Wednesday, December 13, 2023

रांची की सुशीला ने पहचाना महिलाओं का दर्द, खाद्य सामग्री बनाकर महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर

अकसर लोगों की सोच होती है कि महिलाएं खाना बनाने के अलावा कर भी क्या सकती है, मगर महिलाओं की पाक कला के सामने लोगों की बोलती भी बंद हो जाती है. इसी कड़ी में शामिल है यह स्टोरी जिसमें एक महिला ने खाद्य सामाग्री के जरिये अपनी पहचान बनायी है.

महिलाओं पर होती है दोहरी जिम्मेदारी

रांची झारखंड की रहने वाली 47 वर्षीय सुशीला देवी बताती हैं कि अमूमन घर में रहने वाले मर्द जब शराब पीकर घर पहुंचने लगते हैं, तब महिलाओं के सिर घर चलाने की दोहरी जिम्मेदारी हो जाती है. उनके पास भी घरेलू कामगार कुछ महिलाएं आयीं थीं, जिनके पास केवल घर के कामों को करके घर चलाना मुश्किल हो रहा था. इस बीच सबने अनेक तरह के प्रयोग किये मगर अन्य किसी काम में मन नहीं लगा तो कुछ कामों में फायदा नहीं हुआ.

इस बीच सुशीला देवी समेत अन्य सभी महिलाओं ने बड़ी, पापड़ और अचार बनाने का काम शुरु किया, जिसमें उन्हें फायदा हुआ और महिलाओं को यह काम जम गया. धीरे-धीरे अपनी जरुरतों के अनुसार महिलाएं जुड़ती चली गयीं और आज यह संख्या 10 महिलाओं तक पहुंच चुकी है.

Sushila from Ranchi is helping other women in getting livelihood from manufacturing of food products

A1 प्रोडक्ट का सामान

साल 2015 में जब महिलाओं के साथ इस काम की शुरुआत हुई थी. उस वक्त सभी महिलाएं इसे केवल एक छोटा व्यवसाय मानकर चला रहीं थीं मगर आज केवल इस काम के बूते ही महिलाओं ने स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया है. अब महिलाएं बड़ी, पापड़ और अचार के अलावा उड़द दाल की बड़ी, चावल की बड़ी और चावल की फुलौड़ी भी बना रही हैं. उनके बनाये हुए खाद्य साम्रागी का नाम A1 से शुरु होता है. जैसे- A1 बड़ी. A1 राइस बड़ी आदि.

Sushila from Ranchi is helping other women in getting livelihood from manufacturing of food products

प्राकृतिक तरीके से होता है निर्माण

सुशीला बताती हैं कि एक महीने में उन्हें 20,000 रुपयों तक की कमाई होती है, जिसमें से महीने की कुल लागत 15,000 रुपयों की होती है. हालांकि यह लागत समय और मौसम के अनुरुप देखकर ही की जाती है ताकि मौसम की मार के कारण सामान खराब ना हो जायें क्योंकि बड़ी और अन्य सामान को सुखाने के लिए सूरज की रौशनी की ही जरुरत होती है. वह आगे बताती हैं कि उनके यहां सभी सामान प्राकृतिक तरीके बनाये जाते हैं और साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है. एक पैकेट पर करीब 3 रुपयों का मुनाफा होता है.

Sushila from Ranchi is helping other women in getting livelihood from manufacturing of food products

कोरोना काल में हुआ फायदा


महिलाएं स्वयं ही अपने प्रोडक्ट को बेचने का काम भी करती हैं और इससे कोरोना काल में उन्हें फायदा भी हुआ है, जब लोग घरों से नहीं निकल रहे थे. उस समय भी लोगों द्वारा आये आर्डर को घरों तक महिलाएं ही पहुंचाने का काम करती थीं. हालांकि आज तक किसी मेले और स्टॉल्स में सामान बेचने का मौका नहीं मिला है मगर आपसी जान-पहचान के सहारे मेलों तक सामान पहुंचाती हैं. कुछ होलसेल मार्केट में भी बेचे जाते हैं. सुशीला बताती हैं कि उनके इस काम में परिवार के लोगों का पूरा सहयोग मिता है और आगे उनकी इच्छा अपना एक दूकान खोलने की है, जहां केवल ज्यादा से ज्यादा महिलाएं जुड़कर रोज़गार प्राप्त कर सकें.