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पढ़ाई करने के लिए कभी चाय बेची, गाड़ियां साफ की, आज बन चुके हैं प्रोफेसर: रफीक इब्राहिम

भारत में कुछ ऐसे गांव हैं जहां आज भी सुविधा के नाम पर बहुत कुछ मौजूद नहीं है। एक ओर जहां हर सरकार द्वारा हर एक गांव और कस्बे को विकसित करने के वादे किए जा रहे वहीं पर कुछ ऐसे गांव हैं जो बेहद हीं पिछङे हैं।

हम बात कर रहे हैं केरल (Keral) का पनामारम पंचायत के एकोम गांव, जिसे लोग मरा हुआ गांव कहते थे। यहां के रहने वाले रफीक इब्राहिम (Rafiq Ibrahim) बताते हैं कि इस बदलते समय में भी इस गांव में कुछ नहीं बदला – Rafiq Ibrahim became a doctor after overcoming all difficulties.

परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी

एकोम गांव बाहर की दुनिया से पूरी तरह अंजान था। रफीक के पिता चाय बेचते थे, जिस वजह से उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा। आर्थिक स्थिति भले हीं खराब थी परंतु रफीक कभी छोटे सपने नहीं देखें। उन्होंने चाय बेची, लोगों की गाड़ियां साफ की, यहां तक कि होटल में भी काम किया, परंतु अपनी पढ़ाई नही छोड़ी।

A Tea seller became a Professor

रफीक कभी किताबें पढ़ना नहीं छोड़े

रफीक के जीवन में एक ऐसा समय भी आया जब उनकी पढ़ाई रुक गई। हालांकि रफीक किताबें पढ़ते रहे और इसी तरह उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी कर ली। रफीक फर्स्ट क्लास पास करने के बाद अपने क्षेत्र में काम करने का फैसला किए। अक्सर गांव में स्कूल से निकलने के बाद लड़के जीप का ड्राइवर या क्लीनर बनते है, तो वहीं लड़कियों की शादी कर दी जाती है।

मैसूर जा कर शुरू किए चाय बेचना

कर्ज चुकाने के लिए रफीक के पिता को अपनी चाय की दुकान बेचनी पड़ी, जिससे परिवार की आय का स्रोत ही खत्म हो गया इसलिए रफीक 19 साल की उम्र में अपने एक दोस्त के पास मैसूर चले गए और वहां चाय बेचने का काम करने लगे। इसी दौरान उन्होंने अपने फर्स्ट ईयर की परीक्षाएं दीं, लेकिन टाइफाइड होने के वजह से उन्हें घर लौटना पड़ा। ठीक होने के बाद रफीक मलप्पुरम जिले के वंडूर चले गए और यहां उन्होंने बस स्टैंड के एक होटल में नौकरी की। – Rafiq Ibrahim became a doctor after overcoming all difficulties.

लेखकों के विचारों द्वारा हुए काफी प्रभावित

नौकरी के दौरान रफीक ने अपने खाली समय में किताबों की दुकानों पर जाकर किताबें और पत्रिकाएं पढ़ा करते थे। इससे उन्हें बहुत खुशी मिलती थी। साथ हीं महान लेखकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों ने रफीक को काफी प्रभावित किया। हालांकि अधिकारियों द्वारा बस स्टैंड का नवीनीकरण करने का निर्णय लिया गया, जिससे वह होटल बंद हो गया और रफीक की नौकरी चली गई।

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साहित्यिक रूप और सांस्कृतिक इतिहास में लिए डॉक्टरेट की डिग्री

होटल की नौकरी छुटने के बाद रफीक 2 साल तक एक जूते-चप्पल की दुकान में सेल्समैन का काम किया। इसी दौरान उनकी बहन की टीचिंग जॉब लगी और घर की हालत सुधरने लगी। यह देख रफीक ने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी। रफीक अपना एमफिल पूरा किया और ‘साहित्यिक रूप और सांस्कृतिक इतिहास’ में डॉक्टरेट की डिग्री लिए। इसी साल 6 नवंबर को रफीक ने कुन्नूर यूनिवर्सिटी के निलेश्वर कैंपस के मलयालम विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर की पोस्ट ज्वाइन किए है।

रफीक बन चुके है लोगों के लिए प्रेरणा

रफीक कहते हैं कि वह कोई हीरो नहीं हैं, लेकिन वास्तविकता को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसे कई लोग है, जो सुविधाओ से वंचित है, जैसे कि उनके पिता इब्राहिम और उनकी मां नबीसा ने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा। सभी परेशानीयों को पार कर रफीक और उनकी बहन बुशरा ने एसएसएलसी परीक्षा पास की। चाय से शुरूआत कर रफीक अपनी मेहनत से एक मुकाम हासिल कर पाए हैं। रफीक उन लोगों के लिए प्रेरणा हैं, जो जीवन की कठिनाइयों के आगे घुटने टेक देते है। – Rafiq Ibrahim became a doctor after overcoming all difficulties.

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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