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आंखों की रौशनी जाने के बाद भी नही खोए हिम्मत, अपने कठिन परिश्रम से बने IAS अफसर: IAS Lalit

कुछ लोग खुली आंखों से सपना देखते हैं तो कुछ बंद आंखों से। मगर सपना पूरा वही होता है जिसके लिए कड़ी मेहनत की जाए। जितने बड़े सपने होते हैं, मुश्किलें भी उतनी हीं ज्यादा होती हैं। परंतु सफलता उसी को मिलती है जो मुश्किलों से हार नहीं मानते बल्कि उसका सामना करते हैं। आज की हमारी कहानी एक ऐसी हीं व्यक्ति की है जिसने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी, हर चुनौती का डट कर सामना किया।

ललित (Lalit)

ललित बचपन में तो समान्य बच्चों की तरह थे। परंतु जब वो पहली कक्षा में गए तो उनकी आँखों की रोशनी कम होने लगी। वह एक मेडिकल कंडीशन था जिसकी वजह से उनकी आँखों की रोशनी कम हो रही थी। 6वीं कक्षा तक उनकी तकलीफ बहुत बढ़ चुकी थी। उन्हें अपना एक्सएम खुद लिखने में समस्या होने लगी थी। कक्षा 8 से तो उन्होंने स्क्राइब लेना आरंभ कर दिया। उस समय उन्हें स्क्राइब मिलने में भी बहुत दिक्कत होती थी क्योंकि उनकी उम्र उसके लिए बहुत कम थी।

ललित के माता-पिता ने बढ़ाया उनका हौसला

वह समस्या ललित और उनके परिवार के लिए बहुत बड़ी थी। लेकिन ललित के माता-पिता ने हार नहीं मानी और ना कभी ललित का हौसला कम होने दिया। उन्होंने उनका पूरा साथ दिया और हमेशा उन्हें आगे बढ़ने का मौका दिया।

blind Lalit

ललित का बचपन का सपना

ललित के माता-पिता ने कभी भी ललित को असामान्य महसूस नहीं होने दिया। उन्होंने ललित को हमेशा एक सामान्य स्कूल में और बच्चों के साथ हीं पढ़ाया। ललित का बचपन का सपना था कि वो मेन स्ट्रीम कांपटीशन फेस करें परंतु ऐसे हालात में उनका ऐसा करना बहुत कठिन था। ललित के पिता ने उनका सपना पूरा करने का हर मुमकिन प्रयास किया।

ललित की पढ़ाई में आईं कई बाधाएं

ललित के पिता रेलवे में नौकरी करते थे। जिसमें उनका ट्रांसफर हर 3-4 साल बाद होते रहता था। उसमें उनके लिए सबसे बड़ी चुनोती ललित का अच्छे तथा सामान्य स्कूल में एडमिशन कराना हो गया था। वो एक जगह जा के बहुत मुश्किल से एडमिशन कराने में सफल होते तब तक उनका ट्रांसफर कहीं और हो जाता। फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और ना कभी ललित की पढ़ाई में कोई रुकावट आने दी।

ललित हुए दिल्ली में शिफ्ट

ललित ने शुरूआती पढ़ाई सेंट्रल स्कूल से पूरी की। उन्हें सब स्कूल में एडमिशन इसलिए नहीं मिल पाता था क्यूंकि स्कूल वालों को लगता था कि वो उनकी स्पेशल जरूरतें पूरी नहीं कर पाएंगे। उसी बीच ललित के पिता को पता चला की दिल्ली (Delhi) के एक स्कूल में ऐसे स्टूडेंट्स के लिए हर मायने में ज्यादा सुविधाएं हैं। तो उन्होंने ललित की पढ़ाई के लिए उन्हें लेकर दिल्ली चले गए।

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ललित की माँ ने दिया उनका पूरा साथ

ललित के माता-पिता हमेशा उनका हौसलाफजाई करते रहते थे। वे ललित को मैटीरियल पढ़ कर सुनाते थे और उनकी तैयारी करवाते थे। ललित बताते हैं कि उनके जीवन में उनकी माँ का बहुत बड़ा रोल रहा है। उन्होंने अपना पूरा जीवन ललित की पढ़ाई पर लगा दिया। उन्होंने कभी जॉब करने का विचार नहीं किया क्यूंकि वह अपना पूरा समय ललित की पढ़ाई पर देती थीं। इस तरह उन्होंने यूपीएससी तक की पढ़ाई पूरी की।

ललित को आई यूपीएससी की तैयारी करने में बाधाएं

ललित को यूपीएससी की तैयारी करने में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्हें मैटीरियल ही नहीं मिलता था। वे जैसे-तैसे बस ऑडियो बुक्स अरेंज कर पाते थे। यूपीएससी की तैयारी किसी और के भरोसे करना ये नामुमकिन सा लगता है परंतु ललित और उनकी माँ के हौसले बुलंद थे। उन्होंने दिन-रात एक करके पढ़ाई की।

ललित की माँ करवाती थी उनकी पूरी तैयारी

ललित बताते हैं कि प्री परीक्षा के समय जब वे प्रैक्टिस करते थे तो उनकी माँ पहले सारे प्रश्न पढ़कर सुनाती थी और ललित उसका जबाब समय रहते देते थे। अक्सर 7-8 घंटा लगातार बोलने से उनकी माँ की आवाज चली जाती थी फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वह पानी पीती, कॉफी पीती और फिर ललित को पढ़ाने में लग जातीं।

ललित ने किया दोस्तों का धन्यवाद

ललित पहली बार में चयनित नहीं हो पाए थे। ऐसे में दो बार मुख्य परीक्षा किसी और के लिए लिखना भी आसान नहीं था। प्री में तो खाली टिक करना होता है, परंतु मेन्स में बहुत लिखना होता है। जिन दोस्तों ने उनके इस कठिन परिस्थिति में मदद की वह उन दोस्तों को धन्यवाद करते हैं।

यहां देखें ललित द्वारा दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिया गया इंटरव्यू

ललित ने दिया राय

ललित मानते हैं कि उन्हें यूपीएससी परीक्षा में सफलता उनके माता-पिता के कठिन परिश्रम तथा उनके हौसले से मिली। जो स्कूल कभी उन्हे लेने से मना करता था, आज वो स्कूल उनके इंतजार में बैठे रहते हैं, तथा उनसे उनके नोट्स मांगते हैं। ललित बताते हैं कि जीवन में कुछ भी पाने के लिए नीयत साफ होनी चाहिए। अगर हम अपने मन में ठान लें तो किसी भी मुसीबत से लड़ सकते हैं।

The logically ललित और उनके माता-पिता के हौसले की प्रशंसा करता है। उनके हौसले की कहानी हम सब के लिए प्रेरणादायक है और साथ हीं ललित के इस कामयाबी के लिए उन्हें बधाई देता है।

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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