बुरे वक्त से लड़कर जब कोई सफल होता है तो उसकी सफलता को देखकर सारी दुनिया हैरान होती है लेकिन जो सफल होता है उसे हैरानी नहीं होती है। क्यूंकि वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए कियें गयें संघर्षों के बारें में भली-भाँति समझता है। कामयाबी ऐसी चीज है जिसे पाने के पीछे न जाने कितने संघर्षो का सामना करना पड़ता है। अपने सपनों को पूरा करने के लिये कई रातें भूखे गुजारनी पड़ती है और भी ऐसी कई बातें जिससे होकर मंजिल का रास्ता गुजरता है।
भारतीय अंडर-19 टीम में शामिल क्रिकेटर यशस्वी जयसवाल की कामयाबी के पीछे भी कुछ ऐसी ही संघर्षों से भरी कहानी छिपी हुईं है। या यूं कह सकते हैं कि यशस्वी जयसवाल सफलता की अनसुनी और अनदेखी कहानी हैं। उनकी यह कहानी पढकर या सुनकर कुछ समय के लिये हृदय दुखी हो जाएगा और साथ ही गौरवान्वित भी।
आज हम आपकों इस युवा खिलाड़ी के बारें में बताने जा रहें हैं
यशस्वी जायसवाल (Yashasvi Jaiswal) IPL में खेलने वाला एक ऐसा खिलाड़ी जो अपने काबिलितय के जादू से सबको अपने ओर आकर्षित कर लिया है। भारतीय क्रिकेट टीम (Indian Cricket Team) के कई नये युवा खिलाड़ी जो उभरते हुए सितारों के रूप में सामने आये हैं। उदाहरण के लिये भारतीय अंडर-19 क्रिकेट टीम के कप्तान, ध्रुव चंद्र जुरेल और यशस्वी जयसवाल। ये सभी खिलाड़ी एक नये चेहरे के रूप में सामने आये और खुब सुर्खियां भी बटोर रहें हैं।
मुंबई (Mumbai) की तरफ से खेलने वाले क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल को कोलकाता (Kolkata) में दिसंबर 2019 में हुईं IPL के 13वें सीजन की नीलामी में राजस्थान रॉयल्स ने खरीदा। आईपीएल नीलामी में युवा खिलाड़ी यशस्वी जयसवाल का बेस प्राइस 20 लाख रुपए था। नीलामी में Kings XI ने इस नये युवा खिलाड़ी के लिये 80 लाख रुपये और KKR ने 1.9 करोड़ की बोली लगाई थी। यशस्वी जयसवाल के लिये राजस्थान रॉयल्स ने 2 करोड़ की बोली लगाई तो KKR ने अपने कदम पीछे हटा लियें। राजस्थान रॉयल्स ने यशस्वी जयसवाल को 2.4 करोड़ में खरीद लिया। इसी के साथ यशस्वी जयसवाल और उनके पूरे परिवार का सपना हकीकत में बदल गया।
यशस्वी जयसवाल के सफलता के पीछे छिपी संघर्ष की अनसुनी और अनदेखी कहानी।
यशस्वी जयसवाल उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के भदोही के रहने वाले हैं। इनके पिता जी भदोही में ही एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। यशस्वी छोटी उम्र में ही भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने का सपना लेकर मुंबई चले गयें। छोटी सी दुकान चलाकर पूरे परिवार का भरण-पोषण यशस्वी के पिता के लिये बहुत मुश्किल था। फिर भी उन्होंने यशस्वी के मुंबई जाने पर कोई एतराज नहीं जताया।
यशस्वी वर्ष 2013 में जब सिर्फ 11 साल के थे तब उन्होंने भदोही से मुंबई का सफर तय किया। उनके पास रहने के लिये जगह नहीं थी। मुंबई में यशस्वी के चाचाजी का घर भी इतना बड़ा नहीं था कि वे उन्हें अपने साथ रख सकें। यशस्वी के चाचा ने मुस्लिम युनाइटेड क्लब से निवेदन किया कि वे यशस्वी को टेन्ट में रहने की अनुमति दे।
मुस्लिम युनाइटेड क्लब (Muslim United Club) के गार्ड के साथ 3 वर्ष तक यशस्वी ने टेन्ट में अपना वक्त गुजारा। हालांकि इससे पहले यशस्वी एक डेयरी में कार्य कर रहें थे। वहां कई रातें उन्हें भूखे पेट सो कर गुजारनी पड़ी लेकिन वहां से यशस्वी को भगा दिया गया। उस वक्त यशस्वी सिर्फ 11 वर्ष के थे।
एक इंटरव्यू के दौरान यशस्वी ने बताया कि, “वे सिर्फ यह सोचकर आये थे कि उन्हें सिर्फ क्रिकेट खेलना और वो भी सिर्फ मुंबई से।” इसके अलावा उन्होंने बताया कि टेंट में रहने के लिये आपके पास बिजली, पानी, बाथरुम जैसी जरुरी सुविधायें भी नहीं होती थी। सभी खिलाड़ी अपने-अपने घर से भोजन लेकर आते थे और मुझें टेन्ट से ही 2 वक्त का भोजन दिया जाता था। कई बार बिना खाए सोना पड़ता था। वहां स्वयं रोटियां बनानी पड़ती थी।
यशस्वी हमेशा कोशिश करतें थे कि उनके माता-पिता को मुंबई में उनकी संघर्षों से भरी जिन्दगी के बारें में जानकारी न मिलें। यदि उनके कष्टमय जीवन के बारे में परिवार जन को जानकारी मिल जाती तो यशस्वी के क्रिकेट खेलने का सपना टुट जाता।
यशस्वी (Yashasvi) के पिता पैसे भेजते थे लेकिन कभी भी वह पैसे काफी नहीं होते थे। यशस्वी ने राम लीला के समय आजाद मैदान पर गोल-गप्पे भी बेचे। इन सब कठिनाइयों का समाना करने के बावजूद भी उन्हें कई रातें भूखे व्यतीत करनी पड़ी। यशस्वी के बारें में बहुत कम लोग ही जानते हैं। उनके लिये यह सफर सरल नहीं था। लेकिन अपने सपनों के जोश और जुनून की वजह से उन्होंने सभी चुनौतियों का सामना किया।
इस बारें में एक बार यशस्वी ने कहा था, “जिन लड़कों के साथ मैं क्रिकेट खेलता था, वे सुबह मेरी तारिफ करतें थे और शाम में मेरे पास गोल-गप्पे खाने आते थे। यह अच्छा नहीं लगता था लेकिन मजबूरी थी इसलिए करना पड़ता था।”
यशस्वी ने इसी वर्ष घरेलू क्रिकेट में बहुत ही शानदार प्रदर्शन किया था। उन्होंने विजय हजारे ट्रॉफी 2019 में मुम्बई की तरफ से खेलते हुयें दोहरा शतक के साथ 3 शतकों की सहयता से 5 मैचों में 500 से अधिक रन बनाया। यशस्वी ने झारखंड के खिलाफ 149 गेंदों में पहला दोहरा शतक लगाकर सबसे कम उम्र में ऐसा करने वाले विश्व के पहले बल्लेबाज बन गयें। इसके साथ ही वे विजय हजारे ट्रॉफ़ी में पहले पारी में ही सबसे अधिक 12 छक्के लगाने वाले खिलाड़ी भी बन गये।
आपकों बता दें कि सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) के बेटे अर्जुन तेंदुलकर (Arjun Tendulkar) और यशस्वी जयसवाल बहुत अच्छे मित्र हैं। इन दोनों की दोस्ती बेंगलुरु में राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी में हुईं थी। वहां अर्जुन और यशस्वी दोनो एक ही कमरे में रहते थे।
वर्ष 2018 मे अर्जुन ने यशस्वी की भेंट अपने पिता सचिन तेंदुलकर से करवाई। उसके बाद मास्टर ब्लास्टर सचिन भी यशस्वी के फैन हो गयें। सचिन ने पहली मुलाकात में ही यशस्वी को अपना बल्ला गिफ्ट दे दिया और उन्होंने यशस्वी से अपने डेब्यू मैच में उसी बल्ले से खेलने की गुजारिश भी की।
Yashasvi ने अपने जीवन में बहुत सी चुनौतियों का सामना किया और आखिरकार अपने सपनें को पूरा कर दिखाया।
The Logically यशस्वी जयसवाल को हृदय से नमन करता है। साथ ही उनके उज्जवल भविष्य की कमाना करता है।