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इस इंसान ने खुद से बनवा डाले 1 लाख से भी अधिक शौचालय, इसकी खासियत जानकर आप अचंभित रह जाएंगे

भारत विकास की ओर तेजी से बढ़ रहा है परंतु अब भी कुछ ऐसे गाँव हैं जहाँ हर सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसके लिए भी तेजी से काम किया जा रहा है ताकि हमारे देश का कोई भी हिस्सा पीछङा ना हो। आज हम एक ऐसी गाँव की बात करेंगे जो तरकी के मार्ग पर तीव्रता से आगे बढ़ रहा है।

मुसिरी पंचायत टाउन (Musiri Panchayat Town)

तमिलनाडु (Tamil Nadu) के तिरुचिरापल्ली (Tiruchirappalli) शहर से 42 किमी दूर स्थित है मुसिरी पंचायत टाउन (Musiri Panchayat Town)। यह गाँव कावेरी नदी के तट पर बसा है जिसकी वजह से यहाँ की जमीन काफी उपजाऊ है। यहां भूजल का स्तर काफी ऊपर है जिसके चलते सामान्य शौचालय यहाँ एक समस्या का रूप ले चुका है। यहाँ सीवेज का सही ढंग से डिस्पोजल न होने की वजह से पानी के प्रदूषित होने का खतरा लगातार बढ़ रहा है।

SCOPE द्वारा इकोसन शौचालय का निर्माण

इस बात से प्रभावित होकर सोसाइटी फॉर कम्युनिटी ऑर्गेनाइजेशन एंड पीपल्स एजुकेशन (SCOPE) ने मुसिरी में ‘इकोसन’ शौचालय लगवाए। इसके प्रयोग में किसी भी तरह का पाइप का इस्तमाल नहीं होता, जिससे यह पानी का स्त्रोत या फिर भूजल को प्रदूषित नहीं करता।

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बना पहला सामुदायिक शौचालय सिस्टम

साल 2000 में कलिपलायम (Kalipalayam) गाँव में पहला इकोसन शौचालय बना। इसे आगे बढ़ाते हुए साल 2005 तक सात शौचालयों वाला पहला सामुदायिक शौचालय सिस्टम बनाया गया, जिनमें पुरुष, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए अलग-अलग शौचालय बनाए गए। SCOPE के द्वारा तिरुचिरापल्ली में 20 हजार से ज्यादा इकोसन शौचालय लगाए गए। इस संगठन को साल 1986 में SCOPE के फाउंडर मराची सुब्बारमण (Marchi Subbaraman) ने इस गाँव के विकास हेतु यह कदम उठाया।

SCOPE ने किया बहुत से राज्य में काम

SCOPE ने गाँव-गाँव जा कर लोगो से बात किया तो उन्हें यह समझ आया कि वहाँ की सबसे बड़ी समस्या खुले में शौच की है। उसके बाद से SCOPE ने इस पर काम करना शुरू किया। SCOPE ने बहुत से राज्य में काम किया जैसे की बिहार, आंध्र-प्रदेश, उत्तर-प्रदेश, राजस्थान , असम और वह अब तक एक लाख से भी ज्यादा शौचालय बना चुका है।

मराची सुब्बारमण (Marchi Subbaraman)

सुब्बारमण (Subbaraman) की आयु 72 वर्ष की हो चुकी है। सुब्बारमण ने 1975 में तिरुचिरापल्ली के पेरियार ई.वी.आर कॉलेज से रसायन विज्ञान में बीएससी की डिग्री हासिल की। इससे अगले वर्ष उन्होंने तुमकुर में सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ एजुकेशन से बी.एड की। साल 1976 में उन्होंने गुंटूर में एक एनजीओ, विलेज रिकंस्ट्रक्शन ऑर्गेनाइजेशन के साथ काम शुरू किया। यह संगठन ग्रामीण इलाकों में कम लागत के घर बनाता है।

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इकोसन शौचालय की पूरी जानकारी

वह इकोसन शौचालय के बारे में बताते हैं कि यह पहाड़ी जगह के लिए बहुत अच्छा विकल्प है। सिर्फ पहाड़ी जगह पर हीं नहीं जहां पानी की कमी है वहाँ के लिए भी यह शौचालय अच्छा हैं क्यूंकि इसमें पानी का प्रयोग नहीं होता। सुब्बारमण शौचालय के बारे में बताते हुए कहते हैं कि इस शौचालय की पूरी यूनिट में दो पैन हैं और हर किसी में एक कैविटी है- एक मल के लिए और दूसरा पेशाब के लिए। पैन में हाथ धोने के लिए भी जगह होती है। ये दोनों कैविटी नीचे अलग-अलग गड्ढों से जुड़ी होती है। शौचालय को जमीन के ऊपर बनाया जाता है और यूनिट्स को कचरा इकट्ठा करने वाले गड्ढे से जोड़ा जाता है। इस शौचालय का सबसे अच्छा कंक्रीट बनाया जाता ताकि भूजल इसे प्रभावित ना कर सके। इसमें मल और पेशाब दोनो को अलग अलग पाइप से गड्ढों में इकट्ठा कर लिया जाता है और बाद में उन्हें यूरिया और खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

खाद का उत्पादन

मुसिरी में चटाई बनाने वाला घास बहुत आसानी से मिलता है। इस घास को जलाकर, इसकी राख को मल इकट्ठा करने वाली कैविटी पर डाला जाता है। इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण होता है जिससे यह नमी को सोख लेता है जिसकी वजह से खाद जल्दी बनता है। सुब्बारमण बताते हैं कि यहाँ नमी होने की वजह से इस प्रक्रिया में ज्यादा समय लगता है। वह बताते हैं कि 6 से 12 महीने के बाद ही कैविटी को खोलते हैं। उन्हें खाद तैयार मिलती है। हर साल हर एक शौचालय लगभग 400 किग्रा खाद तैयार करता है जबकि सामुदायिक शौचालय 1,177 किग्रा खाद तैयार करता है। इस खाद को मुफ्त में किसानों को उपयोग के लिए दिया जाता है।

किसानों को हुआ लाभ

वहाँ के किसान बताते हैं कि पहले उन्हें 20 हजार से ज्यादा रुपये खाद और यूरिया पर खर्च करना पड़ता था। परंतु अब उनका यह खर्च बहुत कम हो गया। सुब्बारमण कहते हैं कि जब उन्होंने शुरू किया था तब सामुदायिक शौचालय की कीमत 8 लाख रुपये थी। परंतु अब वो 15 लाख रुपये लेते हैं क्योंकि निर्माण सामग्री की कीमतें बढ़ गई हैं। यह कीमत और ज्यादा हो सकती है। यह निर्भर करता है शौचालयों के नंबर पर और उनके स्ट्रक्चर के साइज पर।

SCOPE के साथ मिल कर दूसरे एनजीओ, संगठन ने भी किया काम

इन सभी शौचालयों को दूसरे एनजीओ, संगठन और सीएसआर प्रोजेक्ट्स के साथ मिलकर लगाया गया है। सुब्बारमण बताते हैं कि उन्हें इस संगठन के संस्थापक में आने के बाद हीं कुछ करने का प्रेरणा मिला। उन्होंने 10 साल तक यहाँ काम किया और फिर 1986 में अपना संगठन शुरू किया। SCOPE ने गाँव के लोगों की बहुत तरह से मदद की जैसे कि अतिरिक्त बुनाई, सिलाई और पशुपालन के जरिए भी आय कमाने में मदद की। कृषि उत्पादन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए उन्होंने एक विदेशी संगठन, एक्शन फॉर फूड प्रोडक्शन के साथ काम किया।

इकोसन शौचालय का लाभ

सैनिटेशन के क्षेत्र में उनका काम तिरुचिरापल्ली के अलग-अलग गाँवों में लीच पिट टॉयलेट के निर्माण के साथ शुरू हुआ। इसके इस्तमाल में भी पानी का प्रयोग बहुत कम है और इसे खुले में शौच के गलत प्रभावों को रोकने के लिए बनाया गया। सुब्बारमण के चेन्नई की एक सैनिटेशन वर्कशॉप से उन्हे इसके बारे में पता चला। उसके बाद वह बेल्जियम के एक इंजीनियर, पॉल कैल्वर्ट से मिले। वर्कशॉप में उन्होंने इकोसन शौचालय के फायदों पर बात की और वहीं से सुब्बारमण को साल 2000 में इकोसन के बारे में पता चला।

SCOPE ने सारी चुनौतियों में प्राप्त की सफलता

SCOPE ने बहुत सी चुनौतियों का सामना किया है। लोग उनकी बात मानते हीं नहीं थे वह खुले में ही शौच करना ज्यादा पसंद करते थे। उन्हें वह ज्यादा आरामदायक लगता था और ना ही गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी परेशानियों के बारे में विश्वास करने को हीं तैयार नही थे। लोगों को समझने के लिए SCOPE ने शौचालय इस्तेमाल करने वालों को पैसे देना शुरू किया। हर एक दिन, जब कोई शौचालय इस्तेमाल करता तो उसे एक रुपया दिया जाता।

SCOPE ने किया लोगों को जागरूक

SCOPE ने 4 साल तक इस प्रक्रिया को जारी रखा इसके लिए उन्होंने 48000 रुपये खर्च किए। उनके इस प्रोजेक्ट को नीदरलैंड के एक एनजीओ, वेस्ट ने स्पॉंसर किया। उन्होंने बहुत से जागरूकता अभियान भी चलाए जिससे लोग जागरूक हो पाए और शौचालय का इस्तेमाल करे। इस तरह की चुनौतियों के साथ SCOPE ने यूनिसेफ जैसी संगठनों के साथ कई राज्यों में काम किया है।

सुब्बारमण देश को शौच मुक्त बनाना चाहते हैं

SCOPE ने साल 2018 की बाढ़ के बाद केरल में 100 इकोसन शौचालय बनाए हैं। सिर्फ यूनिसेफ के साथ उन्होंने अब तक 28 हजार शौचालयों का निर्माण किया है। सुब्बारमण बताते हैं कि मल का सही ढंग से डिस्पोजल होना बहुत जरूरी है। हमें इसका किसी खुले स्थान पर या फिर किसी पानी के स्त्रोत में डिस्पोज नहीं करना चाहिए। इससे पर्यावरण बहुत ज्यादा प्रभावित होता है। वह चाहते हैं कि देशभर में मल के निपटान के लिए ट्रीटमेंट प्लांट्स बनाए। इससे पर्यावरण को भी प्रभावित होने से बचाया जा सकता है। सुब्बारमण कहते हैं कि मेरा उद्देश्य अपने देश को 100% खुले में शौच मुक्त बनाने में योगदान देना है।

The logically SCOPE के द्वारा किए गए इस कार्य की प्रशंसा करता है और उम्मीद करता कि वह भविष्य में विकास की और तेजी से बढ़े।

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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