Wednesday, December 13, 2023

प्रेरणा : 25 साल की अमृता ने अनाथों को सरकारी नौकरी में 1% का आरक्षण दिलाया

अभिभावकों के बिना किसी बच्चे की जिंदगी क्षत-विक्षत सरीखी हो जाती है ! सहज कल्पना की जा सकती है कि अनाथों की जिंदगी कितनी कष्टप्रद होती है !

 देश में ऐसे कई अनाथ बच्चे होते हैं जिन्हें अनाथालय नसीब नहीं होता है और उन बच्चों की परवरिश सड़कों , गलियों , स्टेशनों आदि में होती है ! दर-दर की ठोकरें से चोटिल उन बच्चों की जिंदगी नर्क जैसी हो जाती है ! बिना देख-रेख के कईयों की तो मौत हो जाती है ! मानवाधिकार संगठन के अनुसार भारत में अनाथों की संख्या लगभग एक करोड़ है ! अनाथ बच्चों में जो बच्चे अनाथाश्रम तक पहुँच पाते हैं उन बच्चों की संख्या अनाथालय तक ना पहुँच पाने वाले बच्चों की संख्या से बहुत कम है ! कहा जाता है….जिसका कोई नहीं उसका खुदा होता है ! इसी बात को सत्य करती अम्रुता करवंदे अनाथों के लिए किसी खुदा से कम नहीं ! जिन बच्चों का इस दुनिया में कोई नहीं है अम्रुता करवंदे उन बच्चों के अधिकार हेतु सतत प्रत्नशील हैं और उन्हें सफलता भी मिली है ! अम्रुता ने बचपन से युवावस्था तक जिन हालातों और संघर्षों को जी हैं उससे सीखकर अपने जैसे अनाथों की जिंदगी संवारने को अपना जीवन उद्देश्य बनाया है !

अम्रुता की कहानी एक अति संघर्षशील लड़की की रही है ! 20 वर्ष पूर्व जब अम्रुता मात्र दो साल की थीं तब उनके माँ-बाप उन्हें गोवा के एक अनाथालय में छोड़ गए थे ! बकौल अम्रुता “मुझे अपनी माँ-बाप के बारे में कुछ भी पता नहीं ! मैं बचपन से हीं अनाथाश्रम में रही हूँ , मुझे नहीं मालूम कि मेरे माता-पिता किस मजबूरी के कारण मुझे यहाँ छोड़ दिए थे” ! अट्ठारह साल तक गोवा की मातृछाया अनाथाश्रम में हीं रहीं !18 वर्ष के होने के साथ अनाथालय के नियमों के अनुसार अब उन्हें अनाथालय छोड़ना था ! अम्रुता के उम्र के अधिकत्तर लड़कियों को शादी करवा दिया गया , अम्रुता की शादी के लिए भी एक लड़का खोजा गया था पर उन दिनों अम्रुता पढ रही थीं और डॉक्टर बनना चाहती थीं ! वह देश और समाज के लिए कुछ करना चाहती थीं ! वह दूसरे लड़कियों की तरह शादी करके घर बसाना बिल्कुल भी नहीं चाहती थीं इसलिए उसने शादी करने से इंकार कर दिया और वह पुणे चली गईं ! कोई ठिकाना ना रहने के कारण वह पहली रात स्टेशन पर बिताई ! अनजाने शहर में अजनबी लोगों के बीच अम्रुता बेहद डरी-सहमी सी थीं फिर भी वह खुद को ढाँढस बँधाई और सँभाली ! कुछ दिनों घरों, दुकानों और अस्पतालों में कार्य कर कुछ पैसे जोड़ती रहीं और फिर एक दोस्त की मदद से एक कॉलेज में नामांकन लिया ! दिन में काम और शाम में क्लास कर , कभी खाना खाकर , कभी भूखे रहकर व कभी दोस्तों की टीफीन खाकर अपनी पढाई जारी रखी और अंतत: अपनी ग्रेजुएशन की पढाई पूरी कीं ! तत्पश्चात उन्होंने महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा दीं , अच्छे नम्बर लाने के बाद भी उनका चयन नहीं हो पाया क्योंकि वह अनाथ थीं ! उनके पास नॉनक्रीमीलेयर परिवार से होने का कोई प्रमाणपत्र ना होना हीं उनकी राह का मुख्य बाधक बना और उन्हें वह नौकरी नहीं मिल पाई !

अनाथों के लिए लड़ाई

अम्रुता ने बताया कि उन्होंने अपने कई दोस्तों व खोजबीन करके पता किया कि किसी भी राज्य में अनाथों के लिए किसी भी तरह का आरक्षण नहीं है ! यह जानकर उन्हें बेहद दुख हुआ कि उनके जैसे अनाथों के लिए जो बेसहारा हैं उन जैसों की मदद के लिए कोई कानून या आरक्षण नहीं हैं ! वह मन हीं मन कुछ करने को संकल्पित हो चुकी थीं और बहुत सोंचने के बाद वह मुंबई चली गईं ! कई दिनों तक तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से मिलने को जुगत करती रहीं अंतत: मुख्यमंत्री के एक सहयोगी की मदद से अम्रुता की मुलाकात मुख्यमंत्री से हुई ! मुख्यमंत्री जी ने उनकी बात बहुत ध्यान से सुना और हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया ! अक्टूबर 2017 में हुई मुलाकात के तीन महीने के पश्चात अम्रुता की मेहनत रंग लाई और महाराष्ट्र सरकार ने अनाथों के लिए सरकारी नौकरी में 1 फीसदी आरक्षण के प्रावधान का ऐलान कर दिया ! इसके साथ महाराष्ट्र अनाथों के लिए ऐसा नेक कार्य करने वाला पहला राज्य बन गया ! इस फैसले के बारे में अम्रुता कहती हैं…“मैनें अपनी पूरी जिंदगी में इतनी खुशी कभी महसूस नहीं की थी जितनी उस दिन ! मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैंने कोई जंग जीत ली हो” ! 

अम्रुता और उनके दोस्त यह जंग यहीं खत्म नहीं होने देना चाहते हैं उनलोगों का कहना है कि यह नियम देश के सभी राज्यों में लागू हो क्योंकि अनाथ देश के सभी राज्यों में हैं !