दुर्गा पूजा हिन्दू धर्म के मुख्य त्योहारों में से एक है। यह पूरे भारत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन यह बंगाल में बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है क्योकि यह बंगालियों का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। आमतौर पर दुर्गा पूजा का पर्व पूरे 9 दिनों तक चलता है। पश्चिमी बंगाल में इसे मुख्य रूप से केवल 6 दिनों तक ही मनाया जाता है, जो नवरात्र के 5वें दिन से शुरू होता है और विजयदशमी तक चलता है। – durga puja mein vaishyalay ki mitti ka istemal
दुर्गा माता की मूर्ति का निर्माण किस मिट्टी से होता है?
बंगाल में देवी दुर्गा दुर्गतिनाशिनी को बुराई का नाश करने वाली और अपने भक्तों की रक्षक के रूप में पूजा जाता है। इस दौरान पश्चिमी बंगाल में सड़कों पर भव्य पंडालों का निर्माण होता है। उसमें माता दुर्गा की विशाल मूर्ति स्थापित की जाती है, जिसका विजयदशमी के दिन विसर्जन कर दिया जाता है। क्या आप जानते हैं कि दुर्गा पूजा में दुर्गा माता की मूर्ति का निर्माण किस मिट्टी से किया जाता है? अगर नहीं तो आज हम आपको इससे जुड़ी सारी जानकारियां देंगे।
वेश्याएं के आंगन की मिट्टी से बनती है दुर्गा मां की मूर्ति
दुर्गा पूजा के दौरान पूजा की जाने वाली दुर्गा की मूर्ति के लिए मिट्टी कोलकाता के सोनागाछी से खरीदी जाती है। यह कोलकाता का रेड लाइट एरिया है, जहां वेश्याएं अपना जीवन यापन करने हेतु कुछ बुरे कर्मों में लिप्त रहती हैं। मान्यताओं के अनुसार जब तक इस जगह की मिट्टी दुर्गा मूर्ति में नहीं मिलती है तब तक दुर्गा मूर्ति का निर्माण अधूरा माना जाता है तथा माता दुर्गा उस मूर्ति का पूजन स्वीकार नहीं करती हैं। – durga puja mein vaishyalay ki mitti ka istemal
माता दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए 4 चीजें है जरूरी
ग्रंथो की माने तो माता दुर्गा की मूर्ति में 4 चीजें बहुत जरूरी हैं- पहली गंगा तट की मिट्टी, दूसरी गोमूत्र, गोबर और वेश्यालय की मिट्टी या किसी भी ऐसे स्थान की मिट्टी जहां जाना निषेध हो। इन सभी को मिलाकर बनाई गई मूर्ति ही पूर्ण मानी गई है। सदियों से चली आ रही इस रस्म में सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि अपवित्र माने जाने वाले वेश्यालय की मिट्टी से पवित्र दुर्गा मूर्ति का निर्माण करना।
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इस पुरानी परंपरा का आज भी होता है पालन
पहले के समय में केवल मंदिर का पुजारी ही वेश्यालय के बाहर जाकर वेश्याओं से उनके आंगन की मिट्टी भीख में मांगते थे, परंतु अब पुजारी के अलावा मूर्तिकार भी वेश्यालय से मिट्टी मांगने जाते है। सदियों पुरानी यह प्रथा आज भी मानी जाती है। यह प्रथा थोड़ी अजीब तो है, लेकिन इसकी वास्तविकता के पीछे कई कारण बताए जाते हैं। – durga puja mein vaishyalay ki mitti ka istemal
इस प्रथा की शुरुआत होने के पीछे का रहस्य
• इसका पहला कारण माना जाता है कि जैसे ही कोई व्यक्ति वेश्यालय में प्रवेश करता है, वह अपनी पवित्रता द्वार पर ही छोड़ जाता है। मान्यता है कि भीतर प्रवेश करने से पूर्व उसके अच्छे कर्म और शुद्धियां बाहर ही रह जाती हैं और वेश्यालय के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र होती है इसलिए उसका प्रयोग दुर्गा मूर्ति के लिए किया जाता है।
• दूसरी मान्यता यह है कि वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को समाज से बहिस्कृत माना जाता है। उन्हें एक सम्मानजनक दर्जा दिलाने के लिए इस प्रथा की शुरूआत की गई थी। उनके आंगन की मिट्टी को पवित्र माना जाता है और उसका उपयोग मूर्ति के लिए किया जाता है। इसके जरिए उन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जाता है।
• सबसे पुरानी कहानी के अनुसार पुराने समय में एक वेश्या माता दुर्गा की अनन्य भक्त थी। उसे समाज में मिल रहे तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने खुद उसे आंगन की मिट्टी में अपनी मूर्ति स्थापित करने का आदेश दी। साथ ही माता दुर्गा ने यह वरदान दिया कि बिना वेश्यालय की मिट्टी के उपयोग के दुर्गा प्रतिमाओं को अधूरा माना जाएगा। उसी समय से वेश्यालय की मिट्टी से दुर्गा प्रतिमा बनाने की शुरूआत हुई।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार इसी वजह से इस अनोखी प्रथा की शुरूआत हुई थी, जो आज भी चल रही है। –durga puja mein vaishyalay ki mitti ka istemal