अपने घर को दिन में दो बार साफ़ करने वाले हम जैसे लोग अपने मोहल्ले, शहर और देश को बेझिझक गंदा करते हैं। कूड़े का अंबार लगाते हैं। जानकारी की कमी नहीं है। हम 3R’s के बारे में जानते हैं। रिड्यूस, रीयूज और रिसाइकिल। इस जानकारी को अपने दैनिक जीवन में अपनाना भूल जाते हैं। वंसत विहार में रहने वाले दो भाइयों विहान और नव अग्रवाल ने घरों से निकलने वाला कूड़ा घटाने की योजना बनाई। कचरे की समस्या से निपटने के लिए जीरो वेस्ट प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया।
कूड़े के पहाड़ तले दबकर 2 लोगों की मौत ने दोनों भाइयों को झकझोर दिया था
2017 का दिसंबर महीना। ठंड का मौसम। गाजीपुर लैंडफिल साइट। कूड़े का ढ़ेर। ढ़ेर इतना ज़्यादा कि कूड़े-कचरों से बना अधिकल्पित पहाड़। इस पहाड़ तले दबकर 2 लोगों को जान चली गई। मौत का कारण??? शायद हम और आप। क्योंकि ये पहाड़ तो हमारे घरों से निकलने वाले कचरे से ही बना था। उस वक़्त कुछ ऐसा ही महसूस किया था, वंसत विहार में रहने वाले विनीत व प्रियंका अग्रवाल के बेटे विहान और नव अग्रवाल ने। एनजीटी ने राज्य सरकार और स्थानीय निकाय को कूड़े के निपटारे की स्थायी व्यवस्था बनाने का आदेश दिया था। सालभर बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
‘जीरो वेस्ट प्रोजेक्ट’ इस मुहिम से 350 घर जुड़ चुके हैं
कूड़े की समस्या से निजात पाने के लिए विहान (Vihan) ने रिसर्च करना शुरू किया और जनवरी 2018 में घर से ही जीरो वेस्ट प्रोजेक्ट (Zero Waste Project) पर काम करने लगा। दोनों भाई घर का कचरा सेग्रीगेट कर अब रिसाइकल करने लगे। घर के बाद उन्होंने अपने इस प्रोजेक्ट में आसपास के लोगों काे जोड़ा। रिसाइकल वेस्ट खरीदने वाली कंपिनयों से संपर्क कर घर के रिसाइकिल होने वाले वेस्ट उन्हें बेचने लगे। इससे हर घर को प्रतिमाह 250 रु. भी मिल जाते हैं। विहान और नव के इस प्रोजेक्ट में वंसत विहार, शांति निकेतन, वेस्ट एंक्लेव, आनंद निकेतन के 350 घर जुड़ चुके हैं। लैंडफिल साइट पर फेंकने के लिए अब इन घरों से सिर्फ 20% कूड़ा ही निकल रहा है। बाकी कचरा रिसाइकिल हो जाता है।
लोगों को कूड़े के निस्तारण के बारे में जानकारी और जीरो वेस्ट के लिए जागरूक करने के लिए प्रेजेंटेंशन भी देते हैं। सूखा कचरा और गीला कचरा अलग-अलग बाल्टी में रखने के लिए कहते हैं। सूखा कचरा जैसे- प्लास्टिक, पेपर, कांच, धातु, टिन और ई-वेस्ट इन्हें अलग जमा करें ताकि कंपनी खरीद ले। और गीला कचरा जैसे- फल और सब्जियों के छिलके, चायपत्ती, पेड़ों-पौधों की पत्तियां इन्हें कंपोज्ड ड्रम्प में जमा कर 1 माह में खाद भी बनाया जा सकता है। इस खाद का उपयोग घर में लगे पौधे, बगीचे या पार्क के लिए किया जा सकता है।
वन स्टेप ग्रीनर
दोनों भाइयों ने अपनी इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन स्टेप ग्रीनर’ एनजीओ (One Step Greener NGO) बनाया है। एनजीओ में विहान और नव के स्कूल के कुछ दोस्त हैं। ये वॉलिंटियर के रूप में दोनों भाइयों की मदद करते हैं। विहान कहते हैं, इन अच्छे दोस्तों के अलावा कुछ ऐसे भी दोस्त हैं जो मुझे कूड़े वाला कहकर बुलाते हैं। पर विहान को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह स्कूल के लिए वेस्ट रिसाइकिलिंग (Waste Recycling) का मॉडल बनाना चाहते हैं ताकि बच्चे स्कूल में सीख सकें कि सेग्रीगेशन कैसे होता है। फिर घर से कचरा ही नहीं निकलेगा या कम निकलेगा।
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विहान और उनके भाई नव अग्रवाल कहते हैं, अब दिल्ली के छतरपुर के पास स्थित गदाईपुर गांव, राजस्थान स्थित छोटी नांगल और बड़ी नांगल गांव में इस प्रोजेक्ट को शुरू करने की योजना है। वहां एक रिसाइकिल सेंटर बनाया जाएगा। रिसाइकल वेस्ट के बदले मिलने वाले पैसे को पंचायत या एनजीओ के माध्यम से गांव के स्कूल, डिस्पेंसरी में सुविधाएं बढ़ाने या सोशल वेलफेयर के काम में लगाया जाएगा।
दिल्ली में 30 फीसदी प्रदूषण कूड़े से होता है। प्रदूषण के मामले में भारत की राजधानी दिल्ली का दुनिया में पांचवें स्थान पर है जबकि राजधानी के मामले में पहले स्थान पर। आईक्यू एयर विजुअल द्वारा कराए गए विश्व वायु गुणवत्ता 2019 सर्वे के मुताबिक, गाजियाबाद दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। ऐसे में विहान और नव की जीरो वेस्ट की यह कोशिश सराहनीय है। The Logically इन दोनों भाइयों की प्रशंसा करता है।