हाल ही में हम सभी ने बिहार के गया में रहने वाले लौंगी भुइंया के बारें में सुना। इन्होंने पानी की पूर्ति करने के लिये पहाड़ काटकर नहर बनाया था। आपको बताते चलें, इस मामले में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। ये तो हम सभी जानते हैं, जल जीवन का आधार है। जल हर प्रकार के जीव के जीने के लिए ज़रूरी है। जल की एक-एक बूंद बहुत ही बहुमूल्य है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। जल ही जीवन है।
आज आपको ऐसी ही महिलाओं के बारें में बताने जा रहे हैं। इन लोगों ने सिर्फ 17 से 18 महिनों में संयुक्त रूप से सूखे से निजात पाने के लिये गांवों में जल आपूर्ति करने के लिये 107 मीटर लम्बे पहाड़ को काटकर नहर का निर्माण कर दिया। इसके साथ ही इस काम को कर महिलाओं ने साबित कर दिया कि वह किसी भी काम में अपना लोहा मनवा सकती हैं।
यह बात मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के छतरपुर (Chhatarpur) जिले की है। वहां की सरकार जल आपूर्ति के लिये अलग-अलग प्रकार से कोशिश कर रही हैं। छतरपुर जिले के अंगरोठा गांव में सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज के तहत तालाबों का निर्माण करवाया था। यह 40 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ था। तालाब का निर्माण होने के बाद भी गांव में जलसंकट बना हुआ था। जल संकट बने रहने का कारण यह था कि जल स्रोत का कोई माध्यम न होने के वजह से प्रत्येक वर्ष बरसात के बाद तालाब का पानी सुख जाता था। जिसके कारण गांव की महिलाओं को जल लाने के लिये दूर जाना पड़ता था।
हर साल तालाब के सुख जाने से परेशान महिलाओं ने संस्था परमार्थ सामजसेवी संस्थान के साथ मिलकर पहाड़ को काटकर नहर बनाने की योजना बनाई। संस्था परमार्थ स्थानीय महिलाओं को जल सहेली के रूप में जोड़कर इस कार्य में सहायक की भुमिका में है। 400 से अधिक महिलाओं ने लगभग 18 महिने की समय अवधी में कठिन मेहनत के बाद 107 मीटर लम्बा पहाड़ को काट कर नहर का निर्माण किया है। नहर की तालाबों से जोड़ दिया गया है। जिससे गांव के कुओं और हैण्डपंप में भी पानी आने लगा है। अब महिलाओं को पानी लाने के लिये दूर नहीं जाना पड़ता हैं।
आपकों बता दे कि जल संरचना तैयार करने का कार्य व्यापक रूप से मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना,सागर और दामोह के साथ ही उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के झांसी, महोबा, ललितपुर, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन और बांदा में पिछ्ले कई वर्षों से चल रहा है।
अंगरोठा गांव में जल सफलता के बारें में जल सहेली बबीता राजपूत का कहना है कि, पहाड़ को काटने में श्रमदान के लिये सिर्फ गांव ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों से भी महिलाएं 3 किलोमीटर पैदल चलकर आती थी। पहाड़ पर स्थित ग्रेनाइट पत्थरों की बाधा को पार करने के लिये मशीन कभी इस्तेमाल किया गया। नहर का निर्माण करने के दौरान जितने भी पेड़-पौधों की कटाई की गईं, उतना ही पौधें फिर से लगा दिये गयें। क्षेत्र के 11 तालाबों का पुनरुद्धार हो गया है। इसके अलावा सुख चुकी बछेड़ी नदी को भी तालाबों के भर जाने से नया जीवन मिल गया है। पहले बछेड़ी नदी सिर्फ वर्षा ऋतु में ही बहती थी लेकिन अब यह नदी सालों भर प्रवाहित होगी।
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इसके अलावा हर गांव में पानी पंचायत बनाया गया है जिसमें 25-25 महिला मेम्बर हैं। पानी पंचायत के सभी महिला सदस्यों को यह जिम्मेदारी दी गईं है कि वह अपने गांव के औरतों के साथ मिलाकर गांव के जल संरचनाओं के निर्माण और देख-भाल का जिम्मा निभाती हैं। छतरपुर (Chhatarpur) जिले में जल सहेलियों के द्वारा 11 लघु बांध भी बना दिये गयें हैं।
जल-जन-जोड़ों अभियान के राज्य संयोजक मानवेन्द्र सिंह ने बताया कि पानी को सहेज कर औरतों ने गांव की स्थिति बदल दी है। पहाड़ से जोड़े गये तालाबों में लगभग 70 एकड़ तक जल जमा हो रहा है। इससे भू-जल स्तर में भी वृधि हो रही है। गांव में हुयें इस बदलाव के वजह से अब किसान खेती में सुनहरे भविष्य की कल्पना कर रहें हैं।
The Logically छतरपुर जिले की महिलाओं को शत-शत नमन करता है। जल के प्रति उनके द्वारा किया गया कार्य बहुत ही सराहनीय है।