Sunday, December 10, 2023

जानिए देश को पहला Gold दिलाने वाले मुरलीकांत पेटकर की कहानी, अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा इनके सामने कुछ भी नही

हर किसी के जीवन में सफलता अहम होती है। माना जाता है की इसे पाने के लिए ही लोग अपने जीवन में कड़ी मेहनत ही नही करते हैं बल्कि लोग अपनी तरफ से हर तरह का संभव प्रयास भी करते हैं तब जाकर कही सफलता मिल पाती है। जो इसका स्वाद चखता है उसने कड़ी मेहनत की होती है। आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने भारत को पैराओलंपिक में पहला मेडल दिलवाया है, जिनका नाम मुरलीकांत पीटकर (Murlikant Petkar) है।

कभी एक हादसे में अपने अंग गंवाने वाले मुरलीकांत पेटकर ने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी। मुरलीकांत 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में बुरी तरह घायल हो गए थे। इस हमले में पेटकर को 7 गोलियां लगी। बचने की कोशिश में वह एक आर्मर ट्रक से सामने गिर पड़े और कुचले गए। इस हादसे के बाद उनकी कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था। लेकिन उन्होंने अपनी कमज़ोरियों को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया और स्पोर्ट्स के जरिए भारत की सेवा करने की ठानी और भारत के लिए पहला पदक जीता। पर यह सब करना उनके लिए इतना आसान नही था। आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में।

बचपन में खेल से लगाव (Murlikant Petkar world record)

मुरलीकांत पेटकर का जन्म महाराष्ट्र के सांगली जिले के पेठ इस्लामपुर में हुआ था। वह बचपन से ही खेल से जुड़े हुए थे और शुरू से ही देश सेवा के प्रति उनकी सोच थी। इसलिए वो भारतीय सेना में भी शामिल हुए।उन्हें सेना में कश्मीर में पोस्ट किया गया था। तब तक वह छोटू टाइगर के नाम से मशहूर हो गए थे। वो अपनी बहादूरी से दुश्मनों को मात दिया करते थे। जिसके कारण हर कोई उनका बहादूरी और हिम्मत की तारीफ करता था। वह सेना में बहुत प्रतिष्टित इंसान थे।

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ड्यूटी के दौरान घायल (Murlikant Petkar world record)

साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच य़ुद्ध हुआ। उस समय मुरलीकांत पेटकर कश्मीर में तैनात थे। कश्मीर में पाकिस्तानी वायुसेना के हमले में वो बुरी तरह घायल हो गए थे। उन्हें कई गोलियां लगी थी। बेहोशी की हालत में वो सड़क पर गिर गए। जिसके बाद एक ट्रक उनके पैर को कुचलता हुआ चला गया। उन्हें घायल अवस्था में अस्पताल ले जाया गया। जहां वो कोमा में चले गए। 17 महीने बाद जब वह कोमा से बाहर आए तो उन्हें पता चला कि रीढ़ में गोली लगने की वजह से कमर के नीचे हिस्से को लकवा मार गया। जिसके बाद वो चलने-फिरने में भी असमर्थ हो गए।

first gold winner in para olympic murlikant patekar
Murlikatnt Patekar, First gold winner

जिंदगी भर के लिए विकलांगता (Murlikant Petkar padma shri)

कई कोशिशों के बाद वो सहारे के साथ थोड़ा चलने लगे। लेकिन इस हादसे ने उन्हें जिंदगी भर के लिए विकलांग कर दिया। वह कई सालों तक हॉस्पिटल में भर्ती रहे।विकलांग होने के बाद भी मुरलीकांत ने हार नहीं मानी। उन्होंने खुद को मजबूत बनाना चाहा। इसी दौरान उनके फीजियथैरिपिस्ट ने उन्हें फिर से खेलने की सलाह दी। पेटकर ने टेबल टेनिस, एथलेटिक्स और स्वीमिंग में हाथ आजमाया और तीनों में ही देश का प्रतिनिधित्व किया।

खेल के जरिए नई पहचान (Murlikant Petkar world record)

मुरलीकांत खेलों के जरिए धीरे-धीरे अपनी नई पहचान बनाने लगे। लेकिन ऐसा करना उनके लिए आसान नहीं था। आर्थिक तंगी के कारण वो ट्रेनिंग नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में भारतीय क्रिकेट कप्तान विजय मर्चेंट ने उनकी ओर सहायता का हाथ बढ़ाया। विजय मर्चेंट एक एनजीओ चलाते थे जो कि पेटकर जैसे खिलाड़ियों की मदद करते थे। उन्होंने पेटकर जी को भी अपने एनजीओ से जोड़ा और उनके विदेश जाने के टिकट्स का खर्चा उठाया। 1972 में जर्मनी में हुए खेलों में पैरालंपिक खिलाड़ी मुरलीकांत पेटकर ने भारत के लिए पहला पदक जीता।

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मेहनत के बदौलत विश्व रिकॉर्ड (Murlikant Petkar world record)

उन्होंने 1968 के पैरालंपिक खेलों में टेबल टेनिस में भाग लिया और पहला राउंड भी जीता। अगले पैराल्मपिक्स में उन्होंने तैराकी को चुना और गोल्ड जीतते हुए विश्व रिकार्ड भी बनाया। पेटकर ने न सिर्फ गोल्ड मेडल जीता बल्कि वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया। लगभग दो दशकों के करियर में, पेटकर ने इंग्लैंड में आयोजित स्टोक मैंडविले इंटरनेशनल पैराप्लेजिक मीट्स जैसे आयोजनों में देश के लिए मेडल जीते उन्होंने लगातार अपने रिकॉर्ड को तोड़ते रहे। वह लगातार पांच सालों तक जनरल चैम्पियनशिप कप जीतने वाले खिलाड़ी थे। उनसे पहले किसी भी खिलाड़ी ने सामान्य ओलंपिक खेलों में भी भारत के लिए गोल्ड नहीं जीता था।

सम्मानित हुए मुरलीकांत पेटकर (Murlikant Petkar padma shri)

मुरलीकांत पेटकर ने अपने जीवन में कभी हार नही मानी। उन्हें कई मौकों पर असफलता भी हाथ लगी पर उन्होंने असफलता जैसी बाधाओं को पार करते हुए अपनी एक अलग पहचान कायम की। उनके उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 2018 में पद्मश्री से नवाजा था दिव्यांग होने के बावजूद जिस प्रकार उन्होंने भारत का नाम रौशन किया वह काबिले तारीफ है। आज वह लोगों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। लोगों को उनसे सीखने की आवश्यकता है।

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