अनाथालय वह जगह है जहां बेसहारा बच्चों को सहारा मिलता है। कई बार बच्चे मां बाप द्वारा जन्म के बाद ठुकरा दिए जाते हैं तो कई बार किसी प्राकृतिक घटना में अनाथ हो जाते हैं। ऐसे में इन बच्चों की जिम्मेदारियां उठाने वाला कोई नहीं रहता, लेकिन कई नेक दिल इंसान आज भी हमारे देश में हैं, जो दूसरों के लिए अपने जीवन समर्पित कर देते हैं। ऐसे ही व्यक्तियों में से एक हैं मीना राणा जो अपना पूरा जीवन ही अनाथ बच्चों के लिए समर्पित करने का संकल्प ले चुकीं हैं।
मीणा राणा का परिचय
मीना राणा पिछले 32 वर्षों से दिव्यांग बच्चों की जिंदगी संवारने में लगी हैं। तीर्थनगरी शुक्रतीर्थ में स्थित “अखिल भारतीय दिव्यांग एवं अनाथ आश्रम” (Akhil Bhartiya divyang and Anath Ashram) के जरिए वह हचारों अनाथ बच्चों (Orphan Child) की जिंदगी सवार चुकी हैं। मीना राणा (Meena Rana) पूरे तन मन को समर्पित कर अनाथालय (Orphanage) में बच्चों के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं। वह सिर्फ बच्चों का पालन-पोषण ही नहीं, उन्हें उच्च शिक्षा देकर शादियां भी करवाती हैं। उनके लिए अनाथालय के बच्चे ही उनकी दुनियां है।
ऐसे हुई अनाथालय की शुरुआत
मीना का जन्म शामली जिले के कुड़ाना गांव में हुआ, उनके पिता का नाम सुखवीर सिंह है। इनकी शादी बागपत के दाहा के रहने वाले विरेंद्र राणा के साथ हुई। मीना राणा (Meena Rana) ने कई बच्चे को जन्म दिया लेकिन उनका कोई भी संतान जीवित नहीं रह पाया। अपनी जिंदगी में बच्चों की कमी पूरी करने के लिए वे अनाथों की सेवा में संलग्न हो गई। 1990 में वह अपने पति के साथ शुक्रतीर्थ आई और वही पर जमीन खरीद कर अखिल भारतीय विज्ञान एवं अनाथ आश्रम की शुरुआत की।
मीना राणा (Meena Rana) अनाथ बच्चों के लिए अपने सभी सुख, यहां तक घर को भी त्याग दिए। भला इतना धैर्य कहां किसी में देखने को मिलता है, लेकिन मीना राणा हजारों नेक दिल इंसानों में से एक हैं। वह जब अपने अनाथ आश्रम की शुरुआत की तो उसमें 7 बच्चे थे, धीरे-धीरे उनके यह बच्चों की संख्या बढ़ने लगी और अब 40 बच्चे इस अनाथ आश्रम में रहते हैं। इन बच्चों में 28 लड़के और 12 लड़कियां है। सभी बच्चों की हर तरह की हर तरह की जरूरतें मीना राणा खुद ही पूरी करती हैं।
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बच्चों के लिए आश्रम में ही खोला प्राइमरी स्कूल
बच्चों के पालन पोषण के साथ-साथ उनकी शिक्षा की भी पूरी जिम्मेदारी मीना राणा खुद ही उठाती हैं। सन 2000 में वह इन बच्चों की शिक्षा के लिए अनाथ आश्रम में ही स्कूल की भी शुरुआत की। बहुत जल्द (मात्र 3 वर्ष में ही) 2003 में यह प्राइमरी स्कूल हाई स्कूल में तब्दील हो गया। आश्रम से स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनकी कॉलेज की भी पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी खुद मीना राणा ही लेती हैं। कई बच्चों को MA तक के भी शिक्षा दिला चुकी हैं।
इस आश्रम में पढ़ाई के साथ-साथ और भी कई Skills सिखाए जाते हैं, जैसे लड़कियों को सिलाई, कढ़ाई, ज्वेलरी, कंप्यूटर आदि से जोड़ना और लड़कों के लिए मोमबत्ती, लिफाफे, चरपाई बुनने जैसी कला सिखाई जाती है। ऐसे में बच्चे कभी भी बेरोजगार नहीं होते वे एक ना एक दिन जरूर कामयाब हो जाएंगे क्योंकि उनमें कलाएं कूट-कूट कर दी जाती हैं।
यहां दिव्यांगों को भी मिलता है आश्रय
मीना राणा द्वारा संचालित इस अखिल भारतीय दिव्यांग एवं अनाथ आश्रम (Akhil Bhartiya divyang and Anath Ashram) में सिर्फ अनाथ बच्चों को ही नहीं बल्कि दिव्यांगों को भी आश्रय मिलता है। कई बार अगर कोई बच्चा किसी एक्सीडेंट के कारण दिव्यांग हो जाए या दिव्यांग ही जन्म लेता है, तो उसे खुद उसके माता-पिता ही बोझ समझने लगते हैं लेकिन मीना राणा ऐसे बच्चों को भी अपनाती हैं और उसे एक स्वस्थ और खुशहाल जिंदगी प्रदान करती हैं।
पालन पोषण के बाद इन बच्चों की करवाती हैं शादियां
उच्च शिक्षा दिलाने के साथ-साथ आश्रम के बच्चों के लिए मीना राणा (Meena Rana) अपनी सभी जिम्मेदारियां बखूबी निभाती हैं, जैसे एक मां-बाप निभाते हैं। एमए और बीएड की पढ़ाई पूरी करवाने के बाद दो लड़कियों की शादी भी खुद मीना जी करवाई हैं और आज वह लड़कियां एक खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर रही हैं। बच्चों का कहना है कि उनकी जिंदगी में कभी भी माता-पिता की कमी मीना जी के रहते नहीं खलती, वह पूरी तरह से उनका ध्यान रखती हैं।
कई बार ऐसा भी मामला देखा जाता है कि अगर किसी दंपत्ति को खुद का बच्चा नहीं हुआ तो वे बच्चे के लिए दूसरी शादी भी कर लेते हैं। लेकिन यह किसी समस्या का समाधान नहीं है। अगर आपको बच्चे चाहिए तो हमारे देश में अनाथ बच्चों की कोई कमी नहीं है, आप एक बच्चे की जिंदगी सवारेंगे तो उससे एक पीढ़ी सवर जाएगी।
मीना राणा (Meena Rana) के जैसे अनेकों दंपति होंगे जिन्हें खुद का बच्चा नसीब नहीं होता है, लेकिन वे हालात से हार जाते हैं। ऐसे लोगों को मीना राणा से प्रेरणा लेकर अपने परिवार को आगे बढ़ाना चाहिए और किसी की उजड़ी हुई जिंदगी में खुशियां भरनी चाहिए।