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नाथूराम गोडसे की भतीजी अब इस दुनिया में नहीं लेकिन जाने से पहले खोल गईं कई राज़: आप भी जानें

30 जनवरी 1948 को सूरज नहीं निकला था। चारो ओर कड़ाके की ठंड और कोहरे से ढकी दिल्ली की सड़कों पर पर भी कुछ खास आवाजाही नहीं थी। लेकिन अपने नियम के सख्त मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) को इसकी परवाह नहीं थी। वो तो रोजाना की तरह तड़के 3 बजे उठकर अपनी दिनचर्या को अंजाम दे रहें थे। उसी दिन शाम 5:17 बजे एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया।

भला बुजुर्ग इंसान, जिसने साम्राज्यवाद के खिलाफ इतिहास की सबसे शानदार लड़ाई का नेतृत्व किया, जिसने दुनिया की सबसे ताकतवर सत्ता के खिलाफ अहिंसक संघर्ष की नींव रखी, उसकी इतनी बेरहमी से कोई कैसे हत्या कर सकता है ? लेकिन नाथूराम गोडसे ने ऐसा किया। इस तरह ये दिन इतिहास के काले पन्ने में दर्ज हो गया।

 Mahatma Gandhi death and Nathuram Godse

उस दिन बापू को थोड़ी देर हो गई थी!

बापू रोज़ाना शाम पांच से छह बजे तक बिड़ला हाउस में सभा करते थे। सबसे पहले प्रार्थना होती थी फिर सभा के अंतिम क्षणों में वो सामयिक विषयों पर टिप्पणी भी करते थे। आमतौर पर वे 5.10 बजे प्रार्थना के लिए आ जाते थे, लेकिन उस दिन कुछ देर हो गई थी। उनकी आयु और स्वास्थ्य की वजह से हमेशा उनके कंधे और हाथ मनु और आभा (सहायिका) के कंधे पर रहते थे। उस दिन गांधी जल्दी में बिड़ला हाउस (Birla House) की तरफ अा रहे थे।

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वो एक के बाद एक तीन गोलियों की गड़गड़ाहट

अचानक एक युवक उनके पैर छूने लगा। फिर एकाएक एक के बाद एक तीन गोलियां बापू के शरीर पर दाग डाली। करीब एक मिनट तक सब अपनी जगह पर स्तब्ध थे। बाद में पता चला कि गोली मारने वाले का नाम नाथू राम गोडसे है। जिसने खाकी रंग के कपड़े पहने थे। फिर किसी ने गोडसे के सिर पर प्रहार किया। हालांकि गोडसे ने किसी भी तरह का विरोध नहीं किया बल्कि अपनी रिवॉल्वर को भी भीड़ के हवाले कर दिया।

सजा – ए – मौत में ये नाम भी था शामिल

लाल क़िले (Red Fort) में चले मुक़दमे में न्यायाधीश आत्मचरण (Justice Atma Charan) की अदालत ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सज़ा सुनाई। बाक़ी अन्य पाँच सहयोगी विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे और दत्तारिह परचुरे को उम्रकैद की सज़ा मिली। बाद में हाईकोर्ट ने किस्तैया और परचुरे को बरी कर दिया।

आखिर उसने गांधी को क्यों मारा ?

अदालत में गोडसे ने स्वीकार किया था कि उन्होंने ही गांधी को मारा है। अपना पक्ष रखते हुए गोडसे ने कहा, “गांधी जी ने देश की जो सेवा की है, उसका मैं आदर करता हूँ। उनपर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में इसीलिए नतमस्तक हुआ था किंतु जनता को धोखा देकर पूज्य मातृभूमि के विभाजन का अधिकार किसी बड़े से बड़े महात्मा को भी नहीं है। गाँधी जी ने देश को छल कर देश के टुकड़े किए। क्योंकि ऐसा न्यायालय और कानून नहीं था जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता, इसीलिए मैंने गाँधी को गोली मारी।”

बांए से दाएं बैठे हुए नाना आप्टे, दामोदर सावरकर, नाथूराम गोडसे, विष्णुपंत करकरे, दिगम्बर बडगे, मदनलाल पहावा (दाहिनी ओर खड़े हुए), गोपाल गोडसे, शंकर किस्तय्या

गोडसे की भतीजी हिमानी सावरकर की राय

15 नवंबर 1949 को जब गोडसे को फाँसी दी जा रही थी उससे एक दिन पहले उनके परिजन उनसे मिलने अंबाला जेल पहुंचे। उनमें से एक थीं गोडसे की भतीजी और गोपाल गोडसे की पुत्री हिमानी सावरकर (Himani Sawarkar) थीं। इतिहास की कई पुस्तकों और लेखों में नाथूराम गोडसे को सिरफिरा घोषित किया गया। लेकिन बीबीसी को दिए गए इंटरव्यू में हिमानी सावरकर ने बताया कि गोडसे ने अपने पूरे होश में बापू को मारा था। उस समय गोडसे संपादक थे। हिमानी अब इस दुनिया में नहीं 2015 में उनकी मृत्यु हो गई।

वो आखरी पल जब अखंड भारत का नक्शा लिए फांसी पर झूल गए गोडसे

15 नवंबर 1949 को जब नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फाँसी के लिए ले जाया गया तो उनके एक हाथ में गीता और अखंड भारत का नक्शा था और दूसरे हाथ में भगवा ध्वज। फाँसी का फंदा पहनाए जाने से पहले उन्होंने ‘नमस्ते सदा वत्सले’ का उच्चारण किया और नारे लगाए।

हत्या के दौरान नाथूराम ने यही कपड़े पहने हुए थे और यह गीत फांसी के पहले नाथूराम के पास थी।

हिमानी सावरकर ने खोले ये राज़

हिमानी सावरकर ने बीबीसी को बताया था कि “हमें उनका (नाथूराम गोडसे) शव नहीं दिया गया था। वहीं अंदर ही अंदर एक गाड़ी में डालकर उन्हें पास की घग्घर नदी ले जाया गया। जहां सरकार ने उनका अंतिम संस्कार किया। लेकिन हमारी हिंदू महासभा के अत्री नाम के एक कार्यकर्ता पीछे-पीछे गए थे। जब अग्नि शांत हो गई तो उन्होंने एक डिब्बे में उनकी अस्थियाँ समाहित कर लीं।

बता दें कि आज भी गोडसे की अस्थियां सुरक्षित रखी गई हैं। हर 15 नवंबर को गोडसे सदन में शाम छह से आठ बजे तक कार्यक्रम होता है जहां उनके मृत्यु-पत्र को पढ़कर लोगों को सुनाया जाता है। उनकी अंतिम इच्छा भी उनकी पीढ़ी के बच्चों को कंठस्थ है।”

नाथूराम की अस्थियां आज भी सुरक्षित हैं

गोडसे की अंतिम इच्छा के कारण आज तक नहीं बहाई गई उनकी अस्थियां

गोडसे परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को अभी तक चाँदी के एक कलश में सुरक्षित रखा गया है। हिमानी ने इंटरव्यू में बताया था कि “उन्होंने लिखकर दिया था कि मेरे शरीर के कुछ हिस्से को संभाल कर रखो और जब सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में फिर से समाहित हो जाए और फिर से अखंड भारत का निर्माण हो जाए, तब मेरी अस्थियां उसमें प्रवाहित कीजिए। इसमें दो-चार पीढ़ियाँ भी लग जाएं तो कोई बात नहीं।”

महात्मा गांधी के अंतिम शब्द…….

नाथूराम गोडसे की तीन गोलियों के लगने के बाद महात्मा गांधी का जीवनहीन शरीर नीचे की तरफ गिरने लगा और उनके मुंह से राम…….रा….. म नाम निकला। इस तरह अहिंसा और सत्य के पथ पर चलने वाले राहगीर ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

The Logically महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करता है।

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