Wednesday, December 13, 2023

देश की इकलौती मछुआरिन रेखा की कहानी, जिसे मिल चुका है मछली पकड़ने का लाइसेंस

महिलाएं कमज़ोर नहीं होतीं, एक बार फिर यह साबित कर दिया एक महिला ने ही। आमतौर पर हम समंदर के किनारे उसकी खुबसुरती देखने जाते हैं, पैरों से टकराती लहरें और दूर डूबता सूरज किसे देखना नहीं पसंद होता है? आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक महिला बीच पर हाथ थामे घूमने के बजाय मछली पकड़ने के लिए रोज समंदर किनारे जाया करती है। सुनामी के समय पूरे देश ने समंदर का एक भयानक रूप देखा था। यह जानते हुए भी वह महिला हर रोज अपनी जान की परवाह किए मछली पकड़ने जाती हैं।

अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना मछुआरे करते हैं अपना काम

समंदर का भयानक रूप देखकर किसी का भी दिल दहल सकता है। ऐसे में उन मछुवारों का जीवन कितना खतरों से घिरा हुआ है। वह हर रोज सागर की लहरों पर गोते लगाते हैं, जाल फेंकते हैं और मछलियां लेकर तटों पर वापस लौटते हैं। बहुत से ऐसी कश्तियां हैं, जो कभी तटों तक पहुंच ही नहीं पाई और पानी में समा गई परंतु मछुवारे हर रोज़ अपने जीवन को खतरे में डाल कर अपना काम करते हैं।

Women with license for fishing

के.सी. रेखा (Ke.See. Rekha) को जानिए

ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं, जो मछली पकड़ने का काम करती हैं परंतु केरल के थ्रिशूर ज़िले के चवक्कड़ गांव की रहने वाली के.सी. रेखा सबसे अलग हैं, क्योंकि वह देश की पहली और इकलौती ऐसी मछुआरिन हैं, जिसके पास लाइसेंस हैं। उन्होंने सरकार से समु्द्र में उतरने की अनुमति ले ली हैं। उनसे पहले सरकार ने किसी भी औरत को अन्तर्राष्ट्रीय बॉर्डर पर मछली पकड़ने का लाइसेंस नहीं दिया था। केरल के स्टेट फ़िशरीज़ डिपार्टमेंट ने रेखा को ‘डीप शी फिशिंग लाइसेंस’ दिया है।

रेखा हो चुकी हैं सम्मानित

रेखा को यह लाइसेंस मिलने के बाद प्रिमियर मरीन रिसर्च एजेंसी ‘द सेंट्रल मरीन फिशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट’ ने उन्हें सम्मानित भी किया है। 45 साल की रेखा अरब सागर में मछली पकड़ने का काम करती हैं। उनका परिवार वाले यह व्यवसाय बहुत पहले से करते आ रहे हैं परंतु उन्हें कभी समुद्र में मछली पकड़ने का लाइसेंस नहीं मिला था।

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रेखा के परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ी

रेखा चवक्कड़ में अपने पति पी. कार्तिकेयन (P. Karthikeyan) और बेटियों के साथ एक सुखी जीवन बिता रही हैं। साल 2004 में आई सुनामी के बाद से समुद्र की हालात ख़राब है। यह जानने के बाजूद भी रेखा के पति अपने साथियों के साथ काम को दोबारा जमाने की कोशिश करते रहे। 10 साल पहले उनके दोनों सा​थी आर्थिक और समुद्र का भयंकर रूप देख कर काम छोड़कर वापस चले गए। अकेले समुद्र में नाव उतारना उनके बस की बात नहीं थी। जब पी. कार्तिकेयन को कोई मज़दूर नहीं मिला तो उनकी मदद के लिए रेखा ने पहली बार अपने पति के साथ समुद्र की गहराई में कदम रखा।

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जब परिवार पर आई संकट तो रेखा ने शुरू किया काम

पी. कार्तिकेयन के काम बंद होने के वजह से उनकी बेटियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही थी। ऐसे में घर का ख़र्च निकालना भी मुश्किल हो रहा था। ऐसे में पी. कार्तिकेयन के लिए मज़दूर रखना मुमकिन नहीं था इसलिए रेखा ने उनका साथ दिया ताकि किसी तरह बेटियों की पढ़ाई और घर का ख़र्च निकल पाए। रेखा एक इंटरव्यू के दौरान कहती कि लहरों के बीच से किनारों तक आना उतना खतरनाक नहीं हैं, जितना की समुद्र के भीतर जाकर उन्हें महसूस करना हैं। वह कहती हैं कि यह मेरी पहली कोशिश थी पर मैं डरी नहीं क्योंकि डर जाती तो मेरा घर नहीं चल पाता।

कदल्लमा देवी की है मान्यता

रेखा बताती हैं कि मछुआरों के परिवार में ‘कदल्लमा’ देवी की खास पूजा की जाती है। ‘कदल्लमा’ देवी नदी की देवी मानी जाती हैं। रेखा उनकी हररोज़ पूजा करती हैं। वह बताती है कि “आज भी जब नाव लेकर निकलती हूं, तो पहले देवी को मनाती हूं, आर्शीवाद लेती हूं फिर समु्द्र में कदम रखती हूं क्योंकि यह काम बहुत चुनौतियों से भरा हुआ है। महंगे रेस्त्रां में बैठकर मछली से बने व्यंजन खाना बहुत आसान है, परंतु समुद्र की गहराई से मछलियों को निकालना उतना ही मुश्किल काम है। रेखा ने मछली पकड़ने का काम अपने पति से सीखा है। रेखा की हिम्मत देखते हुए पी. कार्तिकेयन कहते हैं कि उन्हें अपनी पत्नी पर बहुत गर्व है।

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मछुआरे के लिए लाइसेंस मिलना बहुत मुश्किल

पी. कार्तिकेयन रेखा के बारे में कहते हैं कि वह वाकई मिसाल हैं। उसने हमेशा मेरा साथ दिया है। उनका कहना है कि अगर उस वक्त वह मेरे साथ बिना डरे समुद्र में नहीं उतरती, तो मेरा पूरा परिवार बिखर चुका होता। उन्हें इस बात की बहुत खुशी है कि सरकार ने उसकी मेहनत का फल दिया। आमतौर पर किसी भी मछुआरे को लाइसेंस मिलना बहुत मुश्किल होता है। जैसे समुद्र में मछली पकड़ने वाले मछुआरों को मौसम की, समुद्री रास्तों की और खासतौर पर देश की समुद्री सीमा की परख होना बहुत जरूरी है। साथ ही उन्हें हर परिस्थित में नाव चलाने का अनुभव भी होना चाहिए।

रेखा हैं इकलौती लाइसेंसधारी मछुआरिन

अगर कभी समंदर में अचानक तूफान या लहरों की असमानता हो तो वह सुरक्षित तट पर पहुंच सके। इसके साथ ही उन्हें मछलियों की परख होना भी बहुत जरूरी है। इस प्रकार के बहुत नियम बनाए गए हैं, जब सरकारी अधिकारी देखते हैं कि आप यह सब करने में सक्षम हैं, तब उन्हें लाइसेंस दिया जाता है। रेखा अपने परिवार को बचाने के लिए तथा अपनी बेटियों के पढ़ाई के लिए बहुत कुछ सीखा। आज वह देश की इकलौती लाइसेंसधारी मछुआरिन बनी हैं।