सदियों से हमारे समाज में नारी को अबला और कमजोर माना जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि महिलाओं की अपनी कोई इच्छा या सपना नहीं होने चाहिए। उनके हिसाब से केवल महिलाओं को समाज और परिवार की जरूरतों को पूरा करना चाहिए। हलांकि महिलाएं इन रूढ़िवादी परंपराओं और सोंच से आगे निकलना चाहती हैं और अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती हैं, परंतु उन महिलाओं के हर कदम पर पक्षपात किया जाता है इसलिए महिलाओं को अपने अधिकार के लिए लड़ना पड़ता हैं। – 6 major laws made for women, about which every woman needs to know.
आज हम आपको ऐसी महिलाओं को उनकी ताकत और अधिकार के बारे में बताएंगे, जिससे वह अपने साथ हो रहे भेदभाव या अत्याचार के खिलाफ लड़ सकती हैं और आगे बढ़ सकती हैं। भारत के वह 6 प्रमुख कानूनों (Laws) के बारे में बताएंगे जिसके बारे में हर महिला को जानना जरूरी है, जिससे वह अपने अधिकारों और सुरक्षा के प्रति सजग और जागरूक हो सकें। – 6 major laws made for women, about which every woman needs to know.
दफ्तर में यौन हिंसा और प्रताड़ना के विरोध के लिए कानून
कार्यस्थल पर किसी भी प्रकार की यौन हिंसा और प्रताड़ना से स्त्रियों को कानूनी सुरक्षा देने के लिए पॉश– द सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ विमेन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन एंड रीड्रेसल बेनिफिट एक्ट, 2013) कानून बनाया गया है। 3 सितंबर 2012 को यह लोकसभा से और 26 फरवरी, 2013 को राज्यसभा से पारित हुआ और 9 दिसंबर, 2013 से यह कानून प्रभाव में लाया गया। इस कानून के तहत कोई भी सरकारी या गैरसरकारी दफ्तर में जहां 10 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हो वहां पॉश कमेटी बनाना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने साल 1997 में एक वर्कप्लेस सेक्सुअल हैरेसमेंट केस के बाद स्वत संज्ञान लेते हुए यह गाइडलाइंस जारी किया था। दरअसल वह केस भंवरी देवी का था, जो एक एनजीओ में काम करती थीं। भंवरी देवी का कहना था कि काम के दौरान उनके साथ रेप हुआ था। कानून के तहत ऑफिस में काम कर रही महिला की सुरक्षा को सुनिश्चित करना संस्थान की जिम्मेदारी है और अगर इस दौरान उनके साथ कोई भी अनुचित व्यवहार होता है तो वह शिकायत कर सकती हैं।
घरेलू हिंसा से बचाव के लिए कानून
26 अक्तूबर 2006 को प्रोटेक्शन ऑफ वुमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस कानून भारत में लागू किया गया, जिसका उद्देश्य हर प्रकार की घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा करना था। नेशनल फैमिली हेल्थ के अनुसार भारत में 70 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं, जिसमें से केवल 10 फीसदी महिलाएं उस हिंसा की शिकायत करती हैं। आपको बता दें कि भारत में कोई ऐसा कानून नहीं बना है, जो घरों के भीतर महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकें इसलिए साल 2006 में यह कानून आया। इसके लिए जरूरी नहीं कि, जो व्यक्ति पीड़ित हो वही शिकायत दर्ज कर सकता है। अगर किसी को आभास हो रहा है कि कोई महिला घरेलू हिंसा की शिकार हो रही है तो वह भी पुलिस के पास शिकायत कर सकता है।
पिता की संपत्ति को लेकर महिलाओं को मिला अधिकार
सबसे ऐतिहासिक और जरूरी कानून में से एक हिंदू सक्सेशन एक्ट या हिंदू उत्तराधिकार कानून (2005)। आपको बता दें कि इस प्रकार का कानून 1956 के नाम से पहले भी था, लेकिन उसमें लड़के और लड़की के लिए भेदभावपूर्ण नियम थे। उस कानून में लड़कियों का पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था, सारी संपत्ति लड़कों को मिलती थी। साल 2005 में इस कानून में संशोधन किया गया और 9 सितंबर, 2005 में यह लागू हुआ। नए कानून में पुराने लैंगिक भेदभाव को खत्म किया गया। उसके बाद न्यायालय ने पैतृक संपत्ति में भी लड़कियों को बराबर का अधिकार देने की घोषणा की। पैतृक संपत्ति अब भी स्वत: ही बेटों की होती थी, लेकिन अब नए कानून के मुताबिक पैतृक संपत्ति में भी बेटे और बेटी दोनो को बराबर का अधिकार मिलेगा।
दहेज प्रथा के विरोध में भी बनाए गए कानून
डाउरी प्रॉहिबिशन एक्ट या दहेज निषेध अधिनियम हैं। साल 1961 में लागू हुआ इस कानून के मुताबिक भारत में दहेज लेना या देना, दोनों ही कानूनी तौर पर अपराध है। इसके जुर्म में पांच साल की कैद और 15,000 रु. तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए दहेज के मामलों पर लागू होती है। अगर आप दहेज की शिकायत करते हैं तो उसे तुरंत गिरफ्तारी हो सकती और इसमें जमानत का कोई प्रावधान भी नहीं था।
साल 1980 में दहेज की संख्या इतनी बढ़ गई कि इसे बंद करने कि बात न्यायालय तक चली गई। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह माना कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है, लेकिन कोर्ट ने इस कानून को वापस नहीं लिया। हालांकि, प्रावधानों में थोड़ी राहत दी गई। उसमे से तत्काल गिरफ्तारी और गैर जमानती अपराध जैसे नियम वापस ले लिए गए। इससे डाउरी प्रॉहिबिशन एक्ट (1961) दहेज की प्रताड़ना झेल रही हजारों स्त्रियों के लिए न्याय की उम्मीद बनी।
मातृत्व अवकाश
इस कानून के तहत कामकाजी महिला के लिए छह महीने के मातृत्व अवकाश को सुनिश्चित किया जाता है। इसमें नौकरी के दौरान भी पूरी सैलरी मिलती है। यह कानून हर उस सरकारी और गैरसरकारी कंपनी पर लागू होता है, जहां 10 से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं। मैटर्निटी बेनिफिट (एमेंडमेंट) बिल या मातृत्व लाभ (संशोधन) बिल 11 अगस्त, 2016 को राज्य सभा और 9 मार्च, 2017 को लोकसभा में पास हुआ था। 27 मार्च, 2017 को इसे कानून में लाया गया। इससे पहले मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट 1961 में लागू हुआ था, लेकिन उस समय यह अवकाश केवल तीन महीने का होता था। साल 2017 में इसे बढ़ाकर छह महीने कर दिया गया।
महिलाओं को मिला अबॉर्शन का अधिकार
भारत की हर महिला के पास अबॉर्शन का अधिकार होता है यानी जब वह चाहे अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को अबॉर्ट कर सकती है। इसके लिए उसे अपने पति या ससुरालवालों के सहमति की भी जरूरत नहीं होती है। द मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 (The Medical Termination of Pregnancy Act, 1971) के तहत महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है कि अगर वह चाहे तो अपनी 24 सप्ताह से कम की प्रेग्नेंसी किसी भी समय खत्म कर सकती है। इसके अलावा स्पेशल केसेज में एक महिला अपने प्रेग्नेंसी को 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्ट करा सकती है।
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