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भारत के लगभग 6 लाख गांव के करोड़ों टन कूड़ा-कचरा का निदान क्यों नही हमारे पास: रिपोर्ट

रूपा… शाम हो गई है। घर बहार दे। देख, थोड़ी धूल-मिट्टी आ गई है। अच्छे से साफ़ करना। घर में दो बार झाड़ू लगाने चाहिए। और सुन, कचरे का डब्बा भर गया है। बाहर नाली में या सड़क पर कहीं भी किनारे में डाल आना। ध्यान रहे.. अपने दरवाजे से थोड़ा अलग हट कर फेंकना। बदबू आती है। रूपा की मालकिन रुपा को समझा रही थी।

जी.. अपने घर को दिन में दो बार साफ़ करने वाले हम जैसे लोग घर से निकलते ही साफ़ सफाई भूल जाते हैं। कूड़े के प्रबंधन को लेकर हम कभी भी गंभीरता से नहीं सोचते। कचरे की यह समस्या किसी एक घर या मोहल्ले की नहीं है। यह देश के करीब 6.63 लाख गांवों की समस्‍या है। हर रोज शहरों और कस्बों में बड़ी मात्रा में कचरा उत्पन्न होता है। 2016 में आई ‘सॉलिड वेस्‍ट मैनेजमेंट इन रूरल एरिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के ग्रामीण इलाकों में प्रतिदिन 0.3 से 0.4 मिलियन मीट्रिक टन (लगभग 30 से 40 लाख कुंतल) कचरा निकलता है, जिसके निस्‍तारण की हमारे पास कोई खास योजना नहीं है।

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भारत के ग्रामीण घरों से निकलने वाला घरेलू कचरा लगातार बढ़ता जा रहा है। सही तरीके से निष्पादन नहीं होने की वजह से यह वातावरण और हमारे स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाल रहा है। इस समस्या से निजात पाने के लिए ”स्वच्छ भारत मिशन” (ग्रामीण) के अगले महत्वपूर्ण घटक के रूप में गांवों को खुले में शौच मुक्त किए जाने के बाद ओडीएफ प्लस गतिविधि के रूप में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबन्धन किया जाना है। इस योजना के अन्तर्गत कूड़ा प्रबन्धन एवं अपशिष्ट जल प्रबन्धन पर कार्य किया जाना है। योजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान (NIRD & PR) द्वारा ग्राम पंचायतों के प्रतिनिध‍ियों को वेस्‍ट मैनेजमेंट की ट्रेनिंग भी दिया जा रही है। एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आर. रमेश (Dr. R Ramesh) को इस ट्रेनिंग प्‍लान का हेड बनाया गया है।




वेस्ट मैनेजमेंट (Waste Management) के लिए सबसे अनिवार्य क़दम होता है, सूखे और गीले कचरे का अलग-अलग इकट्ठा होना। डॉ. आर. रमेश बताते हैं, गांव के लोगों को ट्रेनिंग दी जा रही है कि वे सूखे और गीले कचरे को इन दोनों श्रेणियों में आसानी से वर्गीकृत कर सकें। भले ही एक मिनट ज़्यादा समय ले पर कूड़े को अलग-अलग रखें।

गांव वालों का सहयोग और सही बजट की ज़रूरत

आगे डॉ. आर. रमेश कहते हैं कि पंचायतों में कूड़े को उठाने या उनके निस्‍तारण को लेकर भी सही व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही गांव वालों का सहयोग और सही बजट भी वेस्ट मैनेजमेंट को सफ़ल बनाने के लिए ज़रूरी है। गांव वालों के सहयोग के लिए पंचायत से जुड़े जिम्‍मेदार लोगों को ट्रेनिंग दी जाती है। वे घर-घर जा कर लोगों को समझाने और जागरूक करने का काम करते हैं कि कचरा सड़क पर न फेंके, घर से निकले कूड़े-कचरों का सही मूल्यांकन कर कबाड़ी वालों को बेचें, गीला और सूखा कचरा अलग-अलग जमा करें। बजट क्योंकि कूड़ा उठाने वाले की सैलरी, कूड़े की गाड़ी, गाड़ी की देख-रेख इन सब के लिए हर महीने खर्च की ज़रूरत होती है।

ट्रेनिंग के लिए अब कई राज्य ख़ुद आगे आ रहें हैं

डॉ. आर. रमेश बताते हैं कि जब हमने इस तरह की योजना बनाई थी और लोगों को ट्रेनिंग देना शुरू किया था तो लोगों के नामांकन के लिए इंतजार करना होता था। कोई भी पंचायत आगे आ कर इसकी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती थी। लेकिन अब कई राज्य ख़ुद से आगे आ रहे हैं। केरल, राजस्‍थान, कर्नाटक जैसे राज्‍य कह रहे हैं कि जितना भी आपका खर्च होगा, सरकार देगी। आप वेस्‍ट मैनेजमेंट की 5 दिन की ट्रेनिंग दीजिए। लोगों को ऐसे ग्राम पंचायतों में ले जा जाइए, जहां वेस्‍ट मैनेजमेंट को लेकर अच्‍छा काम हो रहा है।

Archana is a post graduate. She loves to paint and write. She believes, good stories have brighter impact on human kind. Thus, she pens down stories of social change by talking to different super heroes who are struggling to make our planet better.

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