कुछ ही ऐसे लोग होते हैं जो अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर काम करने में सहज होते हैं। वरना तो मामूली दिक्कतों से भी दो – दो हाथ करना लोगों को नागवार होता है। वहीं दूसरी ओर श्रीमंत झा (Shrimant Jha) जैसे भी लोग हैं जो शारीरिक दुर्बलता के बाद भी अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपना और देश का परचम लहरा रहें हैं। छत्तीसगढ़ के रायपुर में रहने वाले 27 वर्षीय श्रीमंत Indian Para athelete हैं जो वैश्विक पटल पर आर्म रेसलिंग (Arm wrestling) में अपना लोहा मनवा चुके हैं।
जन्म से ही शुरू हो गई संघर्ष की दास्तां
जन्म से ही उनके दोनों हाथों में केवल 4 उंगलियां ही थी। साथ ही एक पैर भी साधारण तौर पर काम नहीं करता है। लेकिन इन सब के बावजूद बुलंद हौसले ने खूब साथ दिया। अपने जीवन के संघर्ष को The Logically से साझा करते हुए उन्होंने बताया कि “जब मैं कक्षा 10वीं में था तब इंटर-स्कूल फुटबॉल चैंपियनशिप (Inter school football championship) में हिस्सा लेना चाहता था, 200 खिलाड़ियों में 22वां स्थान हासिल करने के बावजूद भी दिव्यांग होने के कारण मुझे यह मौका गंवाना पड़ा।”
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आमतौर पर सामान्य व्यक्ति जीवन में आर्थिक और मानसिक कठिनाइयों से जूझता हैं वहीं दिव्यांग जनों के लिए शारीरिक पीड़ा भी अहम रोड़ा होती है। लेकिन श्रीमंत (Shrimant Jha) ने कभी इसके सामने घुटने नहीं टेके। उनका टैलेंट ही मील का पत्थर साबित हुआ।
नेशनल गेम्स में हासिल किए कई खिताब
2011 आंध्र प्रदेश – स्वर्ण पदक
2012 तमिल नाडु – स्वर्ण पदक
2012 केरल – स्वर्ण पदक
2013 केरल – स्वर्ण पदक
2014 आगरा – स्वर्ण पदक
2015 उत्तराखंड – स्वर्ण पदक
2016 नागपुर – स्वर्ण पदक
इंटरनेशनल स्पोर्ट्स में जीते कई पदक
2013 : पोलैंड – 35 वीं विश्व पंजा कुश्ती -10 वां स्थान
2014: पोलैंड – 36 वीं विश्व पंजा कुश्ती – सिल्वर मेडल
2015: मलेशिया – 37 वीं विश्व पंजा कुश्ती – ब्रॉन्ज मेडल
2016: उज़्बेकिस्तान – 15 वीं एशिया पंजा कुश्ती – चौथा स्थान
2016: बुल्गारिया – विश्व पंजा कुश्ती – 8 वाँ स्थान
2017: स्लोवाकिया – Open Para Arm wrestling championship – गोल्ड मेडल
2018: कज़ाकस्तान – Para Asian arm wrestling championship – ब्रॉन्ज मेडल
2019: कज़ाकस्तान – Para Asian Arm wrestling championship – गोल्ड मेडल
श्रीमंत झा (Shrimant Jha) देश के लिए 40 अंतराष्ट्रीय मेडल जीत चुके हैं। देश और विदेश में उनकी उपलब्धियों की सूची काफी लंबी है। जिसमें अब भी नए कीर्तिमान जुड़ रहे हैं। फिलहाल वह एशिया में 1 रैंक और विश्व में 3 रैंक पर हैं।
योग्यता के बाद भी इसलिए नकार दिए गए
श्रीमंत को बचपन से ही फुटबॉल का शौक था। स्कूल के दौरान ही वह स्टेट टीम ट्रायल तक पहुंच गए थे। लेकिन एक हाथ ठीक न होने के कारण टीम में चयन नहीं हो पाया। उस समय उनकी मां मनोरमा झा ने दूसरे खेलों को ओर रुझान बढ़ाने को कहा। आर्म रेसलिंग में उन्हें खास दिलचस्पी है। जिसके लिए वह रोजाना 3-4 घंटों तक प्रैक्टिस करते हैं। यह कारवां आज अंतराष्ट्रीय स्तर पर जा पहुंचा है।
अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी फिर भी डाइट काफी साधारण
हमने हमेशा देखा सुना है कि किसी भी खेल से जुड़े खिलाड़ी डाइट का खास खयाल रखते हैं। जिनमें कई तरह के सप्लीमेंट्स शामिल होते हैं लेकिन श्रीमंत के साथ ऐसा बिल्कुल भी नहीं है वह नियमित तौर पर घर का ही बना खाना खाते हैं जिसमें दाल, चावल, रोटी और हरी सब्जी शामिल होती है।
ओलंपिक 2021 की तैयारी जोरों शोरों पर
फिलहाल वह 2021 में होने वाले ओलंपिक गेम में गोल्ड मेडल हासिल करने की ललक के साथ दिन रात मेहनत कर रहें हैं। ऐसा परिश्रम, हौसला और देश के लिए सम्मान हासिल करने की ललक सभी युवाओं में होनी चाहिए।
The Logically उम्मीद करता है की श्रीमंत झा 2021 ओलंपिक में भारत का परचम लहराते हुए देश को एक बार और गौरवान्वित करेंगे। भविष्य के लिए उन्हें अनेक शुभकामनाएं!