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वह महिला किसान जिन्हें बीजों के संरक्षण करने के लिए मिला पद्मश्री सम्मान: राहीबाई पोपरे

भारत (India) का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार किसी भी व्यक्ति को ऐसे हीं नहीं मिल पाता है, इसके लिए कुछ ख़ास व्यक्तियों का चुनाव किया जाता है। आज हम उन्हीं खास लोगों में से एक राहिबाई पोपरे (Rahibai Popre) के बारे में बताएंगे, जिन्हें भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है।

61 वर्ष की राहिबाई पोपरे (Rahibai Popre) महाराष्ट्र (Maharashtra) की रहने वाली हैं। वह एक आदिवासी किसान हैं और उन्हें हाल हीं में भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द (President Ram Nath Kovind) द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। पोपरे 154 देशी किस्मों के बीजों का संरक्षण कर रही है। इनके नाम के साथ हीं साथ इन्हें लोग ‘सीड वुमन’ के नाम से भी जानते हैं। राहिबाई अपने स्वभाव से काफी विनम्र और खुशमिजाज हैं। उन्होंने अपने सम्मान को अपने गांव और गांव के सभी किसानों को समर्पित किया है।

क्या कहा ‘राहिबाई पोपरे’ ने

राहिबाई पोपरे ने सम्मानित होने के एक दिन बाद बताया कि ‘उन्हें बहुत खुशी है कि उन्हें इतने बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया गया परंतु वह हमेशा हीं एक छोटी किसान के रुप में रहेंगी।’ उनका कहना है कि उनके लिए सभी किसान एक समान है और सबको उनका हक मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यह सम्मान वह अपनी मिट्टी और सभी किसानों को समर्पित करती है।

राहिबाई पोपरे ने इतनी खूबसूरती से एक बात कही जो मन को शांति प्रदान करता है। उन्होंने बताया कि जब एक महिला अपने ससुराल से मायका आती है, तो उसे अपने माता-पिता से बहुत स्नेह मिलता है, ठीक उसी तरह उनका संबंध अपनी धरती माता से भी है और वह इसी स्नेह के साथ बीजारोपण का कार्य करती है।

Seed Mother Rahibai popere got Padmashree

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) से भी हुई बातचीत

जैसा कि आपको पता है कि 8 नवंबर 122 लोगों को भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द (President Ram Nath Kovind) द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया। उस पुरस्कार समाहोर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल थे। उन्होंने ‘पीपुल्स पद्म’ से सम्मानित सभी लोगो को बधाई दी। राहिबाई पोपरे ने बताया कि उनका बातचीत नरेंद्र मोदी के साथ कुछ देर तक हुई, जिसमें उन्होंने उनके दिनचर्या के बारे में जानकारी ली और हमारे गांव में आने का वादा भी किया।

राहिबाई पोपरे ने बताया कि प्रधानमंत्री जी ने हमारे गांव आने का वादा किया है पर मुझे फिक्र है कि वह मेरे गांव कैसे आयेंगे, क्योंकि हमारे गांव में आने के लिए कोई रास्ता (सड़क) हीं नही है।

मिला था नारी शक्ति पुरस्कार

राहिबाई पोपरे ने कहा कि तीन साल पहले भी गांव में सड़क के लिए आवाज उठाया था। जब तीन साल पहले उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार दिया गया था, उस वक्त प्रधानमंत्री को यहां के बारे में जानकारी दी गई थी परन्तु अभी तक यहां कोई सड़क नहीं बन पाया।

उन्होंने बताया कि पुरस्कार तो हमें बहुत सारे मिले परंतु हमारे समस्याओं (सड़क नहीं, पानी नहीं) का समाधान आज तक नहीं हुआ।

154 किस्मों के बीजों से करती है, पारंपरिक खेती

अपनी दूर-दराज गावों से निकलकर पद्मश्री तक का सफर आसान नहीं था। उन्होंने बताया कि खेती को वापस अपनी जड़ों की ओर ले जाना और स्वदेशी बीजों को संरक्षित करने का उन्होंने वीङा उठाया है, जिसमें पारंपरिक तरीकों से संरक्षित चावल और ज्वार सहित 154 किस्में शामिल है।

राहिबाई पोपरे ने बताया कि उन्हें याद नहीं कि उन्होंने इस काम को कब शुरू किया था परंतु उनका कहना है कि इस कार्य को करते हुए करीब 20 से 22 साल हो ही गया होगा।

इस बारे में गांव के किसान ने क्या कहा?

आदिवासी गांव के एक किसान ने बताया कि उनके पोते के साथ-साथ गांव के बच्चे भी कुपोषित हो रहे थे, जो पहले कभी नहीं हुआ था। उन्होंने यह महसूस किया कि ऐसा इस कारण हो रहा था, क्योंकि वे लोग बहुत अधिक कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों को उपयोग कर रहे थे।

उस किसान ने बताया कि हमारा एक छोटा सा गांव है, जिसमें अधिकतर लोग खेती करके अपना जीवनयापन करते हैं। यहां कमाई का जरिया भी खेती हीं है। इस कारण लोग इससे अधिक पैसे कमाने के लिए रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर रहे थे, जिसका दुष्प्रभाव हमारे बच्चों पर पड़ रहा था। उन्होंने कहा कि हमारे गांव को खेती की पारंपरिक तरीकों में बदलने के लिए राहिबाई पोपरे ने जो कार्य किया वह बहुत ही सराहनीय है।

गांव के किसान का कहना है कि राहिबाई पोपरे जिन स्वदेशी फसलों और बीजों का संरक्षण कर रही है उन्हें उगाने के लिए मात्र पानी और हवा की आवश्यकता होती है, रसायनिक उर्वरकों की नहीं जबकि हाइब्रिड फसलों के लिए हमें अधिक पानी और कीटनाशकों की जरूरत होती है।

पिता से मिली प्रेरणा

राहिबाई पोपरे ने बताया कि इस बारे में उन्हें किसी ने नहीं बताया था। उन्होंने कहा कि उनके पिता जी हमेशा कहते थे कि ‘ओल्ड इज गोल्ड’ (Old is Gold) और यही सोच कर उन्होंने इन बीजों का संरक्षण करना शुरू किया। आज के समय में बाजार में पुरानी किस्म के चावल और कुछ दूसरे अनाज के बीज मिलना बहुत ही मुश्किल है परंतु हमारे यहां 154 देशी किस्मों के बीज मौजूद है।

गांव की महिलाएं उड़ाती थीं मज़ाक

गांव की सभी महिलाएं राहिबाई पोपरे के इस कार्य पर हंसी उड़ाती थी परंतु उन्होंने इस इस पर ध्यान नहीं दिया और अपने कार्य पर डटी रही। उनके कार्य के बारे में धीरे-धीरे लोग बातें करने लगे और साथ ही यह बात दूसरे गांव में भी फैलने लगी। इसके बाद अधिकारियों ने भी इस पर ध्यान देना आरंभ कर दिया।

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उनके परिवार से भी मिला सपोर्ट

उनकी कार्य की जानकारी जब लोगों में फैलने लगी तब आदिवासी किसान को भी संरक्षण के बारे में जानने के लिए इनका बुलावा शुरू होने लगा। वैसे इनके परिवार में पति और तीन बेटे थे पर उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कार्य कर रही थी, परंतु फिर भी उन्होंने इनका पूरा सपोर्ट किया और इस कार्य के लिए कभी नहीं रोका। बहुत जल्द हीं उन्हें छोटी-बड़ी इतनी पुरस्कार मिलने लगी कि उसे रखने की जगह हीं कम पड़ने लगी। उन्होंने कुछ राजनेता के बारे में बताया कि उनका नाम तो इन्हें याद नहीं है पर उन्होने मुझे एक घर बनाने में मदद किया।

किसानों और छात्रों को देती है, प्रशिक्षण

राहिबाई पोपरे ने बताया कि जो कुछ भी उन्होंने सीखा उसे पूरे लगन के साथ लागू किया। अब वह कई किसानों और छात्रों को भी बीज चयन, मिट्टी की उर्वरता और कीट प्रबंधन में सुधार के लिए तकनीकों का प्रशिक्षण दे रही है। इतना हीं नहीं वह किसानों को देशी फसलों की पौध प्रदान करती है, जिससे उन्हें देशी किस्मों की तरफ अग्रसर होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

आपको बता दें कि राहिबाई पोपेरे किसानों को पारंपरिक खेती और सिंचाई तकनीको के फायदे के बारे में भी बताती है। वह कहती है कि कुछ उपायों को अपनाकर हम फसल उत्पादन को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचा सकते है और साथ ही बीजों की देशी प्रजातियों पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।

पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद उन्होंने बताया कि अपने गांव वापस जाने के बाद वहां क्या बदलाव होगा इसके बारे में तो वही बता सकती है। उन्होने कहा कि अभी तो उन्हें वापस जाकर खेती पर ही ध्यान देना है। इतना ही नही फिलहाल राहिबाई पोपेरे की चिंता उनके गांव के सड़क को लेकर बनी हुई है।

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