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क्रोएशिया द्वारा रेश्म और जड़ी से बुन रही हैं अपनी पहचान, महिलाओं के लिए आर्टिफिशियल ज्वैलरी बनाकर बनीं आत्मनिर्भर

महिलाओं को गहने पहनने का शौक होता है, मगर अब महिलाओं ने अपने शौक को भी रोज़गार से जोड़कर उससे लाभ लेना शुरु कर दिया है. साथ ही सदियों पुरानी धारणा को तोड़ने का जिम्मा भी उठा लिया है, जिससे साबित होता है कि गहने महिलाओं की हथकड़ी नहीं बल्कि उनका स्वाभिमान भी बन सकते हैं.

बाज़ार में मिलने वाले महंगे गहनों को देखकर हर एक महिला चाहती है कि उसके पास भी वैसे ही गहने हो, मगर पैसों की बंदिश आ जाने के कारण अधिकांश महिलाएं उसे खरीद नहीं पातीं. उन महिलाओं के लिए पटना के निशाबाद की रहने वाली 51 वर्षीय विभा श्रीवास्तव क्रोएशिया द्वारा आर्टिफिशियल ज्वैलरी बनाकर उनके गहने पहनने के शौक को पूरा करती हैं.

Vibha Shrivastava from Patna is making artificial jwellery through crochea art

क्रोएशिया से बनाती हैं ज्वैलरी


सामान्य तौर पर क्रोएशिया आर्ट को ऊन के धागों से ही जोड़कर देखा जाता है, मगर विभा क्रोएशिया आर्ट के जरिये रेश्म और जड़ी के धागों द्वारा आर्टिफिशियल ज्वैलरी का निर्माण करती हैं, जिसमें कान की बाली से लेकर दुल्हन सेट तक बनाया जाता है. जिसकी कीमत 50 रुपये से लेकर 500 रुपये होती है. हालांकि लॉकडाउन के कारण आमदनी घट गई हैं, मगर सामान्य दिनों में उन्हें 10 हज़ार महीने की आमदनी हो जाती है.

मां ने सिखाई क्रोएशिया की बुनाई


विभा बताती हैं कि उन्होंने बचपन में ही क्रोएशिया आर्ट अपनी मां से सीखा था, जब क्रोएशिया आर्ट द्वारा बच्चों के स्वेटर आदि बुने जाते थे. विभा ने भी कुछ सालों तक स्वेटर बनाया लेकिन स्वेटर की डिमांड केवल सर्दियों के मौसम में ही होती थी, जिसके बाद विभा ने क्रोएशिया आर्ट से गहने बनाना शुरु कर दिया. विभा ने साल 2005 में अपने आर्ट को एक बिजनेस का रूप दिया था. विभा मिथिला विकास केंद्र और स्किल मैन फाउंडेशन के तहत महिलाओं को क्रोएशिया आर्ट सीखाती हैं. विभा बताती हैं कि अब तब उन्होंने 1000-1200 महिलाओं को क्रोएशिया आर्ट की ट्रेनिंग दी है, जिसमें से 10-12 महिलाएं वर्तमान में उनके साथ जुड़ी हैं.

मिले हैं कई सम्मान


विभा ने अपनी हॉबी को रोज़गार का जरिया बनाकर अनेकों अवार्ड्स अपने नाम किये हैं. साल 2017 में उन्हें रेनबो मित्र अवार्ड से नवाजा गया है. वहीं साल 2018 में नव्या सर्जना के तहत उन्हें एहसास प्रेरक सम्मान मिल चुका है. साल 2018 में ही बंधनी द्वारा उन्हें सुरेंद्र कुमार सिन्हा मेमोरियल अवार्ड मिला है. साथ ही साल 2018 में ही युनाइटेड नेशन और iCONGO द्वारा कर्मवीर चक्र अवार्ड मिला है. साल 2019 में सारण की बेटी का सम्मान भी प्राप्त है. साल 2020 में महिला संघ के तरफ से महिला शक्ति सम्मान भी मिल चुका है.

विभा ने अपनी कला की प्रर्दशनी अनेक जगहों पर लगाई है. जैसे- बिहार महिला उद्योग, उपेंद्र महारथी और महिला विकास द्वारा आयोजित स्टॉल्स में उन्होंने अपनी कला का प्रर्दशन किया है. विभा की बनायी ज्वैलरी दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता और हरिद्वार तक भी जाती है. हालांकि कोरोना काल के कारण काम थोड़ा रुका हुआ है, मगर लोगों के आर्डर हैं, जिसे पूरा करने में विभा का दिन ढ़ल जाता है.

सौम्या ज्योत्स्ना की जड़ें बिहार से जुड़ी हैं। सौम्या लेखन और पत्रकारिता में कई सालों से सक्रिय हैं। अपने लेखन के लिए उन्हें प्रतिष्ठित यूएनएफपीए लाडली मीडिया अवॉर्ड भी मिला है। साथ ही SATB फेलोशिप भी प्राप्त कर चुकी हैं। सौम्या कहती हैं, "मेरी कलम मेरे जज़्बात लिखती है, जो अपनी आवाज़ नहीं उठा पाते उनके अल्फाज़ लिखती है।"

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