Home Stories

एक वैद्य के छोटे से क्लिनिक से शुरू होकर डाबर जैसी बड़ी ब्रांड बनने की कहानी

‘डाबर’ एक प्रमुख आयुर्वेद दवा निर्माता कम्पनी है। बचपन से ही हम यह सुनते आ रहे है कि डाबर का च्यवनप्राश या डाबर हनी सेहत के लिए अच्छा होता है। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इतनी कॉम्पिटिशन के बीच भी यह लोगों की पहली पसंद है। क्या आप जानते हैं कि करोड़ों की इस कंपनी की शुरुआत आखिर किस तरह हुई थी? – Dr. SK Burman started the Dabur Company in 1884.

एक भारतीय वैद्य के हाथों हुई थी डाबर कंपनी की शुरूआत

दरअसल डाबर जैसी बड़ी कंपनी की शुरूआत एक छोटे आयुर्वेदिक क्लीनिक से हुई थी और उसकी स्थापना करने वाले एक भारतीय वैद्य थे। आज हम आपको डाबर ब्रांड की शुरुआती कहानी और उससे जुड़ी कुछ खास बातें बताएंगे। भारत में आज भी कई ऐसी कंपनियां हैं, जो आजादी के पहले से हैं, उनमें से हीं एक है डाबर। आपको बता दें कि डाबर की स्थापना एक भारतीय वैद्य के हाथों 1884 में की गई थी। उस दौरान लोग मलेरिया और हैजा जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे।

Starting and Success story of dabur company

डॉ. एस.के बर्मन ने किया था डाबर कंपनी की शुरूआत

एक भारतीय आयुर्वेदिक वैद्य थे, जिनका नाम था डॉ. एस.के बर्मन उन्होंने एक छोटी-सी क्लीनिक खोली और उसमें लोगों का इलाज करने लगे। साथ हीं उन्होंने मलेरिया और हैजा जैसी गंभीर बीमारियों के लिए आयुर्वेदिक दवा भी बनाई थी। उसके बाद उन्होंने हीं स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों को बनाना शुरु किया और इसे हीं डाबर कंपनी की नींव माना जाता है।

कंपनी का नाम डाबर रखने का कारण

अब हम आपको बताएंगे कि आखिर इस कंपनी का नाम डाबर ही क्यों रखा गया? कंपनी का नाम डाबर में ‘डा’ डॉक्टर शब्द से लिया गया है और ‘बर’ बर्मन से लिया गया। जानकारों कि माने तो सन् 1896 तक कंपनी के उत्पाद इतने लोकप्रिय हो गए थे कि डॉ. बर्मन को एक अलग फैक्ट्री बनानी पड़ी थी। हालांकि डाबर कंपनी के संस्थापक डॉ. बर्मन की 1907 में मौत हो गई। उसके बाद कंपनी की बागडोर उनके बेटे सी.एल बर्मन ने संभाली।- Dr. SK Burman started the Dabur Company in 1884.

यह भी पढ़ें :- अमेरिका से लौट आए भारत और बिना पूंजी का व्यापार शुरू कर आज खङी कर दी 42000 करोड़ की कम्पनी

सी.एल बर्मन ने डाबर कंपनी को दी नई ऊंचाई

सी.एल बर्मन ने अपनी कड़ी मेहनत से अपने पिता की कंपनी को और मजबूत किया। उन्होंने डाबर की रिसर्च लैब खोली और उत्पादों का विस्तार कर दिया। डाबर कंपनी आसमान की ऊंचाइयां छू रही थी। साल 1972 में दिल्ली के साहिबाबाद में एक विशाल फैक्ट्री का निर्माण किया गया और साथ हीं रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर बनाया गया था।

ग्रोथ बढ़ने पर डाबर कंपनी को तीन हिस्सों में बांट दिया गया

रिपोर्ट कि मानें तो कंपनी ने इतना प्रॉफ़िट हासिल कर लिया था कि कंपनी को साल 1994 में अपने शेयर लॉन्च करने पड़ गए थे। यह एक भरोसेमंद कंपनी होने के वजह से IPO यानी Initial public offering में 21 गुणा ज़्यादा सब्सक्राइब किया गया था। कंपनी का ग्रोथ बढ़ने के वजह से उसे तीन हिस्सों (Dabur Healthcare, Family Products और Ayurvedic Products) में बांट दिया गया।

डाबर ने कई कंपनियों को अपने अधिकार में लिया

साल 2000 में कंपनी का टर्नओवर पहली बार 1 हज़ार करोड़ के आंकड़े को पार करने में सफल हो पाई थी। उसके बाद साल 2006 में कंपनी का मार्केट कैप 2 बिलियन डॉलर जंप कर गया था। इस दौरान कंपनी ने समय के साथ कई अन्य कंपनियों को अपने अधिकार में ले लिया, जिसमें बल्सरा ग्रुप, फेम केयर फार्मा, होबी कॉस्मेटिक और अजंता फार्मा की 30-Plus ब्रांड शामिल थी। – Dr. SK Burman started the Dabur Company in 1884.

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

Exit mobile version