दुनिया के सभी मां-बाप यही चाहते हैं कि उनके बच्चे बड़े होकर उनका नाम रौशन करे, पर कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं कि मां-बाप के साथ हीं साथ बच्चों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। मां-बाप का साया बच्चों के लिए एक वरदान से कम नहीं होता है, अगर दोनो में से किसी एक का भी साया बच्चों के सिर से हट जाए तो उनका जीवन मानो रुक सी जाता है। कुछ ऐसे भी बच्चे होते हैं जो लाख कठिनाइयों के बावजूद अपनी सफलता का परचम लहराते है।
आज हम उन्हीं में से कुछ ख़ास लोगो की कहानी आपके साथ साझा करेंगे, जिन्होंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किए, बहुत से दुखों का सामना किए पर हार नही मानी और सफ़लता की ऊंचाइयों को छू कर अपने परिवार और देश का नाम रोशन किए।
- किंजल सिंह (Kinjal Singh)
अपने बच्चों की भविष्य बेहतर बनाने के लिए मां और बाप दोनों को ही आत्मनिर्भर होने की जरूरत है, ताकि किसी एक के ना होने पर उनके बच्चे को अनाथ जैसा जीवन ना जीना पड़े। किंजल सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। किंजल जब 5 वर्ष की थी तभी इनके पिता की मृत्यु हो गई, जिसके कारण इनकी मां को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
किंजल का जन्म यूपी के बलिया में 5 जनवरी 1982 में हुआ था। किंजल जब मात्र 5 वर्ष की थी तभी उनके पिता केपी सिंह की हत्या कर दी गई थी। पिता के मृत्यु के 6 महीने ही बाद उनकी मां ने एक और बेटी को जन्म दिया। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों का पालन-पोषण जैसे-तैसे किया। वह अपने दोनों बेटी को गोद में लेकर बलिया से सीबीआई कोर्ट दिल्ली का सफर तय करती थी।
IAS बनने का सपना किया पूरा
किंजल की आर्थिक स्थिति भले हीं कमजोर थी परंतु उनकी मां ने अपने मन में यह ठान लिया था कि वह अपनी दोनों बेटियों को आईएएस अफसर बनाएगी पर कहते हैं ना कि नियति में जो लिखा होता है वही होता है और किंजल के मां के साथ भी ऐसा ही हुआ। वर्ष 2004 में उनकी मां की भी मृत्यु हो गई, जिसके बाद प्रांजल की जिम्मेदारी भी किंजल के कंधों पर आ गई थी। साल 2008 में किंजल ने पूरे लगन और मेहनत से आईएस IAS अफसर बन कर अपनी मां की सपना को पूरा किया।
पिता के हत्यारों का लिया बदला
किंजल ने 5 जून 2013 को अपने पिता डीएसपी केपी सिंह की हत्या में मौजूद करीब 18 दोषियों को दोषी साबित किया और सजा दिलाई। उस वक्त किंजल बहराइच में डीएम के रुप में कार्यरत थी।
- (IAS) मोहम्मद अली शिहाब (Muhammad Ali Shihab)
अनाथालय में बीता जीवन
मोहम्मद अली शिहाब केरल के मलप्पुरम जिले के एक छोटे से गांव एडवान्नाप्पारा के रहने वाले हैं। इनका पूरा बचपन गरीबी में बीता है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण इन्होंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है। बचपन में ही इनके पिता का देहांत हो गया। मां के होते हुए भी इनका पालन-पोषण अनाथालय में हुआ क्योंकि इनकी मां इनके पालन-पोषण की जिम्मेवारी नहीं उठा सकती थी।
अपनी मेहनत से बदली जिंदगी
कहते हैं कि मुश्किलें चाहे जितनी भी हो पर मन में हिम्मत हो तो हर काम आसान सा लगता है। 10 साल अनाथालय में रहने के बाद शिहाब ने मेहनत से अपनी पढ़ाई पूरी की और यहां उन्होंने वह सीखा जिसने इनकी जिंदगी बदल दी। इनके जीवन में तब बदलाव आया जब इन्होंने अपनी मेहनत और लगन से यूपीएससी (UPSC) के एग्जाम क्लियर कर लिया। इतना ही नहीं इन्होंने सरकारी एजेंसियों द्वारा आयोजित 21 परीक्षाओं को भी पास किया।
UPSC में हासिल किए 226वां रैंक
शिहाब ने वन विभाग, जेल वार्डन और रेलवे टिकट परीक्षक आदि पदों के लिए कई एग्जाम दिए। साल 2011 में उन्होंने अपने तीसरे प्रयास में यूपीएससी (UPSC) एग्जाम पास कर लिया। इसमें उन्हें ऑल इंडिया 226वां रेंक प्राप्त किया। शिहाब का इंग्लिश उतना अच्छा नहीं था जिसके कारण उन्हें इंटरव्यू के दौरान ट्रांसलेटर की आवश्यकता पड़ी थी। इस इंटरव्यू के बाद इन्हे 300 में से 201अंक प्राप्त हुआ। इसके बाद इन्हें शिहाब नागालैंड के कोहिमा में पदस्थ किया गया।
- (IAS) अब्दुल नसर (Abdul Nasr)
कहते हैं कि जीवन में जो व्यक्ति संघर्ष करके सफलता हासिल करता है। उनकी कहानी न जाने कितने लोगों को प्रेरित करती है। एक ऐसा हीं प्रेरणादायक नाम है अब्दुल नसर की। जी हां, अब्दुल नसर भले हीं ज्यादा चर्चे में नहीं रहते हैं परंतु इनकी संघर्ष भरी कहानी को सुनकर आपको भी अपने जीवन में कुछ अलग करने की इच्छा जरूर उत्पन्न होगी।
संघर्षों से भरा रहा जीवन
अब्दुल नसर वह व्यक्ति हैं जिन्हें अपना पूरा बचपन अनाथालय में गुजारनी पड़ी। आपको बता दें कि इनके छः भाई-बहन थे, जिसमें यह सबसे छोटे थे। ये जब 5 वर्ष के थे तभी इनके पिता की मौत हो गई। परिवार में मां के उपर ही सारी जिम्मेदारियां थी और आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि इनके मां ने इन्हें अनाथालय में अपना भेज दिया।
UPSC में किए सफलता प्राप्त
अब्दुल को अनाथालय में जाने के कुछ ही साल बाद उनकी मां की भी मौत हो गई, परंतु उन्होंने अपना हौसला नहीं हारा। अनाथालय में पूरी लगन और मेहनत के साथ पढ़ाई करते हुए उन्होंने साल 2006 में यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा में सफलता हासिल किया और उन्हें डिप्टी कलेक्टर के रुप में पदस्थापित किया गया। वर्ष 2017 में वे कोल्लम जिले के कलेक्टर के रुप में सामने आए।
- IAS मिश्रा (Mishra)
बच्चों के सर से मां-बाप का साया हटने के बाद कुछ बच्चे अपना हिम्मत हार बैठते हैं परंतु उन्हीं सब बच्चों में से कोई होता है जो सफलता का परचम पूरी दुनियां में लहराता है।
5 वर्ष में हुए अनाथ, फिर भी नहीं हारी हिम्मत
ऐसी कहानी और अपने जीवन के संघर्षों के बारे में IAS मिश्रा ने ह्यूमन ऑफ मुंबई की एक पोस्ट में बताते हुए कहा था कि, वह केवल 5 वर्ष के थे तभी वह अपने माता-पिता को खो दिए थे। इसके बाद वे अपने रिश्तेदारों के साथ रहने लगे। अपनी लगन और मेहनत के साथ पढ़ाई करते थे और काफी संघर्षों के बाद उन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की।
फर्श पर पड़ा सोना
मिश्रा के पास पढ़ाई करने के लिए इतने पैसे नहीं थे और रिश्तेदारों ने भी उन्हें आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया। इसके बाद वे इलाहाबाद जाने का फ़ैसला किया क्योंकि वहां उन्हें छात्रवृत्ति मिल रही थी। वहां दाखिला लेने के लिए उन्हें कई रातें यूनिवर्सिटी के फर्श पर गुजारनी पड़ी थी।
स्कॉलरशिप किए प्राप्त
आखिरकार पूरी मेहनत की वजह से उन्हें स्कॉलरशिप मिला और इसी स्कॉलरशिप की वजह से उनकी जिंदगी बदल गई। अपनी मेहनत और लगन से इन्होंने यूनिवर्सिटी में प्रथम रैंक हासिल किया। इसके बाद उन्हें असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिल गई। उन्होंने मात्र 23 वर्ष की उम्र में सफलता हासिल किया।
- सूरज कुमार राय (Suraj Kumar Rai)
सूरज कुमार राय जो उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले हैं। उन्हें अपने जीवन में बहुत से दुखों का सामना करना पड़ा है। वह एक इंजीनियर बनना चाहते थे। अपनी 12वीं की पढ़ाई साइंस से पूरी करने के बाद, वह इलाहाबाद पढ़ाई करने के लिए चले गए। उनके जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था तभी अचानक उन्हें अपने पिता की हत्या की खबर मिली और वह सन्न रह गए।
पिता को न्याय दिलाने के लिए किया UPSC की तैयारी
सूरज ने अपने पिता को न्याय दिलाने के लिए थाने गए पर वहां उन्हें घंटों इंतजार करवाया गया। कोर्ट और थाने के चक्कर काटते हुए सूरज ने इस सिस्टम की व्यवस्था को बहुत अच्छी तरीके से समझ गए थे। इस कारण उन्होंने इंजीनियर बनने की चाहत को छोरकर यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा की तैयारी करने का निर्णय लिया। इसी सोच के साथ उन्होंने पूरे लगन के साथ तैयारी करना शुरू किया।
सुरेश ने अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए। उन्होंने UPSC की तैयारी के लिए दिन-रात मेहनत करना शुरु कर दिया। अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए वे जी जान से मेहनत करने लगें, पर यूपीएससी की तैयारी इतनी आसान भी नहीं होती है।
तीसरे प्रयास में मिली सफलता
अपने पहले प्रयास में सूरज सफल नहीं हो पाए परंतु उन्होंने हार नहीं मानी और तीसरे प्रयास में उन्हें सफलता हासिल हुई। साल 2017 में उन्होंने यूपीएससी परीक्षा में ऑल इंडिया 117 रैंक हासिल किया। आखिरकार उन्होंने जो चाहा उसे हासिल किया।
हमारी आज की कहानी उन लोगों की सफलता की है, जिन्होंने अपने जीवन में ना जानें कितने मुश्किलों का सामना किया है। इन्होंने यह साबित कर दिखाया कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न आ जाए, परंतु अगर हम ठान ले तो बड़ी से बड़ी परेशानियों को पीछे छोड़ कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। इनकी कहानी न जाने कितने लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है।