्कत सामने आई। पराली को जलाने से उनकी बेटियों को एलर्जी हुई तब इन्होंने निश्चय किया कि मैं पराली के निवारण के लिए बेहतरीन कार्य करूंगा। इन्हें यह जानकारी मिली कि पराली बेचा जाता है। तब इन्होंने कम्पनियों से सम्पर्क किया और पराली को बेचने लगें।
खरीदा स्ट्रा बेलर
इन्होंने सिर्फ खुद के खेत की पराली ही नहीं बल्कि अपने आस-पास के किसानों के पराली ख़रीदें और उसे बेचा। इसे ले जाने के लिए गट्ठे बनाने की जरूरत थी ताकि आसानी हो। तब इन्होंने 3 स्ट्रा बेलर “एग्रीकल्चर एंड फार्मरस वेल्फेयर डिपार्टमेंट” से ग्रांट मनी के तौर पर खरीदा। यह बेलर पराली के चौकार गट्ठे निर्मित करता है। मात्र 15 लाख रुपये 1 बेलर का मूल्य है।
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94 लाख 50 हजार का किया व्यापार
इन्होंने जानकारी दी कि धान के मौसम में इन्होंने 70000 क्विंटल पराली मात्र 3000 एकड़ की जमीन से लेकर उसके गट्टे बनाएं और बेचा। इन सभी परालियों को पेपर मील और एग्रो ऐनर्जी प्लांट में बेचा गया। इस पराली की कीमत 135 रुपये प्रति क्विंटल है। हम खुद समझ सकतें हैं कि 70 हज़ार क्विंटल पराली का मूल्य क्या होगा। इन्होंने इससे 94 हजार 50 लाख का व्यापार किया। मतलब मुनाफा के तौर पर इन्हें 50 लाख रुपये हुयें।
इनके हिस्से में मात्र 1 एकड़ जमीन है
इनके पिता एनिमल हस्बेन्ड्री डिपार्टमेंट से रिटायर्ड हैं। इनके परिवार में मात्र 4 एकड़ भूमि है। जिसमे इनका 1 एकड़ है। इनके यहां पैसे की तंगी थी। इसलिए हमारे देश को छोड़ा और आस्ट्रेलिया गयें और फल एवं सब्जियों का व्यापार शुरू किया। वर्ष 2011 में इनकी शादी हुई और यह अपनी पत्नी को भी वहां ले गयें। इनको आस्ट्रेलिया का सिटिजनशिप अधिकार प्राप्त हुआ। यह प्रत्येक वर्ष वहां 35 लाख रुपये कमा लेते थे। यह अपने देश 3 वर्ष पहले आ गये।
पराली प्रबन्ध के लिए जो कार्य वीरेंद्र यादव ने किया है वह प्रशंसनीय है। The Logically इन्हें इनके कार्यों के लिए सलाम करता है और अपने पाठकों से अपील करता है कि वह भी इनसे प्रेरणा लेकर पराली को ना जलायें बल्कि इसका उर्वरक बनाकर प्रदूषण से बचाव करें।