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“आधी रोटी खाएंगे फिर भी पढ़ने जाएंगे” के नारों से उत्तरप्रदेश की ये लड़कियां कर रही लोगों को जागरूक

आज के समय में जहां एक ओर भारत की महिलाएं नए-नए कीर्तिमान रच रही हैं, तो वहीं भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता है। बेहद कम उम्र में पढाई छुड़वाकर उनकी शादी कर दी जाती है। – four girls from Uttar Pradesh changes the education system in village

चार लड़कियों ने मिलकर बदली गांव वालों की सोच

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की पुनीता (Punita), निशा (Nisha), रिंकू (Rinku) और पिंकी (Pinki) के गांव मिश्रौली और शाहपुर खल्वा पट्टी में भी हालात कुछ ऐसे ही थे। वहां लड़कियों को ज़्यादा पढ़ाया नहीं जाता था और कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी जाती थी। पढ़ने की इच्छा रखने वाली पुनीता, निशा, रिंकू और पिंकी ने इसे बदलने की कोशिश की। उन्होंने फैसला किया कि वे लड़कियों का भविष्य अंधेरे में नहीं जाने देंगी।

four girls from Uttar Pradesh changes the education system in village

छोटे-छोटे बच्चों का दोबारा स्कूल में कराया एडमिशन

चारों लड़कियों ने मिलकर उन छोटे-छोटे बच्चों का दोबारा से स्कूल में एडमिशन कराया, जो स्कूल छोड़ चुकी थी।

बच्चों के माता-पिता से करती है बात

इसके लिए वे बच्चों के माता-पिता से भी बात करती हैं। आपको बता दें कि पुनीता रमाबाई किशोरी संगठन (Ramabai Kishori Organization) की अध्यक्ष हैं। निशा बताती हैं कि उनके पिता कहते हैं कि मेरी लड़की जितना पढ़ेगी उतना हम पढ़ाएंगे भले ही इसके लिए हमें अपना खेत क्यों ना बेचना पड़े?

NGO की मदद से शुरू की पहल

यह चारों लड़कियां एक NGO से जुड़ी और दो किशोरी संगठन बनाई पुनीता और निशा ने शाहरपुर खल्वा पट्टी, पिंकी और रिंकू ने मिश्रौली में जुड़ गईं। – four girls from Uttar Pradesh changes the education system in village

अब समझ आ रहा तरीका

किशोर संगठन से पहले लड़िकयां जुड़ती हैं और उसके बाद ज़रूरी मुद्दों जैसे- शिक्षा, स्वच्छता, पर्यावरण पर बातचीत करती हैं। पिंकी बताती है कि पहले तो कुछ समझ नहीं रहे थे, लेकिन अब थोड़ा-थोड़ा समझ आ रहा है।

स्कूल ना भेजने का था कारण

इस अभियान के तहत मूसहर समुदाय के 216 (103 लड़के और 113 लड़कियां) स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की पहचान की गई। इस मुहीम से 10 गांवों के 445 छात्र, 407 छात्राएं और 125 Supportive Members जुड़े हैं। पुनीता बताती हैं कि जब हम लड़कियों के माता-पिता से पूछते थे कि लड़कियों को क्यों नहीं पढ़ाते हैं, तब वे कहते थे कि घर का काम कौन करेगा? ऐसे में पुनीता ने उन्हें समझाया कि सुबह जल्दी उठकर काम-काज करके लड़कियां स्कूल जा सकती हैं।

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पुनीता ने की गांव वालों की सोच बदलने की कोशिश

पुनीता के समझाने पर सभी मान गए, लेकिन उनका सवाल था कि लड़कियां पढ़-लिखकर आगे क्या करेंगी? पुनीता ने गांव वालों की सोच बदलने की कोशिश की और सभी को समझाया कि आज के दौर में लड़कियां डॉक्टर, इंजीनियर सब बन रही हैं। अगर आप अपनी लड़कियों को पढ़ने का मौका देंगी, तो वो भी आगे चलकर आपका नाम रौशन करेंगी।

पुनीता ने ली बच्चों की ज़िम्मेदारी

एडमिशन के दौरान जब स्कूल के टीचर ने पुनीता से सवाल पूछा कि तुम एडमिशन करवाकर चली जाओगी, फिर जब लड़कियां पढ़ने नहीं आएंगी तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा? ऐसे में पुनीता ने बच्चों की ज़िम्मेदारी ली। इसके अलावा पुनीता ने टीचर को अपना फ़ोन नंबर भी देने का भी प्रस्ताव रख दिया।

गांव में घूमकर लोगों को किया जागरूक

गांव वालों का कहना था कि अगर लड़कियां स्कूल जाएंगी तो हो सकता है कि वे किसी के साथ भागकर शादी कर लें। “आधी रोटी खाएंगे फिर भी पढ़ने जाएंगे” ऐसे नारों के साथ यह लड़कियों गांव-गांव में घूम-घूम कर लोगों को जागरूक कर रही हैं, जिसका परिणाम है कि गांव के सभी बच्चे अब स्कूल जा रहे हैं। – four girls from Uttar Pradesh changes the education system in village

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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