टेलीविजन की दुनिया में TRP जाना माना नाम है। आपने सुना होगा कि टीवी शो टीआरपी के लिए कुछ भी करते हैं या इस चैनल की टीआरपी सबसे ज्यादा है। कुछ दिनों पहले टीआरपी से जुड़े स्कैम भी काफी चर्चा में थे। क्या है ये टीआरपी ? और कैसे तय की जाती है। इसके पीछे कौन लोग होते हैं। इसे क्यों इतनी महत्ता दी जाती है कि टीवी चैनल्स साम दाम दण्ड भेद अपनाने को भी तैयार होते हैं। आइए इन सब चीजों के बारे में जानते हैं।
तो ये है TRP का मतलब!
TRP यानी टेलीविजन रेटिंग पॉइंट वो तरीका है, जिसके जरिए ये पता लगाया जाता है कि जिन लोगों के घर में टीवी सेट लगे हुए हैं उन्हें कौन सा चैनल या प्रोग्राम देखना पसंद है। मतलब की कौन सा चैनल या प्रोग्राम कितना फेमस है और कितना वक्त लोग उन चैनल्स और प्रोग्राम को देखने में दे रहे हैं। आसान भाषा में कहें तो जिस चैनल या प्रोग्राम की जितनी पॉपुलैरिटी लोगों में होगी, उसकी टीआरपी उतनी ही ज्यादा होगी।
कैसे तय होती है TRP रेटिंग ?
देश में करोड़ों टीवी सेट होंगे तो टीआरपी कैसे तय होती होगी यह भी सवाल है। बता दें कि इसके लिए सैंपल के तौर पर कुछ निर्धारित शहरों, कस्बों के घरों में टीआरपी मापने वाले ‘पीपल मीटर’ (People Meter) लगाए जाते हैं। सैंपल के लिए निर्धारित घरों में इस डिवाइस को टीवी के साथ लगाया जाता है। इसकी मदद से उस टेलीविजन सेट पर क्या देखा जा रहा है और कितनी देर तक देखा जा रहा है, ये सबकुछ पता किया जाता है। पीपल मीटर के अलावा “पिक्चर मैचिंग” और “ऑडियो वॉटरमार्क” जैसे तकनीक भी सैंपल कलेक्ट करने के लिए इस्तेमाल होते हैं। कुछ हजार घरों में लगने वाले इन टूल्स से ही टीआरपी तय होती है। जिसमें खास तौर से दो चीजों का ध्यान रखा जाता है।
- चैनल/ प्रोग्राम कहां-कहां देखा जा रहा है
- कितनी देर देखा जा रहा है
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इस संस्था कि मिली है TRP तय करने की जिम्मेदारी
ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) टीआरपी तय करने का काम करती है। ये एक ऐसी इंडस्ट्री बॉडी है, जिसे एडवटाइजर, एड एजेंसियां और ब्रॉडकास्टिंग कंपनियां चलाती हैं। यही BARC, TRP के जरिए देश में टेलीविजन व्यूअरशिप को मापती है। BARC ने देशभर के 45000 घरों में सैंपल के लिए BAR-O-meters लगा रखे हैं। एक शो देखते वक्त जिसके घर में ये डिवाइस है वो अपनी मौजूदगी एक व्यूअर आईडी बटन के जरिए दर्ज होता है। ऐसे में तय हो जाता है कि कौन सा चैनल कौन देख रहा है और कितनी देर देख रहा है।अलग-अलग समुदायों, उम्र और दूसरे पैरामिटर पर ये डेटा बांट लिए जाते हैं और टीआरपी की लिस्ट तैयार की जाती है।
TRP के लिए घमासान की वजह
टीआरपी में रेस का सीधा फंडा रेवेन्यू से जुड़ा है। किसी चैनल की ज्यादातर कमाई होती है विज्ञापनों से, अब जिस चैनल पर या जिस प्रोग्राम पर लोग ज्यादा समय बिता रहे हैं, या ज्यादा लोग किसी प्रोग्राम या चैनल को देख रहे हैं तो उस चैनल पर विज्ञापन देखे जाने के चांसेज भी बढ़ेंगे। ऐसे में विज्ञापन देने वाली कंपनियां ऐसे चैनल्स को अहमियत देती हैं जिनकी टीआरपी ज्यादा हो। इस तरह चैनल की कमाई बढ़ जाती है। ऐसे में कॉम्पटीशन के इस दौर में नंबर-वन बने रहने की जुगत में चैनल लगे रहते हैं। दर्शकों को ध्यान खींचने के लिए अलग-अलग पैतरे अपनाते हैं। कई बार टीआरपी के चक्कर में जरूरी मुद्दों को भुलाकर ड्रामा क्रिएट करते हैं। हाल फिलहाल में तो न्यूज चैनल्स ने मनोरंजन वाले चैनलों को टीआरपी के मामले में पीछे छोड़ दिया था।
पिछले साल के लिए मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री पर FICCI-EY की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय टेलीविजन इंडस्ट्री का साइज 78,700 करोड़ था और एडवटाइजर के लिए TRP मुख्य करेंसी होती है। जिसके जरिए तय किया जाता है कि किस चैनल पर एडवरटाइज करना है।