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नेत्रहीन बच्चे को बना दिया पावर लिफ्टिंग का खिलाड़ी, पेश किया द्रोणाचार्य और एकलव्य का उदाहरण

कहते हैं कि भगवान अगर किसी को किसी अंग से कमजोर बनाते हैं, तो उसे ज्यादा हुनर देते हैं, ताकि वह जिंदगी में आगे बढ़ सके। आज हम एक ऐसे ही युवा पावर लिफ्टर राजू बाजपेई की बात करेंगे, जो नेत्रहीन होने के बाद भी मेहनत और लगन के चलते जीवन में सफल होने के प्रयास में जुटे हैं। राजू बाजपेई और उनके कोच ने साथ मिलकर केवल पांच महीने में स्वर्णिम छाप छोड़ी है।

नेत्रहीन होने के बावजूद बने लिफ्टिंग के खिलाड़ी

एकलव्य और द्रोणाचार्य जैसी यह जोड़ी स्टेट पावर लिफ्टिंग में पदक जीतने की तैयारियों में लगे हुए हैं। 24 वर्षीय राजू बाजपेई नारायणपुरवा के रहने वाले हैं। वह जन्म से ही नेत्रहीन हैं। राजू नेत्रहीन होने के बाजूद भी पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। वह सीटेड, डीएलएड पूरा करने के बाद इन दिनों दिल्ली (Delhi) में जर्नलिज्म की पढ़ाई कर रहे हैं। राजू हार मानने वालों में से नहीं हैं। वह जीवन में अनगिनत रंग भरने की ख्वाहिश रखते हैं। उनके इस सपने को पूरा करने का बीड़ा दर्शन पुरवा स्थित श्रीराम अखाड़े के कोच दुर्गेश पाठक ने उठाया।

Eklavya and Dronacharya relationship in present era with young power lifter Raju Bajpai and Durgesh

केवल पांच महीने में की लिफ्टिंग प्रतियोगिता की तैयारी

दुर्गेश कोरोना के समय शहर लौटे राजू को अखाड़े में ले जाकर उनकी प्रतिभा को तराशा। केवल पांच महीने में अखाड़े पर कड़ा अभ्यास करा कर कोच ने राजू को डिस्ट्रिक पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में उतारा। जहां नेत्रहीन राजू ने 66 किलोग्राम में स्वर्णिम छाप छोड़कर सबको अपनी काबिलित की पहचान दी। राजू के पिता प्रकाश चंद्र बाजपेई सेवानिवृत्त हैं, और उनकी मां ऊषा बाजपेई गृहणी हैं।

श्रीराम अखाड़े में राजू की तरह और भी बहुत से नेत्रहीन खिलाड़ी हैं।

कोच की मदद से बनाई आपनी पहचान

श्रीराम अखाड़ा दर्जनों ऐसे नेत्रहीन खिलाड़ीयो को उनकी पहचान दिलाने में जुटा हुआ है, जो आर्थिक परिस्थितियों को हरा कर राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बना चुके हैं। ललितपुर में हुई स्टेट और नेशनल पावर लिफ्टिंग में मुफलिसी को शिकस्त देकर खिलाड़ियों ने अपनी पहचान बनाई है। कोच दुर्गेश पाठक खिलाडियों को मंच मुहैया कराने में मदद करते हैं। राजू बताते हैं कि छह बार रोशनी के लिए उनके आंखों का ऑपरेशन हो चुकी है, जिसे धीरे-धीरे फिर उनकी आंखों की रोशनी वापस आ रही हैं। राजू बताते हैं कि हम जैसों को कोई भी सीखाना नहीं चाहता परंतु कोच ने मेरा साथ दिया मैं उनका नाम जरूर रोशन करूंगा।

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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