आज भी हमारे समाज में ट्रांसजेंडर (Transgender) को बराबर का सम्मान नहीं दिया जाता है। उनके साथ भेदभाव किया जाता है, परंतु अब धीरे-धीरे लोग ट्रांसजेंडर (Transgender) समुदाय के प्रतिअपनी सोच बदल रहे हैं। अब ट्रांसजेंडर (Transgender) का काम केवल लोगों के घरों में जाकर नाच-गाना नहीं है। वह भी अब आम लोगों कि तरह अपने करियर और जीवन को बेहतर बनाने में जुटे है। रोज़ हमारे सामने ट्रांसजेंडर्स (Transgender) को प्रेरित करने वाली ख़बर आते रहती है।
CMFRI के मदद से अधिधि अच्युत को मिला रोज़गार
उन समाचारों में से एक है, कोच्चि की न्यूज़। 36 साल की एक ट्रांसजेंडर (Transgender) ने Vending स्टॉल लगाकर अपने जीवन को बदल दिया। आज हम जिसकी बात कर रहे हैं, उनका नाम अधिधि अच्युत (Adhidhi Achyuth) है। वह एक ट्रांसजेंडर (Transgender) हैं, जिसके वजह से उन्हें अच्छी जॉब पाने के लिए बहुत स्ट्रगल करनी पड़ी। उन्हें अच्छा जॉब नहीं मिल पाया परंतु वह व्यवसायी (Entrepreneur) बनने में कामयाब जरूर हुईं। रिपोर्ट के अनुसार CMFRI (Central Marine Fisheries Research Institute) ने उन्हें मछली बेचने के आधुनिक Vending स्टाल लगाने की सुविधा उपलब्ध कराया है।
15 मार्च को अधिधि के स्टॉल का हुआ उद्घाटन
बीते सोमवार यानी 15 मार्च को Vennala मार्केट में एक्टर्स हरिश्री अशोकन (Harisree Ashokan) और मौली कंनामली (Molly Kannamally) द्वारा अधिधि के स्टॉल का उद्घाटन हुआ। उनके स्टॉल पर जीवित मछली बेची जाती है। साथ ही वह ग्राहकों को क्लीन और पैकेड मछली होम डिलीवरी भी करते हैं। अधिधि के स्टॉल से मछली खरीदने के लिए ग्राहकों को पहले से बुकिंग करनी होगी।
अधिधि अच्युत ने खोली मछली की स्टॉल
रिपोर्ट की मानें तो सरकार के SCSP स्कीम के तहत CMFRI ने अधिधि अच्युत (Adhidhi Achyuth) को स्टॉल सेटअप करने के लिए 5 लाख रुपयों की मदद की है। जानकार बताते हैं कि स्टॉल में मछलियों को जीवित और फ्रेश रखने की सुविधा भी उपलब्ध है। साथ ही अधिधि के स्टॉल में कूलर, बिलिंग मशीन, डीप फ़्रीजर और फ़िश डिस्प्ले भी है।
समाज में बदलाव है जरूरी
CMFRI के निदेशक ए. गोपालकृष्णन (A. Gopalakrishnan) का कहना है कि इस संस्थान का यही मक़सद है कि भविष्य में मछली पालन को तकनीकी मार्गदर्शन देकर ट्रांसजेंडर (Transgender) सदस्यों को सशक्त बनाया जाए। ए. गोपालकृष्णन का कहना है कि लोगों का ट्रांसजेंडर (Transgender) के खिलाफ बदलती सोच देखकर बहुत ख़ुशी होती है। वह आगे कहते हैं कि अगर हर राज्य में ऐसा बदलाव हो, तो बहुत जल्द हमारे समाज में इंसान को जेंडर से नहीं, बल्कि इंसान को उसकी काबिलियत से पहचाना जाएगा।