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भारत की पहली महिला जिन्हें “No Caste No Relegion” का सर्टिफिकेट मिला, 2010 में किया था आवेदन

एक ओर हमने धर्म और जाति (Relegion and caste) बनाकर समाज का विभाजन किया, वहीं दूसरी ओर आज इन्हीं दो विषयों पर खूब कश्मकश होती है। धर्म और जाति को लेकर मतभेद तो पुराना है। आए दिन इस पर अनेक चर्चाएं होती रहती हैं लेकिन इन सभी से ऊपर है दी चीजें ; मानवता और राष्ट्रीयता। पेशे से वकील तमिलनाडु, वेल्लोर के तिरूपत्तूर की – स्नेहा भारती (Advocate Sneha Bharti) की सोच कुछ अलग थी। उन्होंने कभी भी किसी भी फार्म पर जाति या धर्म के कॉलम को नहीं भरा। स्नेहा के माता पिता ने भी हमेशा से ऐसा ही किया है। जानते हैं क्यों ?

No Caste No Relegion

समाज में परिवर्तन की उम्मीद बन गई स्नेहा भारती

स्नेहा ने द हिंदू को बताया कि सामाजिक परिवर्तन की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। उससे भी ज्यादा स्नेहा को बिना जाति और धर्म के खुद की एक अलग पहचान चाहिए थी। स्नेहा ने कहा, “मेरे सारे प्रमाणपत्रों में कास्ट और रिलिजन के सभी कॉलम खाली हैं। इसमें मेरा जन्म प्रमाणपत्र और स्कूल के सभी सर्टिफिकेट्स शामिल हैं। इन सभी में सिर्फ मुझे भारतीय बताया गया है। मुझे महसूस हुआ कि सभी एप्लिकेशन में सामुदायिक प्रमाण पत्र अनिवार्य था, इसीलिए मुझे एक आत्म-शपथ पत्र प्राप्त करना ही था। ताकि मैं यह कागज़ों में साबित कर सकूं कि मैं किसी जाति और धर्म से जुड़ी नहीं हूं। जब जाति और धर्म को मानने वालों के लिए प्रमाणपत्र होते हैं तो हम जैसे लोगों के लिए क्यों नहीं।

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“No Caste No Relegion” का सर्टिफिकेट हासिल करने वाली पहली महिला

2010 में स्नेहा ने No Caste, No Religion के लिए आवेदन किया था। 5 फरवरी 2019 को बहुत ही मुश्किलों के बाद उन्हें यह सर्टिफिकेट मिला। अब स्नेहा पहली ऐसी शख्स है, जिनके पास यह सर्टिफिकेट है।
स्नेहा खुद ही नहीं, बल्कि अपनी तीन बेटियों के फॉर्म में भी जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ देती हैं। उनके इस कदम की काफी तारीफ हो रही है।

स्नेहा के इस कदम की लोग काफी सराहना कर रहे हैं। फिलहाल वी पहली महिला है जिन्हें ये सर्टिफिकेट मिला है लेकिन ऐसी सोच रखने वाले और भी लोग है जो ये सर्टिफिकेट हासिल करना चाहते हैं। ऐसे में यह समाज में किसी परिवर्तन की ओर इशारा कर रहा है।

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