Tuesday, December 12, 2023

कभी बीएचयू की पढ़ाई पूरी करने के लिए बेचनी पड़ी मां का कंगन, आज विश्वविद्यालय में 5 लाख रुपए दिए दान

संघर्ष और दृढ़ इच्छाशक्ति से बड़ा कुछ नहीं होता, अगर आप के अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो जीवन का लक्ष्य मुश्किल नहीं। इसका उदाहरण हैं 81 वर्षीय चंद्रकेश सिंह (Chandrakesh Singh)। एक समय ऐसा था जब उन्होंन मां का अंतिम गहना बेचकर बीएचयू में दाखिला लिए थे और अब एक ऐसा समय है जब वही व्यक्ति कई विश्वविद्यालय को पांच लाख का दानकर नजीर बने हैं। – Chandrakesh Singh became successful after facing many challenges.

11 वर्ष में लिए परिवार की जिम्मेदारी

चंद्रकेश सिंह (Chandrakesh Singh) मूलरूप से जौनपुर (Jaunpur) के मडियाहूं (Madiyahu) तहसील स्थित सुरेरी (Sureri) थानांतर्गत हरिहरपुर (Hariharpur) गांव के रहने वाले है। चंद्रकेश जब कक्षा छह में पढ़ते थे, उसी समय उनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद 11 वर्षीय चंद्रकेश के कंधों पर खेती-बाड़ी, मवेशी और पूरे परिवार को पालने की जिम्मेदारी आ गई। गांव से पढऩे के बाद नौवीं में प्रवेश लिए। 16 किमी की दूरी तय तथा दो नदियां पारकर चंद्रकेश सेवापुरी पढ़ने जाया करते थे।

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बोर्ड की परीक्षा में किए टॉप

उन दिनों चंद्रकेश की प्राथमिक जरूरते भी पूरी नहीं हो पाती थी, वह नंगे पैर बिना जूता-चप्पल के ही स्कूल जाया करते थे। हालांकि सभी चुनौतियों के बावजूद भी उन्होंने कभी हार नही माना। साल 1958 में बोर्ड की परीक्षा में उन्हे प्रदेश की मेरिट में छठां स्थान मिला। 16 रुपये वजीफा मिला तो उनको हिम्मत और बढ़ी। – Chandrakesh Singh became successful after facing many challenges.

Chandrakesh donated 5 lakh rupees to Banaras Hindu University

मां का कंगन बेच कर बीएचयू में लिए दाखिला

बोर्ड की परीक्षा के बाद इंटरमीडिएट करने के लिए चंद्रकेश वाराणसी के उदय प्रताप कालेज चले गए और यहां से उन्होंने प्रदेश के टाप टेन में स्थान बनाया। साल 1962 में चंद्रकेश ने बीएचयू की प्रवेश परीक्षा दिए। मेरिट में सबसे उपर नाम उनका ही था, लेकिन प्रवेश शुल्क देने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। इसके लिए मां के एक हाथ का कंगन 60 रुपये में बेचना पड़ा, जिससे उनका दाखिला बीएचयू में हुआ। उस समय सोना का कीमत 40 रुपये तोला था।

चंद्रकेश अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं

बड़ी मुश्किलों के बाद चंद्रकेश (Chandrakesh) बीएससी (कृषि) उत्तीर्ण किया। उसके बाद कमाने आगरा चले गए। बीएचयू के एक प्रोफेसर्स ने इस मेधावी पर आगे पढऩे का बहुत दबाव बनाया, लेकिन उनकी घर की आर्थिक हालत ऐसी नही थी कि वह आगे पढ़ सके। ऐसे में चंद्रकेश गुरुओं से झूठ बोले कि वह आगरा में प्रवेश ले लिए है। बाद में उसके लिए उन्होंने परीक्षा भी दी और जिला उद्यान अधिकारी भी बने। हालांकि अब वह सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

चंद्रकेश (Chandrakesh Singh) के तीन बेटे है, जिसमें सबसे बड़े सुशील कुमार सिंह भारतीय रेलवे सेवा में रेलवे बोर्ड के सदस्य हैं और दूसरे इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता और तीसरे रियल स्टेट कारोबारी है। – Chandrakesh Singh became successful after facing many challenges.