“एन ब्राह्मण ज़ादगान-ए-ज़िंदादिल
लालेह-ए-अहमर रूये शान खाजिल
तज्ब बीन-ओ-पुख्ता का-ओ-सख़्त कोश
अज़-निगाह-शान फरंग अंदार खारोश
अस्ल-ए-शान अज़ ख़ाक-दामनगीर मस्त
मतला-ए-ऐन अख्तरान कश्मीर मस्त”
“अल्लामा इक़बाल” की ये पंक्तियां जब भी मैं पड़ती हूं मेरे दिल में गर कर जाती हैं। जितने खूबसूरत ये शब्द हैं उनसे भी ज्यादा खूबसूरत इसके मायने भी यानी – “जिंदादिल ब्राह्मणों के ये वारिस जिनके चमकते हुए गाल ट्यूलिप को भी शर्मिंदा कर दें। मेहनती, परिपक्व और उत्कंठा से भरी आंखों वालें जिनकी एक नज़र ही यूरोपियों को बेचैन कर देती हैं। वे हमारी विद्रोही धरती की पैदाइश हैं। इन सितारों का आसमान हमारा कश्मीर है।”
कश्मीर के कल और आज में कितना फासला ?
जाहिर है ये शब्द कश्मीरी पंडितों को बयां कर रहे हैं। नियम तो यही है कि किसी भी इलाके का इतिहास उसके वर्तमान को बनाता है। लेकिन वर्तमान के समाजिक, राजनीतिक समीकरणों को बनाने – बिगाड़ने या सुलझाने में भी इतिहास को गढ़ने बदलने या सवारने की भी खूब कोशिश की जाती है। भला कश्मीर जैसा सुकुमार इलाका इस खेल से कैसे बचा रह सकता था? जहां आज भी राजनीतिक, समाजिक और सांस्कृतिक ऊहापोह में लोग जीवनयापन कर रहें हैं।
सालों पहले घाटी में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए घटनाक्रम की यादें आज भी दिलों में ताज़ा है। सवाल है कि आज के कश्मीर में पंडितों के प्रति धारणाएं बदली हैं? क्या सोच रखते हैं वहां के मूल निवासी ?
कश्मीरी पंडित के निधन के बाद मुस्लिम युवकों ने की दाह संस्कार में की मदद
इसका जवाब आपको इस घटना से मिल ही जाएगा। कश्मीर में इन दिनों भारी बर्फबारी हो रही है।
न्यूज एजेंसी कश्मीर न्यूज ट्रस्ट (Kashmir News Trust) के मुताबिक, 23 जनवरी को शोपियां जिले के कश्मीरी पंडित, भास्कर नाथ (Kashmiri Pandit Bhaskar Nath) का किडनी फेल्यर के कारण निधन हो गया था। वो श्रीनगर के SKIMS अस्पताल में भर्ती थे। शव को परगोची गांव लेकर जा रही एंबुलेंस शोपियां में भारी बर्फबारी के कारण फंस गई। ये जगह गांव से करीब 10 किलोमीटर दूर था।
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भारी बर्फबारी के कारण 10KM तक शव को लाद कर चले
एक स्थानीय युवक, फयाज अहमद ने एजेंसी को बताया, “एंबुलेंस ड्राइवर ने परिवार के एक सदस्य को फोन कर इस बात की जानकारी दी थी। जिसके बाद स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों तक भी बात पहुंची। खराब मौसम के बीच स्थानीय मुसलमान पैदल गए और शव को अपने कंधों पर लाद कर 10 किमी चलकर गांव लेकर आए। बर्फबारी के कारण सड़क बंद थी और आवागमन भी ठप।
मुस्लिम समुदाय ने पहुंचकर शोक जताया
इस बीच ही स्थानीय लोगों ने दाह संस्कार का सारा इंतजाम किया।हिंदू रीति रिवाज के साथ दाह संस्कार किया गया। इस दौरान भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पहुंचकर शोक जताया।
भास्कर नाथ के एक रिश्तेदार ने न्यूज एजेंसी से कहा, “हम अभिभूत हैं और अपने स्थानीय मुस्लिम भाइयों के लिए अपने प्यार और स्नेह को व्यक्त नहीं कर सकते।”
यही है असली कश्मीर, कश्मीरियत, इंसानियत
कश्मीर की सुंदरता को जितना कवियों और शायरों ने अपने शब्दों में पिरोया है उतना ही दुश्मनों की ओछी मानसिकता ने इस पर दाग लगाने का प्रयास किया। समय – समय पर दुश्मनी, आंतरिक लोभ और सत्ता के मोह में यहां फूट डालने की कोशिश होती रही। लेकिन यहां के जिंदादिल लोगों में कश्मीर, कश्मीरियत और इंसानियत बसती है।