कहते हैं अगर कोई भी कार्य मन लगाकर किया जाए तो उसमें सफलता हासिल करना कोई आश्चर्य की बात नहीं होती है। ऐसा करके सभी व्यक्तियों के लिए प्रेरणास्रोत भी बना जा सकता है। हमारे देश की महिलाएं हर वह कार्य कर सकती हैं जहां उनकी जरूरत है। वह घर संभालने के साथ-साथ देश की सेवा में भी तत्पर हैं।
इसी संदर्भ में अगर बात खेती की हो तो इस क्षेत्र में भी महिलाएं पीछे नहीं हैं। बहुत सी महिलाएं अपने घर पर ही टेरेस गार्डन में अन्य प्रकार के फल और सब्जियां उगा कर अन्य लोगों के लिए मिसाल बन रही हैं तो कुछ के पास जितने बीघा जमीन है वहां खेती करके। आज की यह कहानी आदिवासी क्षेत्र की ऐसी महिला की है जो अनुपयोगी भूमि में काजू की खेती कर अन्य किसानों का प्रोत्साहन बढ़ा रही हैं।
मधुलता उइके का परिचय
मधुलता उइके मध्य प्रदेश (Madhya Prakash) के आदिवासी क्षेत्र से ताल्लुक रखती हैं। इन्होंने भीमलाट गांव में काजू की खेती कर अन्य किसानों का मनोबल बढ़ाया है। इन्होंने 1.800 हेक्टेयर जमीन में लगभग 320 काजू का पौधा लगाया। इन्होंने यहां के अन्य किसानों को इस खेती के लिए प्रेरित किया। इन्होंने ऐसे भूमि में काजू लगाया जो उपयोगी भूमि नहीं थी। इस जगह कोई कार्य नहीं किया जाता था।
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काजू के 320 पौधे लगाए
बालाघाट से थोड़ी दूरी पर एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है जिसका नाम बिरसा है। यहां अत्यधिक मात्रा में उपयोग ना किए जाने वाली जमीन थी जहां काजू के पौधे लग रहे हैं। वहां काजू के पौधों को किसान आधुनिक ड्रिप सिंचाई पद्धति को अपनाकर तैयार कर रहे हैं। इस कारण वहां अधिक मात्रा में काजू की बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने सिर्फ काजू के पौधे हीं नहीं लगाया बल्कि अन्य किसानों को मधुलता के द्वारा प्रोत्साहन मिला है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से मिली मदद
2019 में इन्होंने 320 पौधों को 1.8 सौ हेक्टेयर भूमि में लगाया और उनकी सिंचाई ड्रिप सिस्टम के माध्यम से की गई। इन्होंने सिंचाई के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का मदद लिया गया। इसमें कुल लागत 58 हजार 816 रुपए हुई। इसमें अनुदान के तौर पर 19317 रुपये और कृषक अंश 39499 रुपये हुई। इन्होंने गेप फिलिंग की मदद से बहुत से पौधों को बचाये रखा है।
बिना उपयोग की भूमि में काजू की खेती करने के लिए The Logically मधुलता की प्रशंसा करता है।