एक ओर विज्ञान बहुत तीव्रता से आगे बढ़ रहा है। नए-नए आविष्कार के जरिए कई तरह के संसाधन का निर्माण हो रहा है तो दूसरी ओर खासकर भारत में लोग जुगाड़ और अलग तरीके और सूझबूझ से दिमाग लगाकर कई तरह की मशीनें व अन्य चीजों का निर्माण कर रहे हैं।
आज इस खास पेशकश में आपको हम एक ऐसे शख्स से मिलवाने जा रहे हैं तथा उनके द्वारा किए जा रहे कार्य के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे जानकर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे। दरअसल ये शख्स एक ऐसे मशीन का निर्माण किए हैं जो पानी की मदद से गेहूं पीसने का काम करता है। यह बात आपको जानकर थोङा आश्चर्य होगा लेकिन यह बात सत्य है। आईए जानते हैं इनके इस कार्य के बारे में…
पहले के लोग गेंहू पीसने के लिए पवन चक्की का उपयोग करते थे। आजकल आपको गेंहू पीसना है तो बिजली या डीजल से चलने वाली मशीनों का उपयोग कर मिनटों में ही ये कार्य पूरा हो रहा है। परन्तु आज भी एक जगह है जहां गेंहू पीसने के लिए बिजली या डिजल-पेट्रोल का उपयोग नहीं बल्कि पानी का उपयोग होता है। अब आप ये कहेंगे ये कैसे सम्भव है पानी से कैसे गेंहू या अन्य किस्म के अनाज की पिसाई हो सकती है?? लेकिन ये सत्य है, जब पानी से बिजली उत्पन्न किया जा सकता है तो गेंहू की पिसाई क्यों नहीं हो सकती?? अगर आप इस विषय में रुचि रखते हैं और अधिक जानकारी लेना चाहते हैं तो हमारे साथ लेख पर बनें रहें। -Eco-Friendly watarmill
पानी से चलने वाला घराट नाम की चक्की
जिससे गेंहू पिसा जाता है उसे पनघट कहा जाता है। दरअसल ये किस्सा उत्तराखंड (Uttarakhand) का है जहां पर स्थित बागेश्वर जिले में एक दुर्गम इलाके में सरयू की एक सहायक नदी कर्नल गढ़ के पानी को कुछ हद तक मोड़ दिया गया है। जिस कारण पुल में 1-2 हजार लीटर तक पानी 1 मिनट में बहने लगता है। पानी के बहाव को अंत में झरने की तरह गिराकर उसका उपयोग गेंहू पीसने (आटा चक्की) में किया जाता है। जब पानी यहां गिरता है तो लकड़ी के चक्के तेजी से घूमने लगता है। लकड़ी के इस चक्के के ऊपर 1 से 1.5 क्विंटल पत्थर फिट किया गया होता है, जैसे ही यहां पानी आता है उसके ताकत के कारण ये तेजी से घूमने लगता है और फिर इससे गेंहू पिसाने लगता है। गेंहू के अतिरिक्त यहां तमाम किस्म के अनाज पिसे जाते हैं।
पनघट का वीडियो देखें
पानी की गति पर निर्भर करता है घराट की गति
आटा कितना बारिक या मोटा करना है इसके लिए इसमे गेयर लगा होता है। इस घराट चक्की के मालिक का नाम राजकुमार (Rajkumar) है जो 45 वर्ष के है। वह इस चक्की का उपयोग वर्षों से कर रहे हैं। वह ये जानकारी देते हैं कि किस तरह आंटे को मोटा या पतला किया जा सकता है। लकड़ी के इस चक्के पर पानी जितनी तेजी से आएगी घराट (Gharat) की गति भी उतनी ही तेज होगी और आटा जल्दी पीस जाएगा। ये घराट (Gharat) का पत्थर ग्वालियर से लाया जाता है जिसकी मोटाई 12 इंच तथा चौड़ाई 24 इंच होती है। अगर पिसाई ज्यादा हुई तो यह 25 वर्षों तक चलता है और कम हुई तो 30 वर्षों तक।
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राजकुमार के बेटे बहादुर राम (Bahadur Ram) करते हैं घराटों का मेंटेनेंस
इस पत्थर की कीमत 2 से 3 हजार रुपए है, साथ ही ट्रेन की यात्रा के दौरान भाड़ा भी लगता है। ऐसे में ये पत्थर लम्बी दूरी तय कर यहां पंहुचाता है। जब बरसात के कारण पानी बढ़ जाती है तो इन पुलों को बंद कर दिया जाता है ताकि घराट (Gharat) अधिक पानी के कारण बह न जाए। राजकुमार के बेटे का नाम बहादुर राम (Bahadur ram) है जो अपने पिता की मदद इस कार्य में करते हैं। जिस तरह हर चीज का मेंटेनेंस होता है, ठीक उसी प्रकार घराट (Gharat) को भी मेंटेनेंस की आवश्यकता होती है। घराट की मेंटेनेंस का काम बहादुर ही देखते हैं। -Eco-Friendly watarmill
मशीनों की तुलना में घराट का आटा है अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट
अगर किसी को 6 या 7 क्विंटल आटा चाहिए है तो लोग पहले ही बता देते हैं जिसके निर्माण में लभगभ 12 घण्टे का वक्त लग जाता है। लोगों का मानना है कि घराट (Gharat) का आटा बेहद पौष्टिक तथा स्वादिष्ट भी होता है और मशीनों की तुलना में फायदेमंद भी। ये घराट (Gharat) पूरी तरह ईको फ्रेंडली है और यहां बेहद लोकप्रिय भी है। लोगों को इसका आटा बहुत पसंद है क्योंकि यह पूरी तरह शुद्ध एवं स्वच्छ है इसलिए इसके आंटे का ज्यादातर उपयोग पूजा-पाठ में किया जाता है।