किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि रास्ते कहां ख़त्म होते हैं ज़िंदग़ी के सफ़र में,
मंज़िल तो वहां है, जहां ख्वाहिशें थम जाए।
कहते हैं, अगर जीवन में आगे बढ़ना है, तो सबसे पहले अपने आप पर विश्वास होना जरूरी होता है क्योंकि खुद पर विश्वास ही हमें अपनी मंजिल के करीब पहुंचाते हैं। बात करें अगर लड़कियों की तब उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। आज हम आपके साथ एक ऐसी ही महिला की कहानी बयां करने जा रहे हैं, जो बाल विवाह जैसी कुप्रथा का शिकार होने के वाली महिलाओं के लिए लड़ाई लड़ रही हैं।
जरा सोचिए कि अगर किसी के साथ घरेलू हिंसा, कम उम्र में शादी फिर उसके बाद उसपर एसिड अटैक हो फिर वह इंसान इन सबका सामना कैसे करेगा? एक ऐसी महिला हैं, जिनके साथ यह सारी घटनाएं हुई पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। आज वह ऐसी कई महिलओं के लिए आगे बढ़कर उनकी मदद कर रही हैं, जो ऐसी कुरीतियों की शिकार हो जाती हैं।
मीना सोनी की कहानी
मीना सोनी ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं और वे हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने बताया कि वह नैमतखाना में मैनेजर के तौर पर कार्यरत हैं। वह अपनी जॉब के साथ-साथ समाज में महिलाओं के प्रति हो रहे कुरीतियों को रोकने की दिशा में काम कर रही हैं।
मीना सोनी ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि जब वह हाई स्कूल पास की थी, तब वह 16 वर्ष की थी। उनका पूरा परिवार गोसाईगंज में रहता था। उनकी शादी मात्र 16 वर्ष की उम्र में हो गई। शादी के बाद अपने ससुराल में वह घरेलू हिंसा की शिकार हुई। वह बताती हैं कि उनके पति ज्यादातर बाहर ही रहते थे और उनके तीन बच्चे हैं। परिवार की आर्थिक मजबूती के लिए उन्होंने नौकरी करना शुरू की। नौकरी शुरू करने के बाद सब लोग उनपर पर शक करने लगे। ससुराल के लोग और पति भी उनपर शक करते थे। एक दिन जब वह सो रही थी तभी उन्होंने उनके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया गया। यह सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि किसी के पति किसी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं लेकिन मीना के साथ ऐसा हुआ। मीना बताती हैं कि तेजाब फेंकने के बाद मेरी पूरी दुनिया ही बदल गई। मैं वहां तड़पती हुई घर से बाहर चली गई। एसिड फेंकने के बाद उनके पति ने भी अपनी जान दे दी। उन्होंने बताया कि मुझे ऐसा लग रहा था कि अब मेरी जिंदगी पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है। उनके भाइयों ने उनका साथ दिया और उनका इलाज करवाया।
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मीना की कहानी सुनकर किसी का भी दिल दहल जाएगा। उन्होंने बताया कि जब वह आईने देखती थी तो उन्हें लगता था कि मुझे मर जाना चाहिए पर जब भी वह ऐसा कुछ करने का सोचती उनके सामने उनके बेटे और बेटियों का चेहरा नजर आ जाता फिर उनका मन बदल जाता। उनका कहना है कि वह इतना जरूर सोचती थी कि काश मेरी शादी कम उम्र में नहीं हुई होती तो शायद मैं आज अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी होती। खुद पर हो रहे अत्याचारों का विरोध कर पाती। इतने मुश्किलों का सामना करने के बाद जब वह सद्भावना ट्रस्ट से जुड़ी वहीं से उन्हें जीने की राह मिली। उन्होंने बताया कि सद्भावना ट्रस्ट से जुड़ने के कारण ही आज वह अपने बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना देख पा रही है। रेस्टोरेंट में नौकरी जीविकोपार्जन का जरिया है, किंतु मैं मुश्किलों में पड़ी महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराती हूं।
आज बदलाव के तरफ देश के कई युवाओं की टोलियां लगी हुई है। सभी प्रकार के बदलावों के बीच बाल विवाह जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए हमें आगे आने की जरूरत है। ऐसे ही एक राजधानी के युवा योद्धाओं की टोलियां है, जो इस समस्या को जड़ से खत्म करने का संकल्प ले चुकी है।
आइए हम उन युवाओं के प्रयासों के बारे में जानते हैं-
बाल विवाह भले ही आज के दिनों में कम देखने को मिलता है लेकिन यह एक कड़वा सच है कि इस प्रथा से बहुत से लड़कियों की जिंदगी बर्बाद हो गई। जो लड़की बाल विवाह जैसी कुप्रथा का शिकार होती है, वही इसे महसूस कर सकती हैं। मीना ने बताया कि इस समस्या से निपटने के लिए हम लोग चाइल्ड लाइन से जुड़े और पूरी टीम के साथ काम किए। बीते कुछ वर्षों में हम लोगों ने 53 बाल विवाह रुकवा चुके हैं। काजल पांडे जो हमारी टीम की सदस्य है, वह कहती हैं कि हमारे गांव में परिवार की एक बेटी का विवाह हमने रुकवाया था। उसी समय से यह सिलसिला जारी है। उन्होंने आगे बताया कि बाल विवाह रुकवाने के दौरान आने वाली तमाम मुश्किलों में हमारी पूरी टीम के साथ सीडब्ल्यूसी सदस्य डॉ संगीता शर्मा और बाकी अन्य सहयोगियों से हम सभी मुश्किलों का हल निकाल पाते हैं।खास बात यह है कि हमारी टीम में किसी ने एलएलबी किया है, तो किसी ने एमएसडब्ल्यू।
टीम चाइल्ड लाइन ने 53 बच्चियों की शादियां रुकवाई है। इन सभी में महिला सदस्य:- काजल पांडेय, तेजस्वी शर्मा, ट्विंकल सिंह, ज्योत्सना मिश्रा, तनु आदि।
पुरुष सदस्य:- कृष्णा, विजय, नवीन, विजेंद्र आदि।
टीम वात्सल्य ने अब तक 32 बाल विवाह रोके जिसमें महिला सदस्य:- वैशाली, शोभिता, सविता, अर्चना, प्रीति अन्य सहयोगी:- गौरव, विवेक, धर्मेंद्र, अंजलि, सौरव, भूपेंद्र अवधेश, रवि, प्रेमचंद्र, प्रशांत, राजकमल, योगेंद्र आदि।
आजकल सभी लोग पढ़ाई लिखाई के प्रति अग्रसर हो रहे हैं। कोई स्नातक की डिग्री ले रहा है, तो कोई पीजी कर आगे की तैयारी कर रहा है। डिग्रियां लेने के साथ-साथ हमारा यह भी कर्तव्य है कि हम अपने आसपास में हो रहे गलत कामों के प्रति आवाज़ उठाएं। इसी सोच के साथ आगे बढ़ रही टीम वात्सल्य जिसने अब तक 32 बाल विवाह होने से बचाए हैं। हालांकि ये लोग कुछ अन्य कामों के प्रति भी अग्रसर है जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा, भागीदारी और अन्य कई मुद्दों पर भी काम कर रहे हैं।
टीम की महिला सदस्य कहती है कि हम सभी मिलकर काम करते हैं चाहे समस्या या शिकायत सामने आने पर बातचीत और काउंसिलिंग से हल निकालने की कोशिश करते हैं। हम दिन रात एक करके कोशिश करते हैं कि कोई भी महिलाएं हिंसा के शिकार ना हो। अगर कोई ज़िद्द पर अड़ जाता है, तो हम सीडब्ल्यूसी सदस्य सुधारानी को फोन कर मदद लेते हैं। जब हमने अपनी टीम की शुरुआत की थी तब दो लड़कियां थी और अब धीरे-धीरे लड़कियों की संख्या बढ़ रही है।
तोड़ना होगा हिंसा के चक्र को
अफ़ताफ मोहम्मद जो चाइल्ड प्रोजेक्शन स्पेशलिस्ट यूनिसेफ के सदस्य हैं उनका कहना है कि बाल विवाह मानवाधिकार का हनन है और यह बच्चों का बचपन छीन लेता है। इतना ही नहीं यह कानूनन जुर्म भी है। लड़कियां इस हिंसा के चक्रव्यू में भी उलझ जाती है और नतीजा यह होता है कि वह कुपोषण और मृत्यु का शिकार हो जाती है। यदि बाल विवाह को रोकना है, तो सरकार, सामाजिक संगठन और अन्य एजेंसियों को साथ मिलना होगा और मिलकर बच्चियों के सपनों को उड़ान देना होगा।
उन दिनों की बात
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विद्या बिंदु सिंह का कहना है कि वर्तमान में मेरी उम्र 75 वर्ष है परंतु उस वक्त में सिर्फ 15 साल की थी। मैं आजमगढ़ में अपने ननिहाल में रहती थी और मैंने कई सारी शादियां देखी है, जिसमें लड़की ही नहीं बल्कि लड़को की शादी भी कम उम्र में कर दी जाती थी। उन्होंने बताया कि हमारे ननिहाल में रहने वाली एक महिला रिश्तेदार की शादी उनसे काफी कम उम्र के एक बच्चे से कर दी गई। ऐसे ही जहां हमारे दादा जी रहते थे वहां रहने वाले एक रिश्तेदार महिला की शादी कोई ज्यादा बड़े उम्र के आदमी से कर दी गई। जब उनसे बात होती तो वह कहती कि उन्होंने किस तरह अपना बचपन खोया और इसका उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ा। यह महज दो उदाहरण हैं, पर गांव में ‘बाल विवाह’ बचपन के छीन जाने और लड़कियों की मौत का कारण हुआ करता था। हालांकि अब यह जान कर अच्छा लगता है कि लड़कियां अब इसका विरोध कर रही हैं।