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शादी के बाद बिखरती हुई जिंदगी को ऑटिस्टिक पीङित बच्चों के नाम कर दिया, आज उनका भविष्य संवार रहीं

परोपकार करना मानव जीवन का अहम धर्म माना जाता है। आजकल बहुत सारे लोग असहाय, गरीब व लाचार लोगों की मदद में खुद को समर्पित किए हुए हैं। उनमें से ही एक हैं विनिता मिश्रा (Vinita Mishra) जो पिछले 13 सालों से दिल्ली एनसीआर में ऑटिस्टिक बच्चों की मदद कर रही हैं। अपको बता दें कि ऑटिस्टिक बच्चे वह होते हैं जिन्हें दुनिया नॉर्मल नहीं मानती। हालांकि विनिता ऐसे बच्चों को अपना बच्चा समझकर उन्हें उस लायक बना रही हैं कि दुनिया इन बच्चों को दया के पात्र ना समझ कर एक सामान्य इंसान समझे। – Vinita Mishra from Madhya Pradesh, is treating an autistic child despite going into dark mode due to the breakdown of her marriage.

ऑटिस्टिक बच्चे भी बन सकते हैं सामान्य

दरअसल ऑटिस्टिक बच्चे वह स्पेशल बच्चे होते हैं जिन्हें सामान्य बच्चों से थोड़ी ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। हालांकि उन्हे अगर सही ट्रीटमेंट मिल जाए तो यह भी आम बच्चों की तरह हो सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में एक ऑटिस्टिक बच्चे ने 10वीं की परीक्षा में 96 प्रतिशत अंक हासिल किया हैं। मध्यप्रदेश के एक छोटे से परिवार में जन्मी विनिता मम्मी-पापा और दो भाइयों के बीच बहुत लाड़-प्यार से पली। हालांकि उनकी जिंदगी में डार्क मोड़ शादी के बाद आया, जिस लड़की की सारी बात मानी जाती थी, उसके भाई हर जिद पूरा करते थे। वह लडकी शादी सक्सेसफुल न होने की वजह से टूट गईं।

Vinita Mishra nurturing autistic children

विनिता के जिंदगी का चुनौतीपूर्ण समय

विनिता के अनुसार यह उसकी जिंदगी का सबसे बुरा समय था और लाइफ का टर्निंग प्वॉइंट भी रहा। उस दौरान उसकी एक बच्ची थी और वह एक सिंगल मदर बन चुकी थी। हालांकि अब भी विनिता बिना किसी के मदद के कुछ करना चाहती थी। वह पहले से ही मास्टर्स इन न्यूरो रिहैबिलिटेशन कर चुकी थी। ऐसे में उसे ‘तमन्ना’ संस्था के साथ काम करने का मौका मिला। विनिता बताती हैं कि यहां का पहला दिन मुझे अच्छे से याद है। मैं अपनी निजी जिंदगी से तो परेशान थी ही, लेकिन जब इन बच्चों से मिली तो मुझे मेरी जिंदगी की अहमियत समझ आई क्यूंकि इन स्पेशल नीड्स बच्चों में दुनिया की मिलावट नहीं थी वह बहुत सच्चे थे।

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ऑटिस्टिक बच्चे की सबसे प्रमुख परेशानी

अपको बता दें कि ऑटिस्टिक बच्चे में सबसे प्रमुख परेशानी होती है कि वह एक जगह बैठते नहीं हैं। वह सभी जगह उछलते-कूदते रहते हैं। इन बच्चों को थैरेपीज के जरिए ऐसा एनवायरमेंट दिया जाता है, जहां यह बैठाने लायक बन पाए तो यह उनकी हमारी सबसे बड़ी अचीवमेंट होती है। विनिता बताती हैं कि अब तक हमारे दो से तीन बच्चे ऑटिज्म से थोड़े-बहुत ठीक होकर नॉर्मल स्कूल में जाने लायक हो पाए हैं। एक बच्चा उनके पास दो साल की उम्र में आया था और अब सात की उम्र नॉर्मल स्कूल जा रहा है। ईन बच्चों की उपबल्धियां देख विनीता खुश हो जाती है। – Vinita Mishra from Madhya Pradesh, is treating an autistic child despite going into dark mode due to the breakdown of her marriage.

विनिता अपने काम से हैं संतुष्ट

विनिता बताती हैं कि मेरे कई दोस्त कॉरपोरेट में काम कर रहे हैं ओर अक्सर वह परेशान रहते हैं, लेकिन मैं अपने काम से बहुत संतुष्ट हूं। इस काम में ग्रोथ के लिए लड़ना नहीं है, बच्चे में पॉजिटिव चेंज लाना ही ग्रोथ हैं। इस प्रोफेशन में 13 साल काम कराने के बाद विनिता लोगों को जागरुक करना चाहती हैं कि अपने बच्चे को ध्यान से ऑब्जर्व करें कहीं उसमें ऑटिज्म के कोई लक्षण ना हो। विनिता बताती हैं कि तीन साल तक के बच्चे में यह ध्यान दे कि कहीं पुअर आई कॉन्टैक्ट तो नहीं है, वह ठीक से खेलता है या नहीं, लोगों से मिलने-जुलने में झिझकता तो नहीं है या उनसे मिलना ही नहीं चाहता, बोलने में दिक्कत तो नहीं हैं। अगर ऐसे लक्षण दिखे तो जल्दी इलाज शुरू करे।

बच्चों के साथ खुद को बेहतर बैलेंस कर पाती हैं

37 वर्षीय विनिता खुद के फिटनेस का बहुत ख्याल रखती हैं क्योंकि उन्हें उन बच्चों के साथ बहुत एक्टिविटीज करनी होती हैं, जिनमें कई बार बहुत भागना-दौड़ना भी शामिल है। साथ ही मन को शांत रखने के लिए मेडिटेशन-योग भी करती है। विनिता बताती हैं ऑटिस्टिक बच्चों से मिलकर यह ध्येय बना लिया कि अब उन्हीं बच्चों के लिए काम करना है और अब उनका लक्ष्य बच्चों को उस तरह बनाना है कि समाज स्वीकारे कि ऑटिज्म टैबू न रह जाए। भले ही इन बच्चों का सोचने, समझने का तरीका अलग है, लेकिन शरीर बिल्कुल सामान्य है। विनिता को ऐसा लगता है कि मैं इन बच्चों के साथ काम करके ही खुद को बेहतर बैलेंस कर पाती हूं।– Vinita Mishra from Madhya Pradesh, is treating an autistic child despite going into dark mode due to the breakdown of her marriage.

बिहार के ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर की भागदौड़ के साथ तालमेल बनाने के साथ ही प्रियंका सकारात्मक पत्रकारिता में अपनी हाथ आजमा रही हैं। ह्यूमन स्टोरीज़, पर्यावरण, शिक्षा जैसे अनेकों मुद्दों पर लेख के माध्यम से प्रियंका अपने विचार प्रकट करती हैं !

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