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पति के शराबी होने के कारण रौशन को संभालनी पड़ी घर की जिम्मेदारी, अब अन्य महिलाओं के लिए बनीं प्रेरणास्रोत

अपने हौसले से समाज की बेड़ियों और चार दीवारी को लांघकर रौशन खातुन ना केवल अपना घर चला रही हैं बल्कि अन्य महिलाओं को रोज़गार के लिए प्रेरित भी कर रही हैं.

मुज़फ्फरपुर, बिहार की एक फल विक्रेता रौशन खातुन घर-घर जाकर ठेले पर फल बेचती हैं और अपने मजबूत हौसले से जीवन की परेशानियों को मात देती हैं. एक ओर जहां यह कहा जाता है कि महिलाएं भारी-भरकम काम नहीं कर सकती हैं, उस कथन को काटते हुए रौशन स्वयं अपना ठेला खिंचती हैं और फल बेचती हैं.

रौशन, थोक विक्रेताओं से फल खरीदती हैं और उसे घर-घर जाकर बेचती हैं. इसमें उन्हें कुछ पैसों की जो बचत होती है, उससे वह अपना घर चलाती हैं और उन पैसों से ही आसपास की महिलाएं को रोज़गार और फल खरीदने तथा खेती के भी गुण सिखाती हैं. जिससे अब महिलाओं का दायरा घर से आगे बढ़ रहा है. अभी इस कार्य में कुछ महिलाएं जुड़ी हैं और यह संख्या अब धीरे-धीरे बढ़ रही है.

Raushan Khatun from Bihar is selling fruits and helping other women also

बतौर रौशन, उन्हें वह कार्य पसंद था, जिससे अन्य लोगों खासकर महिलाओं को मदद मिल सके. जिससे कि अन्य महिलाएं भी घर की दीवारों से बाहर निकल सकें.

रौशन बताती हैं कि वह बचपन से ही फलों के काम से जुड़ी हैं. पहले वह अपने बड़ों के साथ यह काम किया करती थीं. यहीं से उन्हें कार्य करने का तरीका समझ आने लगा. धीरे-धीरे उन्हें इस काम में रुचि बढ़ने लगी और वह इस काम में आगे बढ़ने लगी. इस काम के ज़रिये वह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती हैं.

रौशन के पति भी नशा करते हैं, जिससे उन्हें अन्य महिलाओं के दर्द का पता चला और उन्होंने ऐसी महिलाओं की मदद करने ठानी. जिससे यह कारवां आगे बढ़ने लगा.

वह आगे कहती हैं कि हम औरतों को अनेकों परेशानियों और सवालों का सामना करना पड़ता है. अधिकांश औरतें ऐसे में अपने प्रयासों से उन्हें एक जमीं देने में मुझे बहुत खुशी मिलती हैं. रौशन खातुन का यह हौसला वाकई लाजवाब है क्योंकि वे अपने जीवन की तमाम सरहदों को लांघकर अन्य महिलाओं के लिए जिंदगी की लौ बनकर उजाला कर रहीं हैं.

सौम्या ज्योत्स्ना की जड़ें बिहार से जुड़ी हैं। सौम्या लेखन और पत्रकारिता में कई सालों से सक्रिय हैं। अपने लेखन के लिए उन्हें प्रतिष्ठित यूएनएफपीए लाडली मीडिया अवॉर्ड भी मिला है। साथ ही SATB फेलोशिप भी प्राप्त कर चुकी हैं। सौम्या कहती हैं, "मेरी कलम मेरे जज़्बात लिखती है, जो अपनी आवाज़ नहीं उठा पाते उनके अल्फाज़ लिखती है।"

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