हमारे यहां केले के पत्तों का बहुत हीं महत्व है। चाहे कोई पूजा-पाठ हो या शादी-विवाह केले के पत्ते का इस्तेमाल इन सब जगहों पर किया जाता है। धीरे-धीरे यह प्रचलन कम होता जा रहा है। आजकल प्लास्टिक की ज्यादातर सामग्रियों को उपयोग में लाया जा रहा है जिस कारण प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। प्लास्टिक कम उपयोग करने और प्रदूषण को रोकने के लिए एक गांव में एक अहम पहल की शुरुआत हुई है। वहां के व्यक्ति शादी-विवाह में लोगों को केले के पते पर खाना खिलातें हैं ताकि कोई प्लास्टिक से निर्मित पतलों का उपयोग ना करे।
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) का एक ऐसा जिला है जहां के व्यक्ति केले के पत्ते पर लोंगो को भोज्य परोसते हैं। वह जिला है बुरहानपुर (Burhanpur)। वहां केले की खेती तो होती हीं है लेकिन अब वहां के लोगों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत हीं नायाब कार्य किया है जिससे वह सभी जिलों में अपनी एक अलग पहचान बना सके हैं। इस क्षेत्र में हर व्यक्ति उस कार्य को अपनाकर पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे रहा है।
बुरहानपुर में लगभग 18000 हेक्टेयर में केले की खेती की जाती है। जिससे वहां केले के पत्ते की कभी कमी महसूस नहीं होती। वहां जो भी छोटे-बड़े या फिर सामूहिक कार्य हो वहां केले के पत्तों पर हीं लोगों को भोजन कराया जाता है। अगर वहां के अगल-बगल के गांव वालों के पास पत्ते नहीं है तो वह यहां से आकर केले के पत्ते ले जाते हैं। अगर कोई पूजा-पाठ जैसे नवरात्रि की पूजा हो या फिर श्रावण मास हो, अगर प्रसाद बनाना हो तो वह केले के पत्ते में बनाकर उसी में लोगों को प्रसाद दिया जाता है। बाद में जो केले के पत्ते प्रसाद के बाद लोग छोड़ देते हैं उन्हें उनका उपयोग उर्वरक बनाने के लिए भी किया जाता है।
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केले के पते में भोजन करने से यह पौष्टिक भी लगता है और स्वास्थ्य के लिए अच्छा भी रहता है। अगर उन्हें विवाह पत्रिका का निर्माण करना हो तो वह केले के पते, तुलसी का बीज और कपड़े का इस्तेमाल कर उसे बनवाते हैं।
केले के पते का बेहतर उपयोग कर पर्यावरण संरक्षण में अपना कदम बढ़ाने के लिए The Logically उन सभी लोगों के प्रयासों को सलाम करता है।