सच्चे मन से किया गया प्रयास अवश्य सफल होता है। यदि कोई इन्सान किसी काम को दृढ़ निश्चय और लगन के साथ करे, तो उसे सफलता अवश्य मिलती है।
आज की यह कहानी एक ऐसे शख्स की है, जिसने अपनी कड़ी मेहनत से ठंडे रेगिस्तान को भी हरा-भरा बना दिया।
हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के कन्नौज जिले का ऊपरी भाग लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान की तरह है। इस क्षेत्र में सैकडों एकड़ बंजर पड़ी भूमि को हरा-भरा करने के लिए राज्य सरकार ने 90 के दशक में Desert Development Programme की शुरुआत की थी, लेकिन करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी कुछ लाभ नहीं हुआ।
30 हजार से अधिक पेड़-पौधें मौजूद हैं
सरकार के इस प्रोजेक्ट से प्रेरणा लेकर हिमाचल के आन्नद ध्वज नेगी ने अपनी मेहनत से रेगिस्तान को हरा-भरा करने का निश्चय किया। उनकी दशकों की मेहनत रंग लाई। अब वहां पर 65 हेक्टेयर में 30 हजार से अधिक पेड़ों का एक जंगल बसा है, जिसे लोग ‘थाम कर्मा’ के नाम से जानते हैं।
22 वर्षों की मेहनत रंग लाई
आन्नद ध्वज नेगी (Anand Dhwaj Negi) हिमाचल के रिटायर्ड कर्मचारी थे, जिन्होंने अपनी मेहनत से ठंडे रेगिस्तान में हरियाली ला दी। नेगी साहब के 22 वर्षों की मेहनत से बसाए गए जंगल में 30 हजार पेड़ हैं, जिनकी कीमत लगभग 4 करोड़ रुपये है।
अनेकों प्रकार के पेड़ हैं मौजूद
थाम कर्मा नामक जंगल में अनेकों प्रकार के पेड़-पौधें मौजूद हैं। साथ ही यहां सेब और खुमानी के पेड़ भी पाए जाते हैं। दूर-दराज के कई गांवों के लोग अपनी भेंड-बकरियों को चराने के लिए आते हैं।
नहीं मानी हार
आरंभ में जब नेगी साहब ने जंगल लगाने शुरु किए तो 85 फीसदी पौधें नष्ट हो गए। कुछ बचे हुए पौधें पानी की कमी से मुरझा गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने वहां जंगल लगाने के लिए नई योजना बनाई, जिसके तहत उन्होंने रिसर्च करना शुरु किया कि वहां के वातावरण मे कौन से पेड़ टिक सकते हैं? इसके अलावा पानी की समस्या से निजात पाने के लिए गांव वालों के साथ मिलकर नहरें बनाई। साथ ही वर्षा का पानी इकट्ठा हो सके, इसके लिए जगह-जगह तालाब भी बनाए।
प्राकृतिक खाद का किया इस्तेमाल
इस क्षेत्र की मिट्टी रेतीली होने की वजह से उसमें नाइट्रोजन की कमी थी, जिसकी पूर्ति करने के लिए नेगी साहब ने पारंपरिक खाद का प्रयोग किया। उन्होंने 300 चीगू बकरियों के एक फार्म से गोबर लाकर स्वयं ही प्राकृतिक खाद बनाई। खुद से तैयार की गई खाद को वे पेड़-पौधों में डालते थे, जिससे भूमि में नाइट्रोजन की कमी दूर हो गई। कुछ समय पश्चात उन्होंने ग्रामीण किसानों को बेचना भी शुरु कर दिया।
अब होती है सब्जियों की भी खेती
नेगी साहब के सालों की मेहनत से तैयार हुए इस जंगल में अब मटर, आलू, शतावरी, सूरजमुखी, राजमा और मशरुम की खेती भी होती है। जंगल के तैयार होने के बाद वहां एक नर्सरी की शुरुआत की गई, जिससे लोग पेड़-पौधें ले जाकर अपने घरों और खेतों में लगाते हैं। नेगी साहब अपने अन्तिम समय में वहां देवदार और पाइन नामक पेड़ लगाना चाहते थे, जो वहां के जलवायु के अनुरूप होते हैं और लंबे समय तक जीवित रहते हैं।
सादियों तक रहेंगे याद
रेगिस्तान को अपनी कठिन मेहनत से हरा-भरा बनाने वाले नेगी साहब मई 2021 में स्वर्ग सिधार गए, लेकिन अपने पीछे इतना घना जंगल छोड़ गए हैं, जो उन्हें सादियों तक लोगों के बीच जिन्दा रखेगा।