जिन्दगी काँटों का सफ़र है, हौसला इसकी पहचान है रास्ते पर तो सभी चलते हैं, जो रास्ते बनाये वही तो बलवान है। यानी अगर हमारे इरादे बुलंद हो तो लाख मुश्किलें क्यों न आए लेकिन टल ही जाती हैं। भारतीय रेस वाकर संदीप कुमार (Indian race walker Sandeep Kumar) ने इसे वाकया को सही साबित कर दिखाया है। गांव में गाय, भैंस, बकरी चराने वाले संदीप अब अंतराष्ट्रीय स्तर पर खेल मैदान नाप रहें हैं। जो उनकी कड़ी मेहनत और हौसले का परिचायक है।
टोक्यो ओलंपिक का टिकट तय
रांची में आयोजित आठवीं राष्ट्रीय ओपन रेस वॉकिंग चैंपियनशिप (8th National open race walking championship) में संदीप ने टोकियो ओलंपिक (Tokiyo Olympic) के लिए क्वालीफाई कर लिया है। 20 किलोमीटर की रेस वॉक में उन्होंने 1:20:16 के साथ एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया है।
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क्या है रेस वॉकिंग ?
रेस वॉकिंग कॉम्पटीशन में कंटेस्टेंट तेज़ी से चलकर फिनिश लाइन को पार करते हैं। इसमें एथलीट के पिछले पैर का अंगूठा तब तक जमीन से ऊपर नहीं उठ सकता जबतक के आगे वाले पैर की एड़ी जमीन को नहीं छू ले। आगे के पैर का घुटना मुड़ना नहीं चाहिए और पूरा पैर सीधा करते हुए अपने शरीर का वजन खींचना होता है। इसमें 10,20,50 किमी रेस को तय किया जाता है।
कम उम्र में मां के गुजर जाने के बाद पिता ने की परवरिश
रेस वॉकिंग में टोक्यो ओलंपिक का टिकट पक्का कर चुके संदीप कुमार बहुत ही सामान्य परिवार से हैं। हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के गांव सुरेती पिलानिया में उनके पिता ने गाय, भैंस और बकरियां पाली हुई हैं। उन्होंने खेतों में मजदूरी कर के संदीप को इस मुकाम तक पहुंचाया है। करीब सात – आठ साल की उम्र में अपनी मां को खो चुके संदीप को पिता से दोहरा प्रेम मिला।
बकरियों के साथ दौड़ लगाते थे संदीप
संदीप के बड़े भाई सुरेन्द्र ने मीडिया को बताया कि “बचपन से ही संदीप ने खूब बकरियों का दूध पिया है। वह बचपन में पिता के साथ बकरियां चराते समय दौड़ लगाता था।”
संदीप जब सेना में भर्ती हुए तो घर की आर्थिक हालत सुधरी। फिलहाल वो सूबेदार पद पर हैं। बता दें कि रियो ओलंपिक 2016 में भी वह इंडिया को रिप्रेजेंट कर चुके हैं।