बेंगलूरु मतलब भारत की सिलिकॉन वैली, एक ऐसा महानगर जो तकनीकीकरण और आधुनिकता से समृद्ध माना जाता है। लेकिन कहते हैं न कि हर अच्छाई में कहीं न कहीं एक बुराई भी छिपी होती है। ऐसा ही एक कड़वा सच बेंगलूरु के साथ भी है। जो शहर कभी हरे-भरे पेड़ों, खूबसुरत झीलों, बड़े पार्कों, बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों के लिए जाना जाता था वो अब तंग गलियों और जगह-जगह लगे कूड़े के ढेरों की पहचान मात्र रह गया है। दरअसल, स्थानीय कचरा प्रबंधन प्रणाली में दोष, तेजी से शहरीकरण, जगह की कमी, घरों से निकला कचरा वातावरण में अशुद्धता और गंदगी का कारण बनता जा रहा हैं। इन तमाम हालातों में, 2014 से अस्तित्व में आई ‘यूथ फ़ॉर परिवर्तन’ NGO ने आगे आकर न केवल समाधान निकालने का प्रयास किया बल्कि उसमें सफलता भी हासिल की।
27 साल के युवा वकील अमित अमरनाथ की सोच है ‘यूथ फ़ॉर परिवर्तन’
बेंगलुरु में जन्में अमित अमरनाथ और ‘यूथ फ़ॉर परिवर्तन’ के संस्थापक कहते हैं कि – जब वो क्राइस्ट यूनिवर्सिटी से अपनी लॉ की डिग्री हासिल कर रहे थे, वे बनाशंकरी के एक पार्क में गए, जहाँ खूबसूरती और ताज़गी की जगह कूड़े के ढ़ेर लगे हुए थे। आस-पास रहने वाले लोग इन बातों की शिकायत तो करते थे लेकिन सुधार के प्रयास नही। ऐसे में, उन्होने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक छोटा सा सफाई अभियान शुरू किया। उसमें सफलता के बाद, युवा वकील ने 2014 में यूथ फॉर परिवर्तन नामक यह एनजीओ शुरू किया।
शहर के बाहर भी शुरु किया सफाई अभियान
जगह-जगह लगे कूड़ों के ढ़ेर से आसपास की वायु और भूजल को प्रदूषित होता देख इस एनजीओ ने शहर के भीतर और आसपास के लगभग 264 से ज़्यादा जगहों पर सफाई अभियान चला कर लोगों को इस समस्या से मुक्ति दिलाई है।
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चुनौतियों से भरपूर था सफर
Zee कलकत्ता को दिये इंटरव्यू में अमित कहते हैं कि- यूथ फॉर परिवर्तन की स्थापना करते समय उन्हें कईं चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। संगठन को सार्वजनिक स्थानों को साफ करने के लिए झाड़ू, फावड़े, दस्ताने, मास्क और पेंट जैसे कई आपूर्ति और उपकरण खरीदने पड़े। लोग इसके लिए पैसे दान करने को भी तैयार नहीं थे। इन परिस्थियों में अमित के पास अपनी निजी बचत का उपयोग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। तब तक, उन्होंने एक लॉ फर्म में नौकरी भी हासिल कर ली थी। आखिरकार, उनके दोस्तों और परिचितों ने भी पिच करना शुरू कर दिया।
अंत के कगार पर थी YFP
अमित कहते हैं -सफाई अभियान के आयोजन की अनुमानित लागत 8,000 रुपये से 15,000 रुपये के बीच है। हमारे शुरुआती चरण के दौरान कई उदाहरण थे जहां हमारे पास मुश्किल से कोई पैसा था। एक बार, हमें अपनी जेब में केवल 600 रुपये के साथ छोड़ दिया गया था। लगा कि इस एनजीओ का अंत अब तय है लेकिन ऐसा नही हुआ। अमित के मुताबिक वर्तमान में आज यह संस्था अपने अधिकांश फंड निवासियों, व्यक्तिगत दाताओं, कॉरपोरेट्स और ऑनलाइन क्राउडसोर्सिंग प्लेटफार्म्स जैसे मिलाप और केटो से प्राप्त करता है।
सफाई के साथ एक नई पहल
‘यूथ फ़ॉर परिवर्तन’ के कार्यकर्ता न केवल प्रदूषित जगहों पर सफाई अभियान चलाते हैं बल्कि वहां की दीवारों को आकर्षक और प्रेरणादायक तस्वीरों से सजाते हैं।
आर्ग्नाइज़ड वर्क पर करते हैं फोकस
YFP टीम स्वयंसेवकों के नाम और कॉन्टैक्ट डिटेल्स का एक डेटाबेस रखती है। जब भी कोई आभियान आयोजित किया जाता है, उन्हें व्हाट्सएप या ईमेल के माध्यम से सूचित किया जाता है। अमित कहते हैं कि – कोविड-19 के प्रकोप के दौरान भी हमें लोगों का भरपूर सहयोग मिल रहा है। लोगों से मिला पॉज़िटिव रिस्पॉस हमें और अधिक सफाई अभियान चलाने के लिए प्रेरित करता है।
YFP नें विधार्थी मित्र प्लेटफार्म की भी शुरुआत की
अमित बताते हैं – विधार्थी मित्र प्लेटफार्म के ज़रिये लोग अपनी इच्छा से योग्य छात्रों के लिए पैसा कन्ट्रीब्यूट करते हैं फिर हम उन बच्चों के परिवार की आर्थिक स्थिति और योग्यता को देखते हुए एक क्राइटीरिया फिक्स करते हैं। जिसमें अगर शहरी छात्र अपनी परिक्षा में 80 प्रतिशत से ऊपर और ग्रामीण छात्र 70 प्रतिशत से अधिक मार्क्स लेकर आता है तो ऐसे बच्चे को इस प्लेटफार्म के माध्यम से सुविधाएं मुहिया कराई जाती हैं। यह भी देखा जाता है कि बच्चा BPL(Below Poverty Line) हो। तमाम प्रोसैस को अमल में लाते हुए बच्चों के अध्यापकों से भी सब कुछ वैरीफाई किया जाता है।
लॉकडाउन में भी सहायक YFP
Banglore Mirror को दिये साक्षात्कार में YFP संस्थापक अमित अमरनाथ ने बताया कि कोरोना के वक्त लगे लॉकडाउन में जब बहुत से लोग अपनी नौकरियां तक खो चुके थे ऐसे में संस्था ने ज़रुरतमंदों में फूड पैक्टस् बांटने के साथ-साथ बच्चों को शिक्षा सामग्री भी बांटी।
The Logically भी अमित अमरनाथ और उनकी यूथ फ़ॉर परिवर्तन संस्था की कहानी को साझा करते हुए गौरान्वित महसूस करता है।