प्रकृति से आप जितना लेने की उम्मीद करते हैं उससे कई गुना वह तुम्हें देने के लिए सक्षम है। जो प्रकृति से प्रेम करता है, उसे संरक्षित करता है उससे ज्यादा हृदयवान दुनिया में कोई नहीं है। आज हम आपको एक ऐसे युवक के बारे में जिसके बारे में हम बताने जा रहे हैं जिसके बारे में जानने के बाद आप भी उसकी मिसाल देंगे। हम बात कर रहे हैं विवेक श्रीवास्तव (Vivek Shrivastava) के बारे में।
कौन है विवेक
विवेक मूलतः बिहार से हैं और इनका जन्म 1988 में हुआ था। विवेक की स्कूली शिक्षा पर जोर दिया जाए तो उन्होंने शुरुआती शिक्षा डीएवी छत्तीसगढ़ से पाई, उसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से उन्होंने B.Com किया। इसके साथ ही उन्होंने हेल्थ एंड ट्रेनिंग सेफ्टी ऑफिसर के रूप में आगे चलकर काम भी किया और बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ भी जुड़े।
गांव के परिवेश ने और सफाई ने बचपन में ही प्रकृति से जोड़ा:
अपने बचपन को याद करते हुए विवेक (Vivek Srivastava) बताते हैं कि जब वे विक्शनपुर में थे तो वहां पर एक तालाब हुआ करता था। उस तालाब के चारों तरफ काफी हरियाली थी और पेड़ पौधे लगे हुए थे। वहां लोग सफाई को काफी महत्व देते थे और पेड़ पौधे लगाते रहते थे। लोग वहां पिकनिक के लिए भी आते थे और विवेक ने शुरू से ही देखा कि पिकनिक मनाने के बावजूद वहां पर एक भी कूड़ा नहीं मिलता था। अब आप सोच सकते हैं कि लोग कितने जागरूक होंगे।
दिल्ली के प्रदूषण ने किया मायूस:
विवेक (Vivek Srivastava) ने The Logically से बात करते हुए बताया कि जब दिल्ली आए तो उन्हें काफी असहज महसूस हुआ। प्राकृतिक रूप में इतना बदलाव और प्रदूषण की भारी मात्रा उन्हें सांस लेने में भी कष्ट पहुंचा रही थी। दिल्ली में उन्होंने मार्केटिंग से नौकरी की शुरुआत की। विवेक कहते हैं कि इंसान की सबसे पहली जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान होती है तो बस रोटी के लिए उन्होंने रोजगार के तरफ कदम बढ़ाया। उन्होंने बहुत गंभीर रूप से सोचा कि इतने प्रदूषण और पेड़ पौधों के अभाव में जीवन गुजारना कितना मुश्किल है।
नौकरी के तीन चार साल बाद में उठाया कदम:
3 से 4 साल नौकरी करने के बाद विवेक ने सोचना शुरू किया कि आखिर वह प्रकृति के लिए क्या कर पा रहे हैं? या पर्यावरण(Environment) को सुरक्षित और शुद्ध बनाने में अपना क्या सहयोग दे रहे हैं ?विवेक ने बताया कि जो काम वो कर रहे थे, वह मात्र 7 से 8 घंटे का नहीं बल्कि पूरे 24 घंटे का था। जब आप 7 से 8 घंटे के काम के बाद वापस घर आते हैं तो बाकी बचे समय भी अगले दिन की तैयारी में गुजार देते हैं। इसमें ना खुद के लिए समय बच पाता है और ना ही पर्यावरण का भला हो सकता है। तमाम तर्क वितर्क के बाद विवेक ने आखिरकार नौकरी छोड़ दी।
दो-तीन महीने तक सोचा समझा और बनाया सटीक प्लान:
जी हां, नौकरी छोड़ने के दो-तीन महीने तक विवेक (Vivek Srivastava) ने काफी सोचा विचारा, घूम घूम कर दिल्ली को नजदीक से देखने की कोशिश की। वहां पर जो कमियां थी उसे समझने का प्रयास किया। विवेक ने कहा कि जिससे जीवन मिल रहा है उसके लिए कुछ करना हमारा कर्तव्य होना चाहिए। पेड़ पौधे की कमी के बारे में लोग तमाम बातें करते हैं लेकिन उसे लगाना कोई नहीं चाहता। उनका कहना है कि अखबारों में ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming), पेड़ों की कटाई(Deforestation), क्लाइमेट चेंज(Climate Change), इन जैसे कई मुद्दे आपको अक्सर अखबारों में देखने को मिलेंगे लेकिन वास्तविक तौर पर या कहें तो जमीनी तौर पर इसके बारे में लोग दूर- दूर तक नहीं सोचते हैं।
लोग अब परंपरागत पौधों को छोड़कर सुंदर दिखने वाले और सजाने वाले पौधों की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, जो एक तरह से कहीं ना कहीं चिंता का विषय है। प्रकृति का दोहन ना तो रुक रहा है और ना ही पेड़ों की कटाई रुक रही है। इसलिए विवेक हर समय एक ही अपील करते हैं कि हमें परंपरागत पौधों की तरफ अग्रसर होना चाहिए।
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पेड़ लगाना और बनाना को बनाया लक्ष्य:
विवेक ने आगे चलकर तीन चार दोस्तों के साथ मिलकर पेड़ लगाने (Plantation) और बनाने का काम शुरू किया। अब आप यह सोच रहे होंगे कि पेड़ लगाना तो सही है लेकिन पेड़ बनाने का क्या मतलब है?
हम आपको बता दें कि विवेक का कहना है कि पेड़ तो बहुत सारे लोग लगाते हैं, लेकिन हम उसे संरक्षित करना भूल जाते हैं। पौधों को लगाना अच्छी बात है लेकिन उसकी देखभाल करके उसे स्वस्थ रखना सबसे बड़ी जिम्मेदारी मानी जाती है, इसलिए विवेक ने आज तक जितने भी पेड़ पौधे लगाए हैं उसे बड़ा भी किया है और उसे स्वस्थ भी रखा है।
शुरुआत हुई यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन से:
आमतौर पर विवेक का यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन(Yamuna Bank Metro Station) आना-जाना हमेशा लगा रहता था। वहां पर 10 सालों से कूड़ा फेंका जाता था और गंदगी का एक ढेर वहां तैयार हो गया था। लोग वहां से जब भी गुजरते हैं तो अपना नाक बंद करके जाते हैं। विवेक ने सोचा कि क्यों ना सबसे पहले इसे साफ कराने का कदम उठाया जाए। विवेक ने एमसीडी(MCD) की मदद ली, कई औजारों को किराए पर लिया। आपको यह जानकर काफी हैरानी होगी कि पूरे 2 से 3 हफ्ते लगे इस पूरे गंदगी को साफ करने में। यमुना बैंक के पास कई लोग घूमने जाते थे तो वहां पर खाने, पीने या शराब की बोतल को वही पी कर फेंक देते थे। इस पर भी विवेक ने कदम उठाया और आगे काम भी किया।
ग्रीनपीस इंडिया(Green Peace) और हैया(Haiyaa) जैसी संस्थाओं से जुड़े:
विवेक (Vivek Srivastava) ने ग्रीनपीस इंडिया और हैया जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर काम शुरू किया। इसमें क्लीनअप मौजूद था। विवेक ने सोचा कि क्यों ना एमसीडी(MCD) के इंस्पेक्टर को चीफ गेस्ट बुलाया जाए जिससे लोग भी भीड़ जुटाकर चीजों को समझ पाएंगे। सफाई के बाद विवेक ने यमुना बैंक के पास पेड़ लगाएं।
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अपनी सारी आमदनी को लगा दिया पौधों में:
विवेक ने बताया कि उन्होंने मार्केटिंग के दो-तीन साल के काम में जितनी भी सेविंग की थी, उसे उन्होंने पेड़ पौधे को लगाने और पर्यावरण संरक्षण (Environment & Plantation) में लगा दिया। उन्होंने बताया कि पढ़ाई में अच्छे होने के कारण उनके घर वालों को भी लगता था कि वह आगे चलकर आईएएस या आईपीएस बनेंगे। 2011 में विवेक की पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उनके परिवार का सारा भार उनके ऊपर आ गया। सारी जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी विवेक ने प्रकृति से प्रेम को नहीं छोड़ा और लगातार काम करते रहे।
आगे चलकर शुरुआत में जो लोग उनके साथ अच्छे कामों का वादा करके जुड़े थे, वह भी साथ छोड़ कर चले गए लेकिन विवेक ने हार नहीं मानी और लगातार आगे बढ़ते रहें।
स्वस्थ रहेगें, स्वच्छ रहेंगे तो हॉस्पिटल की जरूरत नहीं पड़ेगी:
विवेक का कहना है कि अगर हम अपने आसपास हरियाली रखें, शुद्ध खाएं और स्वस्थ रहें तो हमें हॉस्पिटल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने The Logically से बात करते हुए कहा कि पहले के लोगों की उम्र 100 वर्ष भी कम मानी जाती थी और वे स्वस्थ रहते हुए अपना जिंदगी गुजार दिया करते थे लेकिन आज के समय में हम हमने प्रकृति से इतना खिलवाड़ किया कि अब 60 की उम्र भी बहुत ज्यादा लगने लगी है। इसलिए जागरूक होना काफी जरूरी है।
लगा चुके हैं 10000 पौधें: (Vivek Srivastava planted 10000 trees)
विवेक ने कई स्कूल, सोसायटी, पार्क आदि में पेड़ पौधे को लगाने का काम किया। हमें बताते हुए काफी खुशी हो रही है कि विवेक ने अब तक कुल 10,000 से भी ज्यादा पौधे को लगाया है। इतने अच्छे काम के साथ-साथ उन्हें पहचान भी खूब मिली। उन्होंने जहां जहां पौधे लगाए थे, वहां वहां लोग उन्हें काफी आदर के भाव से देखते थे। आगे चलकर वन विभाग(Forest Department) से भी उनकी काफी अच्छी साथ साझीदारी हो गई। अब उन्हें कभी भी पेड़ पौधों की जरूरत होती थी तो वे प्रगति मैदान में जाकर वहां के नर्सरी से पौधे लाया करते थे, जो कि नेहरू मार्ग में पड़ता है।
पार्क, स्कूल के बारे में सोच कर आपको यह लग रहा होगा कि विवेक इसके लिए पैसे लेते होंगे तो आप बिल्कुल गलत है। उन्होंने जहां भी पेड़ लगाया वह बिल्कुल मुफ्त लगाया।
विवेक ने जीता सबका विश्वास:
विवेक ने अपने काम से सबका विश्वास जीत लिया है। लोग उन पर भरोसा रखते हैं और जब कभी उन्हें पौधों की जरूरत होती है तो हक से उन्हें बताते हैं और पेड़ लगाने को कहते हैं। उन्होंने कई प्राथमिक विद्यालयों(Primary Schools) में भी पौधें लगाए हैं।
आगे चलकर जब आर्थिक तंगी होने लगी:
कुछ समय के बाद जब विवेक के जमा की हुई पूंजी खत्म होने लगी तब उन्हें आय के स्रोत के बारे में सोचना पड़ा। लेकिन कहते हैं ना कि अगर आपने किसी का भला किया हो तो आप की झोली कभी खाली नहीं रहती। विवेक ने तो यहां लोगों को जीवन दान देने का काम किया था, वह अब कई एनजीओ(NGOs) से जुड़ गए। एनजीओ से उन्हें प्लांटेशन प्रोजेक्ट(Plantation Project)मिला करता था जिससे उन्हें 15000 से 20000 की कमाई होने लगी थी।
आगे चलकर हैया के कई कैंपियन आदि से भी जुड़े। उन्होंने कई कमेटी को साथ लाया, कई बार फंडिंग भी किया। उनके साथ कई वॉलिंटियर्स मिलकर काम कर रहे हैं, जिन्हें भी लगता है कि वह प्रकृति के लिए कुछ करना चाहते हैं या फिर पर्यावरण संरक्षण (Environment & Plantation) के लिए कुछ करना चाहते हैं तो वह विवेक से आकर जुड़ते हैं। इन सभी लोगों का उद्देश्य पेड़ पौधे लगाना तो है ही साथ ही लोगों को जागरूक करना भी है, कि जो आपको जीवन दे रहा है उसे आप जीवन दें। हवा, पानी और भोजन झांसी आपको मिलता है उससे आप सुरक्षित रखें यह आपकी जिम्मेदारी है।
लॉकडाउन में बने लोगों का सहारा:
जब कोरोना जैसी भयंकर महामारी हमारे देश को हर दिन झकझोर रही थी, तभी विवेक ने अपना रुख जरूरतमंदों की तरफ किया। विवेक ने जमीनी स्तर पर लोगों को राशन बांटा। वह रोज लोगों को खाना पहुंचाने का काम करने लगे और हमें यह बताते हुए काफी खुशी हो रही है कि उन्होंने कम से कम 10000 परिवारों को जो कि यमुना बैंक के पास झुग्गी झोपड़ियों में रहते थे उन्हें राशन पहुंचाया और उनकी मदद की। इस मदद के लिए उनके साथ इंफोसिस और ग्रीनपीस जैसी कंपनियां भी सामने आई। कई वॉलिंटियर्स ने अपने बचत पूंजी को लगा दिया, कई लोगों ने काफी डोनेशन भी दिया। इनके सारे प्रयासों से और कार्य शक्ति से लोगों को लाभ पहुंचा।
काम से मिली संतुष्टि:
विवेक (Vivek Srivastava) ने The Logically से बताया कि जब वह पीछे मुड़कर देखते हैं तो उन्हें तमाम संघर्ष, परिश्रम और खुशी एक साथ दिखाई देती है। उनका कहना है कि इस नेक काम से उन्हें अच्छे लोगों से मिलने का मौका मिला। विवेक कहते हैं कि कष्ट के साथ जो आपको सफलता मिलती है, या परिणाम मिलता है उसे अपना बहुत संतुष्ट महसूस करते है। जो इज्जत लोगों ने विवेक को इस काम के लिए दिया, उसके लिए वह सदा आभारी हैं और रहेंगे।
हम विवेक के इस संघर्षपूर्ण और प्रभावशाली कार्य को नमन करते हैं और उम्मीद करते हैं कि लोगों को भी इनसे काफी कुछ सीखने को मिलेगा। विवेक इसी तरह पेड़ पौधे लगाते रहे और लोगों को जागरूक करते रहें।
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