Sunday, December 10, 2023

Wagh Bakri Tea: जानिए अंग्रेजो के काले-गोरे सोच के खिलाफ बनी 100 साल से भी पुरानी चाय कम्पनी के बारे में

भारत के आप किसी भी कोने में चले जाएं,आप हर एक जगह पर चाय का स्टॉल लगा हुआ मिल ही जाएगा। जब तक एक कप चाय आपके गले से नीचे नहीं उतरती, तब तक सुबह की शुरुआत नहीं होती। सुबह की चाय, सुबह 11 बजे की चाय, लंच के बाद की चाय, वो शाम 4 बजे, रात के खाने के बाद की चाय, ये सूची कभी खत्म ही नहीं होती। भारत चीन को छोड़कर दुनिया के किसी भी देश की तुलना में अधिक चाय का उपभोग और उत्पादन करने के लिए जाना जाता है। (Story of Wagh Bakri Tea)

अगर चाय के उत्पादन की बात करें तो चाय का सबसे बड़ा उत्पादक असम अपने आप में एक सौंदर्य है। दिव्य झरनों और शानदार चाय बागानों से भरपूर, जोरहाट हर चाय के शौकीनों के लिए एक खूबसूरत डेस्टिनेशन है। जब आप चाय के बागानों से होकर निकलेंगे तो आपकी आत्मा चाय पत्तियों की खुशबुओं से महक जाएगी। यूँ तो चाय के कई सारे ब्रांड्स हम उपयोग करते हैं पर “वाघ बकरी टी ग्रुप” अपने गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। आज हम आपको वाघ बकरी टी ग्रुप के बारे में बताएंगे कि इस कंपनी की शुरुआत कैसे हुई थी।

वाघ बकरी का इतिहास (History of Wagh Bakri tea)

वाघ बकरी चाय की शुरुआत गुजरात के उद्यमी नरणदास देसाई ने की थी। इस चाय का सामाजिक अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ाई का एक लंबा इतिहास रहा है। 1892 में गुजरात के रहने वाले नरणदास देसाई (Narandas Desai) का दक्षिण अफ़्रीका के डरबन शहर में 500 एकड़ का एक मशहूर चाय बागान हुआ करता था। ये वो दौर था जब दक्षिण अफ़्रीका भी भारत की तरह ही अंग्रेज़ों के अधीन था।इस दौरान नरणदास देसाई को भी अन्य लोगों की तरह ही कई बार नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। देसाई के दिल में ये बात घर कर गई और वो इस समस्या को जड़ से ख़त्म करना चाहते थे।

Wagh bakri tea history
Narandas Desai, Wagh Bakri tea

मुश्किलों का सामना किया

नरणदास देसाई (Narandas desai)को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इस बीच दक्षिण अफ़्रीका में नस्लीय भेदभाव की घटनाएं कम होने के बजाय और भी बढ़ने लगीं। इसी सामाजिक अशांति के चलते नरणदास देसाई को दक्षिण अफ़्रीका छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। अंततः वह भारत वापस लौट आये। आख़िरकार सन 1919 में उन्होंने अहमदाबाद में गुजरात चाय डिपो की स्थापना की। इस दौरान 2 से 3 साल चाय का नाम बनाने में लग गये, लेकिन एक बार रफ़्तार पकड़ने के बाद नरणदास देसाई ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और कुछ ही साल में वो गुजरात के सबसे बड़े चाय निर्माता बन गये।

वाघ बकरी नाम क्यों (History behind wagh bakri tea)

वाघ बकरी चाय के नाम के पीछे भी एक सकारात्मक सोच थी। नरणदास देसाई ने इस नाम के जरिए एक सकारात्मक आंदोलन का आग़ाज़ किया जो चाय और सामाजिक सद्भाव के संबंध में योगदान करने के लिए चला। उस समय प्रतिष्ठित वाघ बकरी लोगो के माध्यम से समानता का संदेश दिया गया। वाघ की तस्वीर या एक ही कप में वाघ और बकरी के साथ-साथ चाय पीने की तस्वीर वाले नए लोगो के माध्यम से कंपनी ने भारत में जाती आधारित भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी और समानता को बढ़ावा दिया। नरणदास देसाई इस सकारात्मक सोच से लोगों के बीच एक प्रेम का संदेश गया। महात्मा गांधी भी नरणदास देसाई की तारीफ किया करते थे।

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बाघ-बकरी चाय का कई राज्यों में विस्तार (Expansion of wagh bakri tea)

वाघ बकरी चाय कंपनी ने 1980 तक थोक और खुदरा दोनों दुकानों में खुली चाय बेचना जारी रखा। लेकिन कंपनी जीवित रहने और उस समय समान व्यवसायों से अलग खड़े होने के लिए, नए नाम, गुजरात टी प्रोसेसर्स एंड पैकर्स लिमिटेड के तहत बोर्ड ने उद्यम को संशोधित करने और पैकेज्ड चाय बेचने का फैसला किया। गुजरात भर में सफलता पाने के बाद,अगले कुछ वर्षों में कंपनी ने देश भर में विस्तार करना शुरू कर दिया। 2003 से 2009 के बीच, ब्रांड का कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान, यूपी, आदि तक विस्तार हुआ। इस चाय के सुगंध और स्वाद ने लोगों के बीच अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। जो अभी तक लोगों के दिल में है तभी तो आज वाघ बकरी टी ग्रुप (Wagh Bakri Tea Group) का टर्नओवर 1500 करोड़ रुपये से ज्यादा का है। ऐसे तो यह चाय पहले ही साल 2003 में ही गुजरात का सबसे बड़ा चाय ब्रांड बन चुका था जो अब तक खत्म नही हुआ है।

Wagh bakri tea history
अहमदाबाद स्थित Wagh Bakri Tea का पहला आउटलेट

बाघ बकरी का विदेशों में भी कारोबार (Wagh Bakri Tea Group in foreign)

इस कंपनी के अगर उत्पादन की बात करें तो वाघ बकरी ग्रुप के उत्पादन की क्षमता 2 लाख किलो प्रतिदिन और सालाना 4 करोड़ किलो चाय उत्पादन की है। ग्रुप का हेडक्वार्टर अहमदाबाद में है। ग्रुप के प्रोफेशनल्स भारत में 15000 से ज्यादा चाय बागानों में से बेहतरीन चाय को चुनते हैं। देश ही नहीं विदेश में भी वाघ बकरी की चाय बिकती है। वाघ बकरी चाय का एक्सपोर्ट आज 40 से ज्यादा देशों में हो रहा है। आज ‘वाघ बकरी चाय’ देश के करीब 20 राज्यों में अपना कारोबार फैला चुकी है। राजस्थान, गोवा से लेकर कर्नाटक तक, पूरे भारत में, वाघ बकरी एक घरेलू नाम बन गया है। आज दुनिया भर में यह चाय लोगों की पहली पसंद बनकर उभरा है। वैश्विक स्तर पर भी इसे एक अलग पहचान मिली है।

Disclaimer: इस प्रोडक्ट की गुणवत्ता के बारे में हम किसी भी तरह की पुष्टि नही देते हैं। इस आर्टिकल को The Logically पर लिखने का केवल एक उद्देश्य है कि हम अपने पाठकों के साथ इस जानकारी को साझा कर सकें। खरीदने के पहले आप अपनी तरफ से जरूर जांच लें।

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